चाणक्य के फूफा वाली कूटनीति… तब भी ओखली में कूट कर पुदीना बोया गया था जब आपने लखनऊ में महिष्मती जी के साथ छह-छह महीना बारी-बारी वाला खेल खेला था.
उस कूटनीति का परिणाम आप ने तीस वर्ष के वनवास के रूप में झेला और उत्तर प्रदेश की जनता ने उलूक राज का नंगा नाच.
इण्डिया शाइनिंग भी आप की कूटनीति ही थी, जिसका प्रतिफल भारत ने 10 वर्ष सिग्नोरा की गुलामी काट कर भोगा.
कश्मीर में जो कूटनीति आप कूट रहे हैं उनसे भी उगी नागफनियों के कांटे संभवतः आप को ना चुभें, पर सत्य यह भी है कि अब वहाँ का हिन्दू स्वयं को हमेशा की तरह ठगा हुआ पा रहा है.
बिहार में भी साबिर अली वाली कूटनीति करके आप ने कूटनीति की अच्छी फसल काटी थी.
गौ रक्षक को गुंडा कहना, संघ कार्यकर्ताओं की हत्या पर मौन और जफ़र सरेशवाला की अपान वायु से कार्यालय का पवित्रीकरण जैसी कूटनीति, स्वर्गलोक से टेलीपैथी विधि द्वारा स्वयं आचार्य चाणक्य ही समझा रहे होंगे.
वैसे आप की यह कालकूट कूटनीति हिन्दू हितों के मामले में क्यों मौन हो जाती है? यह प्रबल कूटनीतिज्ञता, कन्हैया कुमार के मामले में कुछ भी न कर सकने में क्यों विवश है?
यह कूटनीतिज्ञता रोंहिंग्या के दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ते दड़बों पर कहाँ सो जाती है? महबूबा के हरे दुपट्टे में छुपी कूटनीति ने कितने कश्मीरी पंडितों को वापस बसाया है?
जनसँख्या जिहाद पर आपकी कूटनीति कोई योजना बनाने में क्यों विफल है? प्रश्नों की सूची लम्बी है और यह प्रश्न मेरे नहीं… लाखों – लाख विचारधारा को समर्पित लोगों के हैं.
एक बात फिर दोहराए देता हूँ; ये जो लहर है ना, ये रोज़-रोज़ नहीं आती, जब आम वोटर अपना पेट काट कर अपने हिस्से के 500 के साथ पौवा कुर्बान करता है और लोग अपना व्यवसायिक निजी हित किनारे रख कर आप का समर्थन करते हैं, तब जाकर यह लहर आती है बाबू साहब!
प्रश्न यह है कि कोई वोटर 500 और पौवे पर लात आखिर क्यों मारता है? आखिर कोई अपना व्यावसायिक हित क्यों त्यागता है?
लोग त्याग करने को तब तैयार होते हैं जब उन्हें आप की सत्ता आगमन में राष्ट्र और धर्म रक्षा का आयाम दिखता है. पर जब आप एक राज्यसभा सीट के लिए एक गंदे नाली के बरसाती मेंढ़क को मंदिर के प्रांगण में बिठाएंगे तो कोई सामान्य व्यक्ति काहे अपना व्यवसायिक हित ताक पर रखेगा?
जिन राम के नाम पर आज आप जम्बूदीप के 70% हिस्से पर राज्य कर रहे हैं उनके निंदक को शरण देकर आपने कूटनीति नहीं, अपने गले में जहरीला सांप डाला है.
संभव हो तो इस सांप को उतार फेंकिये, ज्यादा दूर न सही तो कम से कम संपेरे के अंगोछे में ही लिपटवा दीजिए.
हमें आपसे शिवाजी बनने की अपेक्षा तो नहीं है पर किसी शिवाजी के आगमन तक राजनैतिक आत्मघात न करने की अपेक्षा हमने अवश्य पाल रखी है. संभव हो तो बस इतनी सी अपेक्षा पर खरा उतर जाना छप्पन इंची बाबू!
जय महाकाल… जय श्री राम… जयति जय हिन्दूराष्ट्रम