भारत में पश्चिमी बंगाल के दार्जीलिंग जिले के सिल्लीगुड़ी sub-division स्थित नक्सलबाड़ी गाँव से आंदोलन चालू किया था चारु मजूमदार ने जिसमें शामिल लोगों को नक्सली कहा जाता था.
लेकिन इस आंदोलन में सशस्त्र खूनी जंग की शुरुआत की थी कानू सान्याल ने… भारत में माओवाद के लड़ाकू दस्ते का जन्मदाता था कानू सान्याल.
सान्याल ने KS (कोंडापल्ली सीतारमैय्या) के साथ मिल कर PWG (peoples war group) तैयार किया था…
PWG के बारे में पढ़िए, भारत के इन लेनिनवादी और माओवादी कम्युनिस्टों द्वारा की गई हत्याओं से आपका रोम रोम दहल उठेगा… वापस कानू सान्याल पर आते हैं…
कानू सान्याल कई वर्षों की खूनी लड़ाई के बाद बदल गया था। उसको खूनी लड़ाई से नफरत हो गयी थी और वो माओवादी आन्दोलन का घोर विरोधी हो गया था।
उसका कहना था कि किसी कांस्टेबल या पुलिसकर्मी की हत्या से क्रांति नहीं आती, क्या कुछ लोगों की हत्या से क्रान्ति आएगी, सुधार होगा या गरीबों को न्याय मिलेगा? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, हमें क्रांति करनी है बदलाव के लिए, न कि लाशों का गोदाम बनाना है.
इस कारण बाकी के भारत के कम्युनिस्टों ने कानू सान्याल को पागल घोषित कर दिया। कम्युनिस्टों ने कानू सान्याल को अपने अनुसार मौकापरस्त, धोखेबाज़, मुखबिर और यहाँ तक कि भगोड़ा घोषित कर दिया था.
माओवादी नेता किशनजी ने कानू सान्याल को लालगढ़ की घेराबंदी के दौरान विरोध करने पर बेहद अपमानित किया था…
हत्याओं के अपराधबोध से ग्रसित और अपने लोगों द्वारा भयंकर धोखा दिए जाने पर 23 मार्च 2010 को कानू सान्याल ने अपने निवास पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला ने भी सीताराम येचुरी के खिलाफ एक पोस्ट डाला था जिसमें उसने भारतीय कम्युनिज्म पर सवाल उठाए थे।
उसने कम्युनिज्म से अपने मोहभंग के बारे में भी लिखा था… फेसबुक पर किये अपने इस पोस्ट के कुछ दिनों के बाद उसने भी फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली…
उसका लिखा सुसाइड पत्र अपने आप में भारतीय कम्युनिस्टों के मुख पर कालिख है जिसको वो प्रचारित करते घूम रहे हैं…
भारतीय कम्युनिस्ट ही इतना बेशर्म और बेगैरत हो सकता है जो अपनी गंदगी भरी सोच, अपने कुरूप चरित्र को प्रचारित करता फिरता है.