कांची पीठाधिपति जयेंद्र सरस्वती ने मोक्ष प्राप्त किया. सोशल मीडिया नहीं होता तो देश यह खबर जान भी नहीं पाता. क्योंकि ख़बरों के लिए जिम्मेवार मीडिया कहीं और की खबर लाइव परोसने में व्यस्त है.
यह इस बात का प्रमाण है कि हिन्दू के लिए अप्रत्यक्ष रूप से क्या महत्वपूर्ण बनाया जा रहा है.
हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण मठ के शंकराचार्य का ब्रह्मलीन होने को महत्व ना देना एक बड़ी साज़िश की एक छोटी कड़ी है. हिन्दू समाज को इन कड़ियों को समझना होगा.
आज हिन्दू समाज को आदि शंकराचार्य की तरह एक आधुनिक शंकराचार्य की आवश्यकता है.
जिस वक्त आदि शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी और इनका संचालन शंकराचार्यों को सौंपा था उस वक्त देश में सनातन परंपरा खतरे में थी.
आज तो स्थिति बेहद भयावह है. उस वक्त तो सनातन परम्परा खतरे में थी इस वक्त तो सनातन का अस्तित्व खतरे में है. ऐसे में जयेन्द्र सरस्वती का जाना हमारे लिए एक बड़ी आध्यात्मिक क्षति है.
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी का हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में अहम रोल रहा है. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भी एक सक्रिय भूमिका निभाई.
उन की पहल से मुफ्त अस्पताल, शिक्षण संस्थान और बेहद सस्ती कीमत पर उच्च शिक्षा देने के लिए विश्वविद्यालय तक संचालित हैं।
जयेंद्र सरस्वती कांची कामकोटी पीठ के 69वें मठप्रमुख मात्र नहीं थे. वे हिन्दू हित के कई मामलों में पक्षधर थे और इसकी कीमत भी उन्होंने चुकाई.
बहरहाल उनकी सकारात्मक सक्रियता के कारण ही, 19 साल की उम्र में सांसारिक जीवन का त्याग करके संन्यास ग्रहण करने वाले जयेन्द्र सरस्वती के लाखों की संख्या में अनुयायी थे.
जयेन्द्र सरस्वती को नेत्र चिकित्सालयों और चाइल्ड केयर सेंटर खोलने का भी श्रेय दिया जाता है. कांची मठ इन संस्थाओं को मुफ्त या सब्सिडी पर अपनी सेवाएं प्रदान करता है.
जयेन्द्र सरस्वती वेदों के ज्ञाता थे. उन्हें ऋग्वेद, धर्म शास्त्र, उपनिषद, व्याकरण, वेदांत, न्याय और सभी हिंदू धर्मों के ग्रथों का ज्ञान था.
उनके अनुयायियों के मुताबिक, उनकी साधना उनकी असीम भक्ति के अनुरूप थी. वह सनातनी जीवन में विश्वास करते थे, अल्प मात्रा में भोजन ग्रहण करते थे और सुविधाजनक बिस्तरों पर नहीं सोते थे.
वे शास्त्र परम्परानुसार सभी तरह के शारीरिक सुखों से भी दूर रहते थे और हर तरह के भौतिक सुखों को त्याग चुके थे.
आज उन्होंने ये संसार त्याग दिया. जबकि अब उनकी आवश्यकता हमे अधिक थी.
जयेन्द्र सरस्वती ने कभी एक इंटरव्यू में बाबरी मस्जिद को मात्र एक ‘विजयस्तंभ’ बताया था. काश वो हम करोड़ों हिन्दुओं का सपना साकार करवा पाते. अयोध्या में भव्य राममंदिर का बनना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
जय श्री राम.