प्रकृति हमें हर फल-फूल तब उपलब्ध कराती है जब मानव शरीर और स्वास्थ्य को उसकी आवश्यकता होती है. पूरे भारतवर्ष में पाये जाने वाला गुड़हल का फूल माँ कालीका व भगवान गणेश को अति प्रिय है.
अलग अलग भाषाओँ व क्षेत्र में यह अलग – अलग नामों से जाना जाता है. हिंदी में इसे गुड़हल और ओडहुल, बंगला में जवा, संस्कृत में जपा-कुसुम, गुजराती में जासुद, मराठी में जास्वंद व अंग्रेजी में हिबिस्कस नाम से जाना जाता है.
इसकी 200 से अधिक प्रजातियाँ पायी जाती है. कपास और भिन्डी इस पौधे के वनस्पति परिवार से जुड़े सदस्य है. यह फूल जितना देखने में सुन्दर होता है उससे कई गुना ज्यादा इसमें औषधीय गुण भी विद्यमान है.
जिस तरह योग शास्त्र में रक्तशोधक के रूप में अनुलोम विलोम प्राणायाम को महत्वपूर्ण बताया गया है उसी प्रकार फूलों में गुड़हल के फूल को उत्तम रक्तशोधक माना गया है.
गुड़हल की कली का नित्य प्रातः सेवन जोड़ों के विकारों हेतु लाभकर होता है. इसके सेवन से जोड़ों को गतिशील रखने वाले फ्यूल का उत्पादन व्यवस्थित रहता है. किन्तु याद रहे कली का हरा हिस्सा सेवन नहीं करना है.
गुड़हल का फूल व पत्ती चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं. पेट की गर्मी से होने वाले रोगों में गुड़हल का गुलकंद या शरबत काफी हितकारी तो होता ही है.
गुउन्माद रोग दूर करने वाला यह एकमात्र पुष्प है, गुड़हल के 20 फूल तथा पत्तियों को सुखाकर पाउडर बना लें. इस पाउडर को रोजाना एक गिलास दूध के साथ पीने से याददाश्त बढ़ती है. साथ ही खून की कमी भी दूर होती है.
चेहरे से मुंहासे व धब्बे दूर करने के लिए इसकी फूल व पत्तियों को पानी में पीसकर उसमें शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएं.
मुंह में छाले होने पर गुड़हल के पत्ते चबाएं, जल्दी आराम मिलेगा. यदि आप बालों को सुंदर और मजबूत बनाना चाहते हैं तो गुड़हल के ताजे फूलों को पीसकर बालों पर लगाएं. गुड़हल के फूलों का उपयोग बालों को सुंदर बनाने के लिए भी किया जाता है. इसे पानी में उबाल कर सिर धोने से बालों के झडऩे की समस्या दूर हो जाती है.
होली पर इसके सूखे फूलों से जामुनी रंग का प्राकृतिक रंग बनाएं और इसके गुणों से सरोबार हो जाये.