अध्यात्म से बाहर कुछ भी नहीं है, ना राष्ट्रनीति, ना राजनीति, ना कूटनीति

मोदीजी चाहे ये कहते रहे कि फलाना साल तक काम करूंगा और फलाना समय में राजनीति, लेकिन मैं सिर्फ इतना जानती हूँ मोदीजी चाहे काम करें या राजनीति, उनके हर काम में उनकी कूटनीति और उसके पीछे छुपी राष्ट्रनीति को समझना “बुद्धिजीवियों” के बस की बात नहीं तो हम आम जनता की क्या बिसात.

आप यदि उनके 2014 से लेकर 2017 के कामों की तुलना 2018 में करेंगे तो मैं कहूंगी आप मोदीजी को अभी समझ नहीं पाए. फिर चाहे बात नवाज़ शरीफ के जन्मदिन पर उन्हें सरप्राइज़ विज़िट देने की हो या सर्जिकल स्ट्राइक की हो. या फिर रोहित वेमुला और अख़लाक़ के समय ट्वीट करना हो या इस समय हो रही हत्याओं और सोशल मीडिया पर हर दूसरे दिन वायरल हुई खबरों पर ट्वीट न करना हो.

लोग हँसते हैं जब मैं राजनीति में अध्यात्म को जोड़ देती हूँ. लेकिन मेरे लिए अध्यात्म से बाहर कुछ भी नहीं है, ना राष्ट्रनीति, ना राजनीति, ना कूटनीति.

मोदीजी हर फैसला केवल अपने दिमाग से नहीं करते, जिसके लिए आप उन्हें कोसते रहते हैं दिन रात… जब कोई घटना घटित होती है तो उस समय की परिस्थिति के अनुसार उस घटना का सदुपयोग राष्ट्रहित में कैसे अपनी कूटनीति के माध्यम से करना है, इसके लिए भी अंत:प्रेरणा की आवश्यकता होती है. और ये अंत:प्रेरणा प्रकृति प्रदत्त संकेतों पर आधारित होती है. एक योगी को राष्ट्र चलाने के लिए चुना जाना भी एक लम्बी योजना के परिणाम स्वरूप होता है.

जैसे मनमोहन के अबोले के बाद मोदीजी के बोलबाले का वक्त था. यदि मोदीजी के पहले मनमोहन की जगह कोई वाचाल और सुलझा हुआ इंसान प्रधानमंत्री होता तो मोदीजी के भाषण और उनके कहे गए हर वाक्य का उतना प्रभाव नहीं पड़ता… इस बात का सबसा बड़ा उदाहरण यही है कि उनका “भाइयों और बहनों” कहना तक उनका प्रचलित डायलॉग हो जाता है.

सफ़ेद खड़िया से लिखने के लिए श्यामपट्ट का होना आवश्यक है. वैसे ही उनका किया गया हर कार्य विरोधों के पट्ट पर लिखी गयी वो इबारत है जो बरसों नहीं सदियों के लिए दर्ज कर दी गयी है. जिसके लिए उन्होंने अपनी छवि के बिगड़ने तक की परवाह नहीं की. अपने प्रधानमंत्री पद के खो जाने तक की चिंता न की.

2014 से पहले जो आम जनता की आत्मा सो गयी थी उसको जगाने के लिए उन्होंने ऐसे कई काम किये हैं जो कदाचित आपकी अपेक्षाओं को संतुष्ट न कर पाई हो, लेकिन आपके अन्दर विद्रोह की उस चिंगारी को हवा दी है कि यदि मोदीजी 2019 में न भी आ पाए (ईश्वर न करे ऐसा हो) तब भी आपका विद्रोह तब तक चिंगारी से आग बन चुका हो. फिर सरकार चाहे जो आये, लोकतंत्र बचा रहे और जनता की सजगता बनी रहे, फिर कोई राष्ट्रविरोधी ताकत आम जनता के अन्दर की इस आग को चंद चांदी के सिक्कों की चमक से बुझा न पाए.

आप इसे मेरी चमचागिरी कहकर सिरे से ख़ारिज कर दीजिये. लेकिन मैं मोदीजी की प्रकृति प्रदत्त योजना के साथ अंतिम व्यक्ति बनकर खड़ी रहूँगी.

 

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