इहलोक से देवलोक तक
इस रंग से तेरा गहरा रिश्ता है
लाल कुमकुम, लाल आलता
लाल चुनरी, लाल रक्त…
लाल रंग जो शक्ति का प्रतीक है
जब कपड़ों पर दाग़ बनकर
लगता है
तो दे जाता है घृणा
नारी होने के इलज़ाम के साथ
और जब चेहरे पर
घाव से रिसता है
तो दे जाता है अधिकार
पुरुष को मालिकाना हक़ के साथ
विवाह जैसे कोई इकरारनामा है
कि जब जब पुरुष पर क्रोध चढ़ेगा
वो उतर जाएगी उसकी नज़रों से
और पैरों तले रौंदी भी जाएगी
यह लाल रंग तुम्हारी कमज़ोरी का नहीं,
प्रतीक है तुम्हारी अज्ञानता का
सुप्त पड़ चुकी दैवीय शक्ति का
जगाओ अपनी चेतना को
समझो और समझाओ कि
उन चार दिनों के लाल रंग से
सिर्फ घृणा ही नहीं,
उपजी है तुम्हारी अगली नस्ल भी
उन सात फेरों ने सिर्फ बंधन ही नहीं पाए
मुक्त किया है सात जन्मों के फेरों से भी
आओ और अपनी दैवीय शक्ति को जगाओ
कि तुम सिर्फ नौ दिनों के लिए
पूजी जाने के लिए नहीं हो
आओ कि अब पत्थर हो चुके
तुम्हारे वजूद में होनी चाहिए
प्राण प्रतिष्ठा…
– माँ जीवन शैफाली