कांग्रेस मुक्त भारत की जब बात होती है तो मोदी जी का यह कहना उचित ही है कि कांग्रेस एक राजनैतिक सोच है, विचारधारा है, आचरण है.
लेकिन कैसी राजनैतिक सोच है?
ऐसी कि जिसने राजनीति को सत्तानीति बना दिया. कूटनीति कुनीति बन गई. और फिर जहां सत्ता प्राप्ति सेटिंग, जोड़तोड़, झूठ, अफवाह, दमन, षड्यंत्र का कॉकटेल बन गई.
यहां मानव की सभी कमजोरियों का लाभ उठा कर सत्ता सुख भोगने का मार्ग बनाया गया. एक ऐसी शासन व्यवस्था बनाई गई जहां अवाम को पहले भूखा रखा जाता और फिर रोटी का टुकड़ा फेंककर वोट लिए जाते.
जनता का शोषण करके दशकों तक शासन किया गया. यहाँ प्रजातंत्र सिर्फ दिखावा था. असल सत्ताधारी तो राजवंश से ही होते.
एक समय था जब इस सफेदपोश राजतंत्र के किले की दीवारों को तोड़ पाना असंभव लगता था.
उन दिनों जब जब विपक्षी हारते तो यह कहा जाता कि तुम लोग सब कुछ सीख लोगे मगर उन सा कमीनापन कहाँ से सीखोगे?
मगर हर युग के हर एक असुर शक्ति का समय होता है अगर ना हो तो सृष्टि कैसे चलेगी. ऐसे में जब अवतार की बात की जाती है तो इसके पीछे के सनातन दर्शन को समझना होगा और वो है हरेक आत्मा परमात्मा का ही अंश है. अहं ब्रह्मास्मि के इस ब्रह्म को जाग्रत करने की जरूरत भर होती है.
सरल शब्दों में कहें तो इस युग में चाणक्य और चन्द्रगुप्त की आवश्यकता थी. आज भाजपा के पास ये जोड़ी है. और वो रोज़ राजनैतिक जीत के नए कीर्तिमान बना रही है. और कोई माने ना माने, मगर यह जोड़ी आने वाले समय में मौर्य और गुप्त काल की तरह याद की जाएगी.
यहां लेख का उद्देश्य आधुनिक चाणक्य-चन्द्रगुप्त का महिमामंडन करना नहीं है, बल्कि आज के विपक्ष की रणनीति का विश्लेषण करना है.
विपक्ष को इस जोड़ी का कोई तोड़ नहीं मिल रहा. कैसे मिलेगा. इनके पास सब कुछ है मगर संघ नहीं है. संघ के स्वयंसेवक नहीं है. असल में संघ का स्वयंसेवक तपस्वी है.
तप क्या होता है? पेड़ के नीचे बैठ का सिर्फ ध्यान लगाने और मन्त्र जपने को अगर आप तपस्या मानते हैं तो आप सनातन जीवन दर्शन को नहीं जानते.
सनातन संस्कृति में जीवन भी यज्ञ है और एक गृहस्थ भी तपस्वी हो सकता है. अपने लोभ लालच को नियंत्रित करना तपस्या है. अपनी चाहतों को दबाना भी तपस्या ही है. इन्द्रियों को नियंत्रित रखने वाले को देवराज इंद्र का स्थान प्राप्त है.
यहाँ चरित्र निर्माण संस्कारों द्वारा होता है जहां गर्भ धारण का भी एक संस्कार है. ये संस्कार व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाते हैं जहां स्वयं के पहले समाज होता है, ‘मैं’ से पहले ‘तुम’ होता है, परिवार से पहले राष्ट्र होता है.
सनातन सभ्यता यूं ही नहीं सदियों तक समृद्ध रही. यह अगर आज भी ज़िंदा है तो सिर्फ इसलिए कि यहां घर घर तपस्वी हैं. आप सबसे लड़ सकते हो मगर तपस्वी से नहीं. जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया हो उसे हराया नहीं जा सकता.
