1987-88 की बात है. मेरे कई मित्र विश्वनाथ प्रताप सिंह के चुनाव के लिए लखनऊ से इलाहाबाद गये थे. मैं खुद उस समय तक राजनीति का क ख ग भी नहीं समझता था.
फिर भी -अब- राजनीति में वी. पी. सिंह को मैं पहला नेता मानता हूँ जिन्होंने छोटी राजनीति के लिये भारतीयों को मंडल की आग में झोंक दिया.
बाद में एक ‘महान’ नेता बनने की जगह अपने ही पूर्व प्रशंसकों से भरपूर गालियां खाईं. इतनी अधिक कि उनको आज के समय में कोई भी सही शब्दों के साथ याद ही नहीं करता.
ठीक 5 साल पहले देश को अचानक ही एक दूसरा गांधी मिला. साथ ही एक दूसरा नेहरु भी.
कांग्रेस के भ्रष्टाचार से परेशान और सरकार से निराश लोग अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल में अपना नया तारणहार देखने लगे.
और सिर्फ एक गलती से अन्ना ‘दूसरा गांधी’ बनने की जगह लोगों के लिए एक अगंभीर वरिष्ठ नागरिक बन कर रह गये.
अगर उस समय अन्ना ने संघ को अपमानित करके अपने आंदोलन से दूर न किया होता, और भाजपा को समर्थन दे दिया होता तो वो आज देश के ‘दूसरे’ गांधी होते, और शायद प्रधानमंत्री मोदी भी उनके आगे छोटे नजर आते.
सीधे – लेकिन कम समझदार – अन्ना, अरविंद केजरीवाल जैसों की चाल में फंस गये और भाजपा को ही कांग्रेस से अधिक भ्रष्टाचारी पार्टी बताने लगे.
जबकि भाजपा उस समय 10 साल से केन्द्र की सत्ता से दूर थी, और उससे पहले के वाजपेयी जी के शासन में भ्रष्टाचार की बात तो कोई मान ही नहीं सकता.
सो, अन्ना हजारे एक बेवकूफ़ी की वजह से ‘दूसरे’ गांधी बनते बनते एक ऐसे वृद्ध बन कर रह गये, जिसे लोगों ने गंभीरता से लेना छोड़ दिया… हमेशा के लिए.
अन्ना के ही साथी अरविंद केजरीवाल भी अचानक ही देश की जनता के दुलारे बन गये थे.
अन्ना को राजनीति में न आने का वादा करने के बाद भी केजरीवाल राजनीति में आये – तब भी लोग उनके साथ थे, उनको प्यार करते थे.
पर जैसे ही कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला मचा मचाकर जीतने वाले केजरीवाल ने कांग्रेस के ही सहयोग से दिल्ली में सरकार बनाई – लोग चौंक कर रह गये.
और उसके बाद मोदीजी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़कर केजरीवाल ने यह साबित कर दिया कि वह कांग्रेस की ही ‘बी’ टीम है. बस, जनता ने उनको ‘समझ’ लिया.
कांग्रेस के अपने वोट ‘आप’ को शिफ्ट कर देने से दिल्ली विधानसभा में अपूर्व बहुमत से सरकार तो बना ले गये, लेकिन केजरीवाल मोदी के स्तर का नेता बनते बनते हँसी का पात्र बनकर रह गये.
बहुत निराशा हुई तीन महान लोगों को कूड़े के ढेर में बदलता देखकर… वो तीन जिनसे देश की जनता को बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन बहुत निराशा मिली.
और हां,
जय हिंद.