आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार से नवरात्र पर्व शुरू हो रहा है. आज से ही विक्रम सम्वत नव वर्ष का आगाज होगा. आज ही मराठी समाज गुड़ी पड़वा का पर्व मनाएगा. सिंधी समाज भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस मनाने की तैयारी में जुटा है. नानक शाही कैलेंडर का नया वर्ष शुरू हो गया है. इस अवसर पर सिख समाज द्वारा भी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं.
सनातन संस्कृति में चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) से सृष्टि का आरंभ माना जाता है. इसलिए सनातन संस्कृति का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है.
इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है जलवायु परिवर्तन होता है जो साक्षात दृश्यमान होते हैं, और हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है यानी इसी दिन हिंदी नववर्ष होता है.
सनातन संस्कृति के नववर्ष के लाभ और उसके हम पर पड़ने वाले प्रभाव को मैं आगे विस्तार से बताऊंगा उसके पहले एक खण्डन कर दूँ ताकि आप गौरवशाली और समृद्ध सनातन संस्कृति के उन्नत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझ सके और ये जान सके कि हमारा सनातन धर्म कितना वैज्ञानिक है.
सृष्टि निर्माण की शुरुआत का दिन ही है हिंदी नववर्ष का शुभारंभ
हाल ही मे स्टीफेन हॉकिन्स का निधन हुआ है और उनकी एक बात बार बार नास्तिक प्रचारित कर रहे है कि इस सदी का महान वैज्ञानिक जिसने बहुत सी थ्योरी दी. वो मानता था कि इस ब्रम्हांड की उत्पत्ति एक प्रक्रिया से शुरू हुई कोई भी ईश्वर नहीं है.
उन्होंने अपनी पुस्तक Grand Design में कहा है कि सृष्टि, ब्रम्हांड जीवन का निर्माण (Creation) स्वतः भौतिक शास्त्र के नियमों के अनुसार हुआ है. यह तो पता नहीं कि भगवान् है कि नहीं इस तरह अगर स्टीफन की बात माना जाय तो सृष्टि / ब्रम्हांड के निर्माण में भगवान् की कोई भूमिका नहीं है.
सेल्फ क्रिएशन (self creation) का सिद्धांत और सनातन धर्म
अगर यह मान लिया जाय कि ब्रम्हांड का निर्माण ईश्वर ने किया तो यह प्रश्न आवश्यक हो जाता है कि भगवान को किसने बनाया, वह कहाँ से आया. तो इसका जवाब है यही सेल्फ क्रिएशन की थ्योरी जो स्टीफन ने दी थी अब जरा इसे शास्त्रीय तरीके से देखिए —
शिव जी की उत्पत्ति भी स्वत : हुई है. इसीलिए उन्हें स्वयंभुव् (या शंभू ) कहा गया है. स्वतः स्फूर्त उत्पत्ति ( Self creation ) का सिद्धांत हमारे यहाँ पहले से मौजूद है जिसे आप पश्चिमी ठप्पे के बाद सच मानते हो लेकिन वही यदि कोई सनातनी बताए तो उसका मजाक उड़ाते हो मूर्ख कौन है खुद निर्णय कीजियेगा.
हिंदी नववर्ष का उल्लेख प्रभाव और इस नववर्ष आरम्भ से होने वाले परिवर्तन
नववर्ष का उल्लेख –
चैत्रे मासे जगद ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेअहानि.
शुक्ल पक्षे समग्रंतु, तदा सूर्योदये सति..
(हिमाद्रि ग्रंथ)
अर्थात –
चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा ने जगत की रचना की.
लंकानगर्यामुदयाच्च भानोस्त स्यैव वारे प्रथमं बभूव.
मधे: सितादेर्दिन मास वर्ष युगादिकानां युगपत्प्रवृत्ति:..
