गौरक्षकों की निंदा, गांधी और इस्लाम की प्रशंसा. जितनी हमें इन बातों से चिढ़ है, उतना ही मोदी जी उन्हें किए जाते हैं.
परिणाम यह भी है कि अधिकाधिक लोग इन बातों के बारे में जानने लगे हैं, सच्चाइयों को समझने लगे हैं. अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने की भी सोच रहे हैं.
हम में यह बात बस चुकी है कि सब कुछ सरकार को करना है और जो ना करे वो सरकार निकम्मी है.
और इस भाव को सब से अधिक बढ़ावा वे लोग देते हैं जो बोलने-लिखने से अतिरिक्त खुद न कुछ करते हैं, और न करना चाहते हैं.
यह बताएं कि मोदी जी से चिढ़कर ही, आप ने उक्त समस्याओं की जानकारी अधिकाधिक कितनी विकसित की?
क्या आज आप ज़्यादा नहीं जानते? जितने खुलेपन से आजतक आप ये करते आए हैं, क्या काँग्रेस राज में कर सकते थे?
माइक्रो aggression ने अमरिका में क्या कहर बरपा रखा है, आप जानते भी हैं? आप को भारत में भी इस बला ने किस कदर जकड़ रखा है, आप को अंदाजा भी है?
इतने सुविधाभोगी हो गए हैं हम कि जरा सी भी खलल बर्दाश्त के बाहर हैं, और बात आर पार के युद्ध की करते हैं. इसमें कहने को बहुत कुछ है लेकिन मौन रहना अधिक श्रेयस्कर है.
युद्ध का बड़ा पहलू आर्थिक होता है. मार झेलकर भी चलता रहता इंडस्ट्रियल इनफ्रास्ट्रक्चर.
विश्व युद्ध में कूदने के पहले जर्मनी और जापान की अवस्थाओं की जानकारी प्राप्त कीजिये, बात पता चलेगी.
इज़राइल इतना सा देश हो कर भी हर तरह की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के मामले में स्वयंपूर्ण क्यों है समझ जाएँगे. वे सस्ते के चक्कर में अपने उद्योग बंद करवा के चाइना का माल नहीं बेचते.
अपने लोग स्वदेशी उत्पादन को किस तरह से देखते हैं और इंपोर्टेड उत्पादन को कितने अहोभाव से देखते हैं, मैं हमेशा उससे व्यथित होता हूँ.
जाने दीजिये, इस विषय पर मैं अधिक व्यक्त होना नहीं चाहता, कोर वोटर हिन्दूविरोधी होने का तमगा देने लगते हैं और मैं अपनी बात पर निरर्थक अड़े रहकर फूट के पक्ष में नहीं हूँ. अड़े रहने के मौके अलग होते हैं.
वैसे बात मोदी जी को लेकर निकली थी तो ‘उनका कोई विकल्प नहीं है’ वाली बात का परामर्श लेना आवश्यक है. बात सत्य है लेकिन इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं.
केवल बाराती हो कर परोसे पकवान में दोष निकालना आसान है. अगर अपने ही देश में हम केवल होटल में आए ग्राहक की तरह रहें तो यह ठीक नहीं है.
फिर धीरे धीरे होटल हॉस्टल में और फिर जेल में तब्दील हो जाएगा और आप कुछ नहीं कर सकेंगे क्योंकि आप को आसानी से इगनोर किया जा सकता है.
विकल्पहीनता मुझे भी सालती है क्योंकि उम्र भी कोई चीज है और मोदी जी सत्तर के होने जा रहे हैं और अमर भी नहीं हैं.
वैसे मोदी जी ने हिंदुओं के लिए कुछ नहीं किया यह चिल्लाते रहने वालों ने भी चिल्लाते रहने के अलावा हिंदुओं के लिए कुछ नहीं किया है.
विधर्मी हमेशा पूरी योजना ले आते हैं, और योजना का प्रेजेंटेशन सटीक रहता है. मीडिया में भी उसके लिए माहौल बनाया जाता है. नकारना असंभव हो जाता है.
हमारी तरफ से कौन सी योजना आती है? 2015 से एक योजना प्रस्तुत की थी, जिसको बताई उसने वाहवाही की लेकिन इसे आगे काम के लोगों तक ले जाने की विनती की तो फोन व्यस्त मिलने लगा. बाकी आप समझदार हैं.
पिछले हफ्ते एक सज्जन ने उस पीडीएफ़ को कई व्हाट्सएप ग्रुप्स में फैला दिया परिणामत: कई संदेश आए लेकिन काम का कोई नहीं. न संदेश न व्यक्ति.
खैर, मुद्दे की बात करते हैं, बात यह है कि हमारी तरफ से हिंदुओं को लाभ देने वाली कौन सी योजना प्रस्तुत हुई या सरकार पर दबाव बना?
इसके लिए भी पूर्णकालिक आदमी लगाने पड़ते हैं, जो हमारे विरोधी और विधर्मी करते हैं और अक्सर हमारे ही खर्चे से. अपने यहाँ तो बस नि: शुल्क निस्वार्थ की गर्जनाएँ होती हैं – ढंग के लोगों के लिए यही गर्जनाएँ, वर्जनाएँ भी होती हैं. यू पे पीनट्स……
विचार को आचरण में लानेवाले भी मिले जिनका नामनिर्देश करना सही नहीं. इसलिए बिना नाम लिए ही आभार.
2019 में मोदी जी का विकल्प क्या है यह हम सभी को पता है इसीलिए मोदी जी को मेरा समर्थन रहेगा. 2024 तक हिन्दू, बृहत हिन्दू हित में कुछ काम करें तो या तो सरकार हिंदुओं की भी बात सुनने को विवश हो जाये या फिर भाजपा का भी हिन्दू विकल्प बन खड़ा हो जाये.
मोदी जी ने क्या नहीं किया, क्या करना चाहिए था, इस पर मेरी लिस्ट शायद आप से लंबी हो सकती है. लेकिन मुझे पता है कि उनसे वे काम करवाने के लिए मैंने भी कुछ नहीं किया.
विरोधी अपने काम करवाने के लिए बहुत कुछ करते हैं, वो मैकेनिज्म बनाना मेरे से नहीं हुआ. तो इसलिए दुबारा मोदी जी ही, क्योंकि उनका विकल्प क्या है यह मुझे पता है. 2024 के लिए अगर अलग परिणाम चाहता हूँ तो उसके लिए काम करना होगा. सब को.
और एक बात है. क्रिकेट के बारे में बहुतों को काफी कुछ जानकारी होती है. जिस गेंद पर विकेट गई वो गेंद तेंडुलकर को कैसी खेलनी चाहिए थी यह बताने वाले कई मिलेंगे. बाकी आप समझदार हैं ऐसी आशा है.
तटस्थ का सब से बड़ा अपराध यही होता है जब वो ज्ञात शत्रु से लड़ने से अपने लोगों को रोकता है और वही बात हार जीत का फैसला करने में निर्णायक साबित होती है. शत्रु जीतता है तो तटस्थ बचता नहीं, क्योंकि शत्रु ऐसे किसी भी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ता जो कुछ लोगों को प्रभावित कर सकता हो. Yuri Bezemenov को पढ़िये कभी इस विषय में.
बाकी आप की इच्छा. और हाँ, tactical supporter और भक्त इन दोनों में फर्क आप को पता होगा ऐसी आशा है, जब इस लेख पर आप टिप्पणी करना चाहें तो इस बात का खास ख्याल रखिएगा.