कई महापुरुषों/ देवियों द्वारा यह प्रश्न पूछा जा रहा है कि आखिर श्रीदेवी के मरने से राष्ट्र को क्या क्षति हुई?
अपनी मंदबुद्धि से उत्तर देने का प्रयास करता हूँ.
क्या अपने इंग्लिश-विंग्लिश फ़िल्म देखी हैं?
आपने देखा कि कैसे अमिताभ उस फिल्म में डरी सहमी सी श्रीदेवी के सामने यह कहकर एक अमेरिकी इमीग्रेशन अफसर के गर्व को धूमिल करते हैं कि, “मैं यहाँ आया हूँ कुछ हज़ार डॉलर उड़ाने, ताकि तुम्हारी दयनीय अर्थव्यवस्था को कुछ राहत दे सकूँ.”
यदि आपने वह दृश्य नहीं देखा-समझा, तो समझिए कि आपकी योग्यता ही नहीं है कि कला जगत ने कल क्या खोया है इसके आंकलन की.
अंग्रेजी सीखने की चुनौती को जय करके जब श्रीदेवी शादी के रिसेप्शन में भावों के आधिपत्य के साथ सायास अंग्रेजी में वरवधू को दाम्पत्य के सूत्र समझाती हैं, तो कला जगत का स्वर्णिम इतिहास लिखा जा रहा होता है.
समझे क्या खोया है?
इन सबके बाद भी जब भारत वापसी की फ्लाइट में वह उत्साहपूर्वक, सगर्व हिंदी समाचार पत्र की मांग करती हैं तो कितना व्यापक एवं प्रभावी संदेश जाता है विश्व भर में हिंदी भाषा को लेकर?
समझे क्या खोया है?
मॉम फ़िल्म देखी है? अपनी बेटी के बलात्कारियों को किस तरह से तड़पा-तड़पा कर मारती हैं?
कह दो कि यह गैरकानूनी तरीका तुम्हे पसंद नहीं आया.
देखना कभी कि कैसे उस दर्द को पर्दे पर जीवंत किया था उस अदाकारा ने, देखना कभी कि कैसे उस दर्द के साथ अपराधियों को दंडित करने की सनातन विधि को सगर्व प्रस्तुत किया था श्री ने!
फिर विचार करना कि देश के कला जगत ने क्या खोया है.
अपनी गली के कुत्ते का यौन व्यवहार देखा है कभी?
क्या कभी उसकी मृत्यु के समय उसकी आलोचना की है इस आधार पर कि उस चरित्रहीन ने कितनी कुत्तियों संग सीज़न सेलिब्रेट किया था?
नहीं ना!
क्योंकि आपको मतलब है केवल उसकी, आपके प्रति वफादारी एवं चोरों, संदिग्धो के प्रति उसकी आक्रामकता से, भौंककर आपको सूचित करने तक से.
उदाहरण निम्न श्रेणी का है किंतु सत्य का बोध करवाने के लिए पर्याप्त एवं उपयुक्त है.
‘यार की यारी से मतलब कि उसकी कारगुज़ारी से?’
हर वो व्यक्ति जो आज उनकी प्रसंशा कर रहा है, वह उन्हें अपना आध्यात्मिक, नैतिक, पारिवारिक अथवा अनुकरणीय गुरु नहीं घोषित कर रहा है, वह केवल उनकी उस अदाकारी के लिए उन्हें एक औपचारिक स्मृति के साथ श्रद्धांजलि दी रहा है क्योंकि यही सनातन सभ्यता एवं परंपरा है.
सभी का यह भौतिक शरीर गुणों-अवगुणों का अद्वितीय मिश्रण है, सभी मनुष्य मात्र है यहाँ!
सभी के जीवन सफलताओं-असफलताओं, अच्छाइयों -बुराइयों से भरे पड़े हैं, ऐसे में यही सनातन सभ्यता है कि किसी की मृत्योपरांत उसके सद्गुणों को स्मरण कर उसकी आत्मा की सद्गति की कामना की जाए.
यह भी ‘सर्वे संतु सुखिनः’ का ही विस्तार है.
जैसे सांसद संसद में हज़ारों मतभेद-मनभेद के बावजूद ‘सांसद हित’ के निर्णय अविलंब, निष्कंटक रूप से स्वीकृत कर देते हैं, वैसे ही मनुष्य को अन्य किसी भी मनुष्य की मृतात्मा को सद्गति हेतु ईश्वर से निवेदन करना ही चाहिए, यही सनातन की विशालता एवं व्योमछत्रता है.
कृपया अपने मूल संस्कारों को स्मरण रखे!
भगवद्गीता पढ़ें और जानें की भौतिक देह से परे प्रत्येक जीवात्मा स्वयं श्रीकृष्ण का ही अंश है!
“अहमात्मा गुडाकेशः सर्वभूताशयस्थितः…”
और भी
मैं एक विद्या विनय सम्पन्न ब्राह्मण, एक चांडाल, एक गाय एवं कुत्ते में समान रूप से स्थित हूँ, मैं सर्वव्यापी हूँ, मैं सभी में हूँ और सभी मुझ में हैं.
होश में आइये सज्जनों/ देवियो! अपने भौतिक शत्रु से स्पर्धा में कहीं उन्ही के स्वरूप में रूपांतरित ना हो जाना!
शेष सर्वमंगलं भवतु!