(१)
मैं ओस बन कर
बिछ गया था
और तुम
रात भर चलती रही.
तुम सुबह सी हुई
और मैं सुबह का तारा बना!
(२)
एक तारा टंगा रहा
रात भर
और
देखता रहा!
उस ओस की एक बूँद को
बूँद की उम्र
ख़त्म होने को थी
और
फिर सुबह हुई
दो प्रेमी
इस तरह अलग हुए.
(३)
सड़क
दिन भर
धूप में तपती रही.
और रात हुई
सड़क के आँसू फूट पड़े
अलसुबह पूरे रास्ते
रात के ठन्डे चुम्बन बिखरे पड़े थे
ओस बन कर.
अब सड़क फिर से तैयार थी.
धूप के लिए!
(४)
ओस आसमानी आंसू है.
सारी रात रूठे हुए आसमान को मनाती बावली घास
उसके हर छिटके हुए आँसू चूमती है.
बार-बार चूमती है
और सहेजती है
अपने नुकीले होंठो पर
जब आसमान खुश होगा तो बरस पड़ेगा
और घास झूम उठेगी.
आसमान और घास के प्रेम से अनजान लोग तब कह रहे होंगे
उफ़ ये बेवक्त की बारिश भी!
हालाँकि घास ने तब भी गाँव के पिछवाड़े
एक पगडंडी का रास्ता छोड़ दिया था.
वही रास्ता,
जहाँ गाँव का प्रेम अँधेरी रातो में अपनी सांसे लेता है.
घास अब उस पगडंडी पर नहीं उगती!