कल सुबह से देख रहा हूँ सोशल मीडिया और whatsapp नव वर्ष की शुभकामनाओं से पटा पड़ा है, पर नव-वर्ष तो 1 जनवरी को आता है?
फिर ये दोबारा ऐसा नव वर्ष कैसे मनाया जा रहा है जिसकी कोई फिक्स तारीख ही नहीं? आइये जानते हैं इसका पूरा सच.
पौराणिक काल में आज से हज़ारों साल पहले भारत एकमात्र ऐसा देश था जहाँ खगोलीय गणना की जाती थी. यहाँ यह बताना जरूरी हो जाता है कि ना सिर्फ सूर्य की बल्कि सभी ग्रहों व तारों की गणना की जाती थी. अतः यह कहना गलत है कि सनातनी सिर्फ सूर्य की गणना करते थे.
विश्व के दूसरे देशों के राजा महाराजा व उनके दूत सिर्फ इसलिए भारत आते थे ताकि वे इस गणना का पंचांग (कैलेंडर) भारत से बनवा कर ले जा सकें. उनके देश के अक्षांश और रेखांश की गणना कर उस देश की हिसाब से पंचांग (कैलेंडर) बना कर दिया जाता था, जिसमें वर्षा और बाकी ऋतुओं की सटीक जानकारी होती थी.
भारत एक मात्र ऐसा देश था जिसने विश्व को सबसे पहले बताया कि पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन, 6 घंटे, 12मिनट, 36.56 सेकण्ड्स लगते हैं (कृपया सूर्य सिद्धांत, पौलिका सिद्धांत, प्रकार सिद्धांत, आर्य सिद्धांत, लघु आर्य सिद्धांत, व सिद्धांत शिरोमणि देखें).
जी हाँ सही पढ़ा आपने, सेकण्ड्स के बाद माइक्रो सेकंड की दूसरी इकाई तक की गणना की जाती थी उस युग में, जब ना कैलकुलेटर होते थे ना कंप्यूटर. इस परिक्रमा को एक वर्ष कहा गया.
चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने में जो समय लगता है उसकी गणना कर महीना बनाया गया, और एक वर्ष में चंद्रमा पृथ्वी की 12 बार परिक्रमा पूरी करता है इसलिए 12 महीने बनाये गए.
यह ज्ञान सिर्फ सनातनियों यानी भारतीयों के पास था और विश्व इस विद्या के आगे नतमस्तक था. गर्व कीजिये कि आप ऐसे सनातनी परिवार का हिस्सा हैं.
सनातनियों में चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिप्रदा (प्रथम दिन) को नया वर्ष मनाया जाता है. इसे नवसंवत्सर, गुड़ी पड़वा, चेटीचंड (सिंधी समाज में), उगाडी (दक्षिण भारत में) के नाम से भी जाना जाता है.
ब्रह्मा जी ने आज ही के दिन सृष्टि की रचना की थी (यानी यह सिर्फ नव वर्ष नहीं है बल्कि सृष्टि का भी पहला दिन है). त्रेता युग में भगवान श्री राम का राज्य अभिषेक भी इसी तिथि को हुआ था (निश्चित ही कुछ तो खास होगा इस तिथि में तभी तो राज्याभिषेक के लिए इसे चुना गया).
चन्द्रमा इस नव वर्ष पर प्रथम नक्षत्र अश्वनी पर होता है और सौर चक्र पूरा होता है, मतलब सूर्य अंतिम राशि मीन से मेष की और चलने पर नव वर्ष मनाया जाता है.
विदेशियों ने बड़ी ही चतुराई से हमारे पौराणिक पंचांग (कैलेंडर) को कॉपी कर लिया (जैसे फेसबुक पर पोस्ट कॉपी हो जाती है) और राजा ऑगस्टिन ने अक्टूबर 1582 में इसका नाम धार्मिक गुरु पोप ग्रेगोरी-13 के नाम पर ग्रेगोरियन कैलेंडर रखा था. इस से पहले इसे जूलियन कैलेंडर के नाम से जाना जाता था.
