कल लंच में डॉक्टर्स मेस में बैठा था. टीवी पर एक खबर आ रही थी नॉर्थ और साउथ कोरिया के बीच कुछ बातचीत चल रही है.
मेरे बगल में एक कोरियाई लड़की बैठी थी. मैंने उसे टीवी की तरफ दिखाया – देखो, कुछ इम्पोर्टेन्ट हो रहा है क्या?
उसने दो मिनट न्यूज़ देखा, फिर कहा – “आई डोन्ट केअर… लोग नॉर्थ और साउथ कोरिया के एक होने की बात करते हैं. मैं नहीं चाहती. मेरे साउथ कोरिया को अकेला छोड़ दो. हमें नार्थ से कोई लेना देना नहीं है.”
उसने कहा, “सिर्फ सरकार की बात नहीं है… वे बर्बाद लोग हैं. 60 सालों में कम्युनिज्म ने पब्लिक के दिमाग में इतना कूड़ा भर दिया है कि इनका कुछ नहीं हो सकता… मुझे इनकी कोई परवाह नहीं है, सारे के सारे अगर मर जाएँ आई डोन्ट केअर…”
जिसने कम्युनिज्म को आसपास से देखा है और समझा है उसकी कम्युनिज्म के लिए यह घृणा सहज ही होती है.
पर पाँच मिनट बाद वह कुछ फेमिनिस्ट बातें करने लगी. मैंने पूछा, तुम्हें कम्युनिज्म से इतनी घृणा है पर दूसरी तरफ तुम एक लेफ्टिस्ट थॉट की इतनी बड़ी हिमायती हो…
उसने पूछा – “कौन सा लेफ्टिस्ट थॉट?”
मैंने कहा – तुम्हें पता है? फेमिनिज्म औरतों के हिस्से का कम्युनिज्म है. इससे औरतों का सिर्फ उतना ही भला होगा जितना कम्युनिज्म से मज़दूरों का हुआ…
“क्या बकवास कर रहे हो? फेमिनिज्म इस अबाउट इक्वलिटी…”
मैंने कहा – कम्युनिज्म भी समानता की ही बात थी… लेकिन वो कहने की बात है. कम्युनिज्म भी समानता के लिए नहीं था, कॉन्फ्लिक्ट के लिए था. और एक खास पॉलिटिकल आइडियोलॉजी के लिए सिपाही रिक्रूट करने के लिए था.
वही रोल फेमिनिज्म का है. जैसे कम्युनिज्म एक औद्योगिक सिस्टम में मज़दूरों को संघर्षरत रखने के लिए बना है… वैसे ही फेमिनिज्म महिलाओं को परिवार नाम की संस्था से कॉन्फ्लिक्ट में खड़ा करने के लिए बना है.
थोड़ा सोचने के बाद उसने कहा – “अगर है भी तो क्या है. अगर कहीं से कोई अच्छा विचार आता है तो क्या उसे इसलिए नकार दिया जाए कि वह वामपंथ से आया है?”
वामपंथ की यह ताक़त है. अगर आप उसे एक रूप में नकार देते हैं तो वह दूसरे रूप में घुस आता है. पर रूप बदलने से वामपंथ की नीयत नहीं बदल जाती.
कम्युनिज्म के रूप में उन्होंने उद्योगों को नष्ट किया, फेमिनिज्म के रूप में परिवारों को नष्ट कर रहा है.
अगर वामपंथ को समझना है तो उसकी नीयत को समझें… और उसे हर रूप में अस्वीकार करें. क्योंकि किसी की नीयत कभी नहीं बदलती…