भारत की महान जनता रुष्ट है…
लोग कह रहे हैं कि भाजपा ने नरेश अग्रवाल को पार्टी में क्यों लिया, राजनैतिक शुचिता कहाँ गयी?
वैसे इनसे पूछा जाय कि आपने अंतिम बार भारत में ‘राजनैतिक शुचिता’ को कब देखा था, तो याद करने में इन्हें घण्टों लग जाएंगे.
अद्भुत है यह देश…
सत्तर वर्षों के लोकतांत्रिक अनुभव के बाद भी लोगों को लगता है कि राजनीति में शुचिता जैसी किसी वस्तु के लिए स्थान भी है.
जीवन भर राजनैतिक शुचिता की बात करने वाले अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को एक वोट से गिरा देने वाले लोकतंत्र में शुचिता निरर्थक शब्द है भाई.
लोकतंत्र में सत्ता विचार से नहीं वोट से मिलती है.
तनिक स्मरण शक्ति पर जोर डालिये. 2002 में नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाये जाने के कारण भाजपा का साथ छोड़ देने वाले रामविलास पासवान 2014 में उसी नरेंद्र मोदी के अधीन चुनाव लड़ कर सात में सात सीटें जीत लेते हैं, और लोगों को उनके बेटे में एक योग्य मुख्यमंत्री दिखने लगता है. भइया जी, यह है हमारा लोकतंत्र.
तनिक झाँकिये बिहार में…
लालू यादव का पूरा खानदान सीबीआई अदालत की परिक्रमा कर रहा है और वे स्वयं छह वर्ष की सज़ा काट रहे हैं, फिर भी बिहार का 35 प्रतिशत जनाधार उनकी जेब में है. यह है हमारा लोकतंत्र.
तनिक सोचिये तो, ऐसे लोकतंत्र में आप भाजपा से शुचिता की अपेक्षा कैसे और क्यों कर रहे हैं? क्या मिलेगा भाजपा को शुचिता की लाश ढो कर? कितने प्रतिशत मतदाता चुनावकाल में ऐसी बातों के आधार पर वोट देते हैं?
श्रीमान! भाजपा एक राजनैतिक दल है उससे राजनैतिक दल जैसी अपेक्षा ही रखिये. जैसी व्यवस्था होगी, जैसे मतदाता होंगे, वैसा ही भाजपा का भी व्यवहार होगा.
इसी व्यवहार के बल पर वह देश पर राज्य कर रही है, वरना शुचिता के युग में तो ‘अंग्रेजों के मित्र’ सिंधिया परिवार से हार गए थे अटल जी.
कल यदि उसे लगे कि अकबरुद्दीन ओवैसी को पार्टी में लेने से उसका जनाधार बढ़ जाएगा, तो वह उसे भी गले लगा लेगी. यह भाजपा का चरित्र हो न हो, लोकतंत्र का यही चरित्र है.
आप कहते हैं कि नरेश को भाजपा कैसे ले सकती है. मित्र! इस देश में बहुत कुछ ऐसा होता है जो केवल यहीं होता है.
यह दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहाँ तीन बार मुख्यमंत्री रहने वाली मायावती दलित कहलाती हैं, और तेरह हजार की नौकरी करने वाला सर्वेश तिवारी शोषक.
यह इकलौता देश है जहाँ कोई नेता अपनी जाति के नाम पर ही लाखों की भीड़ खड़ी करता है और वहीं मञ्च से जातिवाद को समाप्त करने की बात करता है, और लोग तालियाँ बजाते हैं.
इसी देश में स्वयं को सबसे वैज्ञानिक सम्प्रदाय बताने वाले किरस्तानों का धर्मगुरु टीवी पर चीख चीख कर कहता है कि यीशु की शरण मे आने भर से कैंसर और एड्स जैसे रोग ठीक हो जाएंगे.
न्यूज़ चैनल पर डिबेट में बलात्कार के मुद्दे पर एक एंकर चीख चीख कर देश भर को दोषी ठहराता है, और अगले ही पल ब्रेक में उसी चैनल पर कोई मॉडल बताता है कि किस तरह एक विशेष ब्रांड का परफ्यूम लगा लेने से लड़कियाँ नग्न हो कर चिपकने लगती हैं.
टीवी के एक कथित रियलिटी शो में एक आठ वर्ष का बच्चा जब लड़कियों का गाल नोचता है तो सभी जज लहालोट हो कर तालियाँ बजाते हैं, और सलमान खान लोटपोट हो कर कहते हैं कि “यह बच्चा नहीं, पूरा का पूरा आदमी है”, और उसी समय उसी मालिक के दूसरे चैनल में डिबेट का मुद्दा होता है कि “छोटे छोटे बच्चों में भी यौन हिंसा के भाव कहाँ से आ रहे हैं”. भाई जी, यह है आपका देश.
एक बात और बताऊं? जो नरेश अग्रवाल कल तक हमारे देवताओं का अपमान करता था न, वही नरेश अग्रवाल कल जय श्रीराम के जयकारे लगाएगा. अरे देवताओं की तो छोड़िए, कुर्सी के लिए श्रीमान किसी की भी जयकार कर सकते हैं.
आपने देखा नहीं, “तिलक तराजू और तलावर, इनको मारो जूते चार” कहने वाली बहन जी कुर्सी के लिए किस तरह “हाथी नहीं गणेश है, ब्रम्हा विष्णु महेश है” कहती फिरी हैं.
श्रीमान! इस लोकतंत्र में कब कौन क्या कहेगा और क्या करेगा, यह कोई नहीं जानता.
यही है हमारा देश, यही है हमारी व्यवस्था, यही है हमारी औकात.
शुचिता खोजने चले हैं. भाई मियाँ, जाइये टीवी पर डिबेट सुनिए…