यानी ईसवी संवत ईसाई धार्मिक कैलेंडर हैं जिसे हिन्दू मानते हैं. कॉपी करने के बाद इसके महीनों के नाम सिलसिलेवार इस प्रकार थे: एकम्बर, द्विअम्बर, त्रिअम्बर, चौथम्बर, पंचाम्बर, षष्ठअम्बर, सप्ताम्बर, अष्टाम्बर, नवम्बर, दशम्बर, एकादशम्बर, द्वादशम्बर जहां नवंबर और दिसंबर 9वां और 10वां महीना थे.
कृपया गूगल व विकिपीडिया पर देखिये आज भी आपको नवंबर के मतलब 9वां और दिसंबर का मतलब 10वां मिल जाएगा, बाद में इसमें बदलाव कर के 10वें महीने को पीछे खिसका कर 12वां बना दिया गया पर नाम दसवां ही रहा (कृपया गूगल व विकिपीडिया देखें), हद्द है जुगाड़ की भी.
राजा ऑगस्टिन ने इसमें कई बार बदलाव किए जिसमें सबसे पहला बदलाव यह किया कि जिस महीने में उसका जन्म हुआ था उस महीने को अपना नाम दे दिया और इस प्रकार अंग्रेज़ी के अगस्त महीना अस्तित्व में आया.
ऑगस्टिन को अगस्त महीने में 30 दिन नागवार गुज़रे और उसने फरमान सुना दिया कि उसके नाम का महीना किसी महीने से छोटा नही हो सकता. राजहठ के आगे कैलेंडर कॉपी करने वाले नतमस्तक थे.
सो जुलाई के बाद अगस्त को भी 31 दिन का कर दिया गया, मने कोई सिद्धांत नहीं बस राजा के कहे अनुसार बना दिया. इसका एडजस्टमेंट फरवरी माह में किया गया और फरवरी को 28 व 29 दिनों का कर दिया गया.
पर कॉपी करने वाला कितना ही चतुर क्यों ना हो, कहीं ना कहीं गलती कर ही देता है, और आज भी वे हर साल अपनी घड़ी रोक कर समय को एडजस्ट कर रहे हैं.
1 जनवरी को पडने वाले नव वर्ष के पीछे कोई सिद्धांत नहीं है. उस समय कोहरा होता है, पेड़ों के पत्ते पीले पड़ कर टूट जाते हैं यानी प्रकृति भी मृत्यु शय्या पर होती है, मृत्यु का उत्सव कैसा?
जबकि नवसंवत्सर तब मनाया जाता है जब पेड़ों में नई पत्तियां, नई कोपल आती हैं, वातावरण सुगंधित व खुशनुमा हो जाता है, मार्किट में नई फसल की आवक होती हैं, हर तरफ खुशी का माहौल होता है.
यहाँ ये बात भी दिलचस्प है कि पूर्व में अंग्रेज़ी कैलेंडर में भी 21 मार्च को नव वर्ष मनाया जाता था, लेकिन बार बार और लगातार बदलाव के बाद अब यह 1 जनवरी को मनाया जाता है.
विक्रम संवत ही क्यों? किसी और राजा के नाम पर संवत क्यो नही? क्योंकि कैलेंडर या संवत का नाम रखने के कुछ नियम होते हैं.
जिस राजा के ऊपर कर्ज़ ना हो, जिस राजा की प्रजा के ऊपर कर्ज़ ना हो, जिस राज्य में कोई भी भूखा ना हो, जिस राज्य में सबके पास कपड़े हो अपना घर हो, केवल उसी राजा के नाम पर संवत या पंचांग या कैलेंडर का नाम रखा जा सकता था.
महाराजा विक्रमादित्य इन सभी मानकों पर खरे उतरते थे इसीलिए उनके नाम पर विक्रम संवत नाम दिया गया.
नवसंवत्सर सिर्फ हिन्दुओं का नहीं बल्कि समस्त सनातनियों का नववर्ष है, जिसमें मुसलमान, ईसाई भी आते हैं. समय की मार व किन्ही कारणों से वे भले ही दूसरे धर्म मे चले गए हों पर थे तो वे भी सनातनी ही.
इसलिए देश के हर नागरिक को गर्व महसूस होना चाहिए कि वह इस महान सनातनी परंपरा का हिस्सा है, तो क्या आप कॉपी किये झूठे कैलेंडर को मानेंगे या हज़रों साल पुराने सनातनी पंचांग को?
हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, आदि सभी सनातनियों को नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं. गर्व से कहो हम सनातनी हैं, गर्व से कहो हम हिन्दू हैं.