यही कारण है जो मुगल कुछ अधिक नुकसान नहीं कर पाए. हाँ अंग्रेजों ने सनातन जीवन दर्शन से हमें थोड़ा दूर करके हमारी संस्कृति का अधिक नुकसान किया था जिसका फायदा फिर एक अंग्रेज की बनाई कांग्रेस ने लम्बे समय तक राज करके उठाया.
मगर इस दौरान संघ ने कभी सनातन संस्करों को नहीं छोड़ा. यही कारण है जो आज वो सत्ता पर एक स्वयंसेवक को पहुंचाने में सफल रही.
संघ के पास ऐसे तपस्वी स्वयंसेवकों की पूरी फौज है. आज के विपक्ष के पास इस फौज का कोई जवाब नहीं है. यही कारण है जो हर विपक्षी नेता भाजपा पर कम, और संघ पर अधिक प्रहार करता है.
उनकी दिक्कत यहीं समाप्त नहीं हो जाती. जहां एक तरफ संघ के स्वयंसेवक बिना किसी लोभ लाभ के कर्मयोगी बन कर निस्वार्थ भाव से राष्ट्रधर्म निभा रहे हैं वहीं ऐसे अनगिनत हिन्दू हैं जो सीधे संघ से नहीं जुड़े हैं मगर उनमे भी सनातन संस्कार हैं.
ये घर घर में बैठे सनातनी तपस्वी आप को तब तक नहीं दिखेंगे जब तक आप खोजना ना चाहो. ये सभी बिना किसी चाहत के समाज और राष्ट्र के लिए पूरे समर्पण भाव से चुपचाप कार्य करते हैं.
अगर इनकी झलक आप को देखनी है तो सोशल मीडिया पर देख लीजिये. असंख्य फेसबुकिये मिल जाएंगे जो बिना किसी लोभ-लाभ के स्वतः राष्ट्रधर्म में लगे हुए हैं. आज कल जो निरंतर विजय मिल रही है वो इन सभी तपस्वियों की जीत है.
क्या इन तपस्वियों का मुकाबला कोई पेड कार्यकर्ता कर सकता है? नहीं नहीं नहीं.
विपक्ष के पास इन सब तपस्वियों-ऋषियों का कोई तोड़ नहीं. यहां तक की वामपंथी कामरेड भी मुकाबला नहीं कर पा रहे. क्योंकि इन वामपंथियों के कार्डहोल्डर भी सत्ता का सुख चख कर हर तरह से बीमार हो चुके हैं.
और फिर उसके पास संस्कारों की कमी रही. वो भी तपस्वी स्वयंसेवको की फौज के हाथो बुरी तरह परास्त हो चुका है. और किसी विपक्ष के पास तो अनुशासित समर्थक थे भी नहीं. यहाँ कांग्रेस के सेवादल की तो बात करना भी समय व्यर्थ करना होगा.
यही सब कारण है जो विपक्ष छटपटा रहा है. उनके पास सनातनियों का कोई विकल्प नहीं. वे यह सब जानते रहे हैं कि इन सब के मूल में सनातन जीवन दर्शन ही है इसलिए गुलामी के समय से और स्वतंत्रता मिलने के बाद में भी इस नींव को हिलाने की कोशिश की जाती रही है.
जब तक भाजपा की जड़ें संघ से सिंचित होती रहेंगी तब तक भाजपा अपराजेय है. और जब तक संघ के संस्कार सनातन जीवन दर्शन से पोषित होते रहेंगे तब तक संघ समृद्ध रहेगा.
और जब तक संघ समृद्ध रहेगा तब तक हिन्दू और हिन्दुस्थान सुरक्षित रहेगा. जहां तक रही बात सनातन की तो वो कभी नष्ट नहीं हो सकता, जो खत्म हो जाए वो सनातन नहीं हो सकता. सनातन तो सृष्टि के साथ अमर है.