उसकी चुन्नी में समाई है
दुनिया की हर सुगंध
सुबह उसी में वो आँगन से
मोगरे के फूल
और तुलसी के पत्ते लाती है
और प्रभु के चरणों में करती है अर्पित…
खाना बनाते समय आये पसीने को
पोंछते समय
कहाँ उसे ख़याल रहता है
कि अपने बच्चों की बहती नाक भी तो
उसी चुन्नी से साफ़ की थी
प्याज़ काटते समय
आँख में आये आंसू पोंछते हुए भी
ध्यान नहीं रहता
इसीसे मिर्च वाले हाथ पोंछे थे
जब अजी सुनती हो की पुकार पर
तुरंत हाज़िरी के लिए
लगाई थी दौड़
अरे क्या हुआ रो क्यों रही हो
कहते हुए जब वो चुन्नी पकड़ लेते हैं
तो बाबुजी आ रहे कहकर
उसी को माथे पर रख लेती है…
माँ ठण्ड लग रही कहकर
जब बच्चा गोद में बैठ जाता है
तो इसी चुन्नी को
आँचल सा ओढ़ाकर
सुनाती है लोरियां
यही चुन्नी है
जिसमें कभी वो हल्दी कुमकुम में
बांटने वाली चूड़ियां
और बिंदी के पत्ते लेकर
माथे पर लगाती है
कभी इसी चुन्नी को
ईश्वर के सामने फैलाकर
बच्चे के स्वास्थ्य की भीख मांगती है
माँ के लिए जो देह के सबसे पवित्र अंग को
ढांकने के काम आती थी
वह चुन्नी न जाने कहाँ उड़ कर
उघाड़ रही है लाज
गुलज़ार तुम अब कैसे लिखोगे गीत उस पर
कि चुन्नी ले के सोती थी कमाल लगती थी….
पानी में जलता चराग़ लगती थी….
क्या हम सच में छोड़ आये वो गलियाँ….
– माँ जीवन शैफाली