‘सिंड्रोम’ शब्द तो सुना होगा. जैसे एड्स का पूरा नाम है अक्वायर्ड इम्यून डेफिशियेंसी सिंड्रोम. और भी सुने होंगे डाउन्स सिंड्रोम, एडिसन सिंड्रोम इत्यादि.
सिंड्रोम शब्द का अर्थ क्या है? साइन और सिम्पटम्स का समूह, जो एक साथ किसी व्याधि में प्रकट होता है. इसे ‘डिज़ीज़’ शब्द से थोड़ा अलग प्रयोग करते हैं.
जैसे डाउन्स सिंड्रोम को लें. आप शक्ल देख कर ही समझ जाते हैं कि यह व्यक्ति डाउन्स बेबी है. गोल चेहरा, चिपटी नाक, छोटी मंगोलियन आंखें, बड़ी सी जीभ…
पर जब आप डाउन्स सिंड्रोम को पहचान लेते हैं तो आप और भी बहुत कुछ अपने आप जान जाते हैं. जैसे कि आपको मालूम है कि यह बच्चा अविकसित बुद्धि, लो आईक्यू का होगा. अक्सर वे शांत और संगीतप्रेमी होते हैं पर उनमें ADHD या ऑटिज़्म भी अक्सर मिलता है.
आपको मालूम है कि उनके हाथ में एक सिंगल क्रीज़ होगी, उंगलियाँ छोटी और हाथ चौड़े होंगे. उनमें हार्ट की बहुत सी समस्याएँ होंगी, हार्ट की वाल्व और सेप्टम में खराबी होगी.
यानी शक्ल देखकर आप बीमारी पहचानते हैं और बहुत कुछ जो आपने अभी देखा नहीं है, बिना देखे जान जाते हैं. आप जान जाते हैं कि उनमें 21वें क्रोमोज़ोम की संख्या दो के बजाय तीन है.
अब आते हैं अपने विषय पर.
विषैलावामपंथ ऐसा ही है… वामपंथ सिन्ड्रोमिक है. अगर आपको एक लक्षण दिखाई देता है तो आप दूसरा खोज सकते हैं.
अगर एक व्यक्ति आपको ‘जनवाद’, ‘शोषण’, ‘पूंजीपतियों के षड्यंत्र’ जैसे शब्द बोलता सुनाई पड़ता है तो समझ लें कि सतह कुरेदने पर और कुछ बातें मिलेंगी.
नारी के अधिकार, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, युद्ध की विभीषिका, अमन की आशा जैसे नारे मिलेंगे. सीरिया के बच्चों का रोना-धोना मिलेगा, ग्लोबल वार्मिंग की चिंता मिलेगी, मदर टेरेसा की मूर्ति मिलेगी, समलैंगिकता का समर्थन मिलेगा, मोदी और ट्रम्प का विरोध मिलेगा…
हिन्दू धर्म के प्रति भीतर छुपी हुई गहरी घृणा मिलेगी. राष्ट्रद्रोहियों और जिहादियों के लिए सहानुभूति मिलेगी. ऊपर केक की आइसिंग की तरह पर्यावरण की चिंता, पशुओं के प्रति करुणा, कमजोर और शोषितों के अधिकारों की लड़ाई, बच्चों की सुरक्षा की चिंता…
समस्याएं ही समस्याएँ दिखेंगी. समाधान की बात करते ही उन्हें आपके समाधान में फ़ासिज्म की गंध आने लगेगी.
इनमें से कई अच्छी नीयत वाले भले लोग हैं. इन्हें मैं ‘ब्लीडिंग हार्ट सिंड्रोम’ कहता हूँ. खास तौर से, कम समझ और गहरी संवेदना वाली लड़कियाँ. जिनके सर से पैर तक दिल ही दिल है, दिमाग की जगह ही नहीं बची.
पर पूर्ण विकसित ‘लेफ्टिस्ट सिंड्रोम’ ज्यादा विषैला और खतरनाक है. उनके अंदर हिन्दू धर्म के प्रति घृणा और राष्ट्र के प्रति द्रोह बहुत ही गहरा है.
उनमें आपको दलित-हित-चिंतक सर्वोपरि मिलेंगे. आज उनके साथ जाट-हित और पटेल-हित चिंतक भी मिल गए हैं. खालिस्तानी सोच वाले सिख भी उन्हीं के भाई-बंधु हैं.
दलितों की चिंता में सूख रहे बिहार-यूपी के ब्राह्मणों और भूमिहारों की अच्छी खासी संख्या मिलेगी, जिनमें इस सिंड्रोम का मुख्य लक्षण मोदी-विरोध है.
अगर आपको 2012-13 में अरविंद केजरीवाल ईमानदार लगता था, तो इसका मूल कारण था कि आपने उसमें छिपे वामपंथी को नहीं पहचाना था.
एनजीओ के धंधे में लगे लोग, आईआईटी वाले, भूतपूर्व आईएएस अफसर, आईएएस अफसरों की समाजसेवी बीवियाँ, सामाजिक सरोकारों वाले पत्तलकार… ये सब आसान मार्कर हैं जिनसे वाम-सिंड्रोम की पहचान होती है.
मूल विषय है इस वाम-सिंड्रोम की पहचान. राजनीति के घोषित वामपंथियों का तो हमने इलाज कर दिया. साहित्य, कला, समाजसेवा, पत्रकारिता, शिक्षा में इन्हें पहचानना ज़रूरी है.
तो जहाँ कहीं किसी अन्याय-अत्याचार पर खून के आँसू बहाते लोग दिखें, ‘ब्लीडिंग-हार्ट सिंड्रोम’ दिखे… आगे खोजिये. एक लक्षण मिले तो दूसरा खोजिये. क्योंकि पहले डायग्नोसिस, फिर इलाज.