(भास्कराचार्य कृत ‘सिद्घांत शिरोमणि)
अर्थात –
…………….. आदित्य (रवि) वार में चैत्र मास शुक्ल पक्ष के प्रारंभ में दिन मास वर्ष युग आदि एक साथ प्रारंभ हुए. ………………… इसीलिए सृष्टि संवत, वैवस्वतादि संवंतरारंभ, सतयुगादि युगारंभ, विक्रमी संवत, कलिसंवत , चैत्रशुदि प्रतिपदा से प्रारंभ होते हैं.
जलवायु परिवर्तन का आरंभ और शरीर को स्वस्थ और डिटॉक्सीफिकेशन रखने की तैयारी –
चैत्र मास से हमारा नववर्ष आरंभ होता है और नवरात्रि भी इसी माह में आती हैं, जिन्हें चैत्र नवरात्र भी कहा जाता है. वैसे तो, नवरात्र पर्व साल में दो बार आता है. पहला आश्विन मास में और दूसरा चैत्र मास में.
और सबसे विशेष बात ये है कि इन दोनों ही महीनों में मौसम में परिवर्तन होता है यानि सर्दी और गर्मी का संगम का समय होता है. अश्विन मास में जहां सर्दियों का आगमन होता है, वहीं चैत्र महीने में गर्मियों की शुरुआत होती है और नये साल की शुरुआत भी.
मौसम के बदलाव के साथ ही पूरे वातावरण में बदलाव होता है और इसके साथ ही हमारे शरीर में भी बदलाव होता है. मौसम के इन्हीं बदलावों से शरीर को बचाने के लिये नवरात्र के नौ दिनों का व्रत रखा जाता है जिससे शरीर स्वस्थ रहे.
नवरात्रि यानि मां दुर्गा की नौ दिनों तक उपासना करना, जिन्हें शक्ति प्रदान करने वाली देवी भी माना गया है अर्थात मौसम के बदलाव के साथ ही उपासना के माध्यम से देवी से नये साल को हर्षोल्लास के साथ मनाने के लिये शक्ति का प्रसाद मांगते हैं.
विशेष
शक्ति उपासना का महापर्व है नवरात्र. एक वर्ष में कुल चार नवरात्र पड़ते हैं, इसमें से दो नवरात्र प्रत्यक्ष और दो गुप्त होते हैं. प्रत्यक्ष नवरात्रों को शारदीय और बासंती या चैत्र नवरात्र के नाम से जाना जाता है. यह चारों नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल काल में मनाए जाते हैं.
प्रत्यक्ष नवरात्रों को योग-भोग प्रदाता माना जाता है, जबकि गुप्त नवरात्र साधना और सिद्धि के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं. मौसम में होने वाले बदलाव के समय सृष्टि और शरीर में बड़े बदलाव होते हैं. ऐसे समय में आहार-विहार-विचार की सात्विकता से शक्ति संचित होती है और जीवन के वृहदतर लक्ष्य और संभावनाएं साकार होने लगती हैं.
इन नवरात्रों में शक्ति के विभिन्न विग्रहों की पूजा की जाती है. शक्ति स्वरूपा मां भगवती संपूर्णता की प्रतीक हैं. वह शास्त्रों से अपने भक्तों को विमल मति प्रदान करती हैं तो दूसरी तरफ अस्त्रों से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं.
इसीलिए भगवती को सर्वशास्त्रमयी और सर्वास्त्रधारिणी कहा जाता है. नवरात्र के नौ दिनों में मनुष्य अपने सर्वविध कल्याण की कामना करता है और चतुर्विध पुरुषार्थ को पूरा करने की कोशिश करता है.
कल्याण और प्रगति शक्ति के अभाव में संभव नहीं, इसलिए शक्ति उपासना के महापर्व नवरात्र का प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज में विशेष स्थान रहा है. चैत्र नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है. सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं.
सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्त्व वाले होते हैं, इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है. चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना प्रारंभ होती है..
आप सभी स्वजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.