मंदिर में घंटियों का महत्व जान, अपने भीतर बसे मंदिर को पहचानें

नाद ब्रह्म के विरले जानकार स्वामी गंगाराम जी बता रहे हैं कि आप कैसे अपने भीतर के मंदिर को जान सकते हैं.

मंदिरों की परिकल्पना को वो इंसान के शारीरिक अस्तित्व से जोड़ते हुए बताते हैं कि हमारा शरीर ही एक मंदिर है.

इस मंदिर के पिलर उसके हाथ और पैर हैं. शरीर का धड़ एक गर्भ गृह की तरह होता है. वहीं मंदिर के गुंबद या शिखरों की परिकल्पना हमारे सिर वाले हिस्से से आई.

नाद ही हर ध्यान का अंतिम प्राप्त है. ये नाद सहस्त्रार में सुनाई देता है और इसी नाद को घंटियों के रूप में मंदिरों में रखा गया.

मंदिर मनुष्य के भीतर छिपे परमात्मा के घर का एक बाह्य निरुपण ही है. बाह्य निरुपण से शुरू कर भीतर की यात्रा तक पहुंचना हर मानव मात्र का परम लक्ष्य है. नाद तो सहस्त्रार में हमेशा से है उसे सुन लेना ही सत्य का साक्षात्कार है.

स्वामी गंगाराम मंदिर का संधि विच्छेद करते हुए बताते हैं कि मंदिर का अर्थ होता है मन के अन्दर.

सारे धर्मों के अपने मंदिर होते हैं… हम उस मकान को मंदिर कहते हैं जिसमें भगवान की मूर्ति रखते हैं, लेकिन वह प्रतीकात्मक है. वास्विक मंदिर तो आपके अन्दर है और ये हर इंसान के अंदर है…

हमारे शरीर रूपी मकान का धड़ गर्भ गृह है, चेहरा गुम्बद है… और मन अर्थात मस्तिष्क ही वह स्थान है जहाँ जब घंटी बजती है तो भगवान दर्शन देने उद्वेलित हो जाते हैं… जैसे हर मंदिर के बीचोबीच घंटी टांगते हैं वैसे ही मस्तिष्क के बीचोंबीच भी एक घंटी है.

काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार इन पांच विकारों के अलावा हमारे मस्तिष्क में एक घंटी भी है… या तो ये पांच डेरा डाले रहेंगे… या ये घंटी… जिसे ये घंटी बजाना आ गयी, या सद्गुरु के मार्गदर्शन में इस घंटी की आवाज़ को सुनना आ गया… वहां एक नाद उठता है जिसे हम ब्रह्मनाद कहते हैं. इस ब्रह्मनाद के ध्वनी कम्पन्न से ही ये विकार रूपी शत्रु विदा हो जाते हैं… और जब विकार चले जाएं तो भगवान बचता है, सत्य बचता… इसे ही सत्य का दर्शन कहते हैं…

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