श्रीदेवी की अकस्मात मृत्यु के कारणों का ज्योतिषीय विश्लेषण

श्रीदेवी का जन्म कर्क लग्न, वृष राशि और कृतिका नक्षत्र में हुआ है. लग्नेश चन्द्रमा एकादश भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित है और एकादश भाव का स्वामी शुक्र लग्न में स्थित है.

चन्द्रमा और शुक्र जैसे कलात्मक और रचनात्मक ग्रहों के बीच में, ये आपस में परिवर्तन योग, उनकी कुण्डली की जबरदस्त राजयोगों में से एक है जिसके कारण उन्हें बॉलीवुड में अप्रत्याशित सफलता मिली.

चन्द्रमा सूर्य के कृतिका नक्षत्र में बैठा है और सूर्य लग्न में बैठा है. सूर्य षडबल में सबसे बलवान ग्रह है. इस कारण इनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावशाली रहा.

नवांश कुण्डली में आत्मकारक शनि और अमात्यकारक सूर्य के बीच राशि परिवर्तन, दशमांश कुण्डली में उच्च के गुरु का चन्द्रमा से राशि परिवर्तन ने इनकी कुण्डली को इतना सशक्त बना दिया कि कोई भी प्रतिद्वंदी उनसे मुकाबला नहीं कर सका.

पर आज मैं उनके राजयोगों का नहीं बल्कि उनकी अकस्मात मृत्यु के कारणों का विश्लेषण करना चाहता हूँ.

उनकी अभी शनि की महादशा में, शनि की ही अन्तर्दशा और चन्द्रमा का प्रत्यान्तर दशा चल रही है.

शनि कर्क लग्न के लिए सप्तम भाव का स्वामी होकर मारकेश तो होता ही है, साथ में अष्टमेश होकर अत्यंत ही घातक हो जाता है.

अष्टमेश शनि स्वयं से बारहवें भाव में बैठा है