असमंजस में छोड़ने वाला असमंजस बाबू – 1

जीवन का पहला नाटक देखने गयी थी… बात शायद 2004 या 2005 की है. रंगमंच और अभिनय के प्रति मेरे लगाव की खबर मुझे इसी से लगी थी.

चूंकि नाटक कुछ पचास साठ लोगों के बीच था इसलिए मैं सबसे पीछे जाकर बैठ गयी थी… जैसे ही नाटक शुरू हुआ मेरे चारों तरफ के लोग गायब हो गए.. लगा जैसे पूरे मंच पर अकेले प्रस्तुति देता ये लड़का राकेश यादव मेरे किसी स्वप्न को मेरी ही आँखों के सामने जीवंत कर रहा है… मैं कब सबसे पीछे से उठकर सबसे आगे आ गयी थी मुझे पता ही नहीं चला…

एक डेढ़ घंटे तक अपलक मैं उसके एक एक दृश्य, संवाद को अपने रोम रोम में उतरते देखते रही… सामाजिक सरोकार पर बने एकल प्रस्तुति में ओशो और अमृता प्रीतम की पंक्तियों का समावेश इतना अद्भुत था कि क्या कहूं….

और जैसा कि हर बार होता है… Love at first sight…. किसी कलाकार की कला से मुझे पहली ही नज़र में प्यार हो जाता है… जैसा कि अलौकिक गायक और संगीतकार हरप्रीत सिंह से हुआ था और उसके प्रस्तुति के तुरंत बाद ही I love you कह दिया था…

लेकिन यहाँ मामला ज़रा कठिन था… क्योंकि यह किस्सा स्वामी ध्यान विनय के मिलने से पहले का था तो जिनके साथ नाटक देखने गयी थी उनके सामने यदि में राकेश यादव को I love you कह देती तो उसी दिन मुझे असामाजिक करार दिया जाता…

खैर, कहना बस इतना ही है जैसे आकर्षण हमेशा देह का नहीं होता कभी कभी आत्मा भी आकर्षित करती है वैसे ही प्रेम कलाकार से ही हो आवश्यक नहीं मुझे उसकी कला से भी प्रेम हो सकता है…

हालांकि बाद में मैंने असमंजस बाबू उर्फ राकेश यादव को मिलकर खूब बधाई और आशीर्वाद दिया… और शायद ये मेरा उसके प्रति प्रेम ही था कि फिर जब जब उन्होंने देश भर में घूम घूम कर उस नाटक से ख्याति प्राप्त की तो मुझे हर बार फोन लगाकर बताया कि उन्हें बहुत सारे पदक मिले हैं…

बाद में जीवन की अन्य यात्राओं में वो खोते चले गए… लेकिन जाने से पहले उन्होंने मेरे रंगमंच के प्रेम और अभिनय का बीज अंकुरित करने में मदद की थी वो बड़ा होकर पौधा बन गया था… उसके बाद जैसा कि हर बार होता है जब भी जीवन में किसी चीज़ को शिद्दत से चाहा है तो वो सपना मेरा अवश्य पूरा हुआ है… कुछ ही दिनों में इंदौर के ख्यात रंगमंच निर्देशक ने उनके नाटक में अभिनय के लिए मुझे प्रस्ताव दिया…

हालांकि तीन चार नाटक ही किए लेकिन उतने में ही जितनी ख्याति मिलना थी मिल गयी… फिर तो जैसे रास्ते खुल गए. आकाशवाणी, दूरदर्शन, शोर्ट टेली फिल्म्स, कुछ लोकल विज्ञापन भी किये… शहर भर में होर्डिंग्स और मेट्रो बस पर अपनी तस्वीरें लगते देख रही थी…

लेकिन कुछ पारिवारिक समस्या, व्यक्तिगत तलाश और आध्यात्मिक यात्रा के चलते मैंने एक दिन सबकुछ छोड़ दिया यह कहकर कि नहीं शैफाली तुम्हारा रास्ता यह नहीं है… तुम ग्लैमर की दुनिया के लिए नहीं बनी… जो चीज़ तुम्हें करने के बाद संतुष्टि और आनंद देने के बजाय और विचलित करके छोड़ जाती हो वो रास्ता तुम्हारा नहीं हो सकता…

उसके बाद की यात्रा बहुत अलग रही… जिसके बारे में आप सब जानते ही हैं… क्योंकि उसके बाद स्वामी ध्यान विनय मिल गए… और फिर जीवन किसी अन्य ही आयामों में चला गया… जिसे मैं दूसरी दुनिया कहती हूँ.

खैर, फिर सोशल मीडिया के बदौलत ये असमंजस बाबू उर्फ़ राकेश यादव मुझे दोबारा मिले… राकेश यादव से रिश्ता चाहे औपचारिक हो लेकिन असमंजस बाबू आज भी मेरी चेतना में बहुत गहरे में विराजमान है.

राकेश यादव की व्यक्तिगत यात्रा तो मैं नहीं जानती लेकिन उनकी असमंजस बाबू से होते हुए फिल्मों में हीरो बनकर आने की यात्रा जब देखती हूँ तो मन सहर्ष आनंद से भर जाता है. अपनी आँखों के सामने किसी परिचित को तरक्की के नए मकामों को छूते देखना भी बहुत आनंद और संतुष्टि दे जाता है… उन्होंने बहुत शिद्दत से अपने सपने को जिया है और आज इस मकाम तक पहुंचे हैं…

यहाँ शाहरुख़ का उदाहरण बहुत से लोगों को पसंद न आएगा लेकिन मैं उसके आत्मविश्वास और सपने देखने की दीवानगी की बहुत बड़ी कायल हूँ… कलाकार चाहे जैसा हो… लेकिन जब इस टेड़ी मेढ़ी भौहों, चौड़ी नाक और मोटे होंठ वाले लड़के ने दुनिया में प्रसिद्ध होने का सपना शिद्दत से देखा तो उसने उसे पूरा करके दिखाया…

स्वामी ध्यान विनय अक्सर कहते हैं… मैं तो सपने देखता नहीं, आप सपने देखना मत छोड़ना क्योंकि आपके सपने ज़रूर पूरे होते हैं… क्योंकि कुछ लोगों को अस्तित्व की तरफ से विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है….

आप सब से भी यही कहूंगी… ध्यान बाबा के साथ जीते जीते मैं भी उस अवस्था तक पहुँच चुकी हूँ कि अब सपने नहीं देखती… लेकिन अपने सपने को चेतना स्तर पर इतनी शिद्दत से जी लेती हूँ कि वो जब सच में साकार रूप में सामने आता है तो लगता है अरे इसे तो पहले ही जी चुकी हूँ… इसलिए कई घटनाएं भी मुझे ऐसी लगती है जैसे यह पहले ही मेरे साथ हो चुकी है… ये तो बस उसकी पुनरावृत्ति है..

कदाचित मेरी बातें आपको पूरी तरह समझ न आई हो तो आप राकेश यादव का असंजस बाबू के बारे में लिखा यह लेख अवश्य पढ़ें –

असमंजस में छोड़ने वाला असमंजस बाबू – 2

असमंजस में छोड़ने वाला असमंजस बाबू – 2

असमंजस में छोड़ने वाला असमंजस बाबू – 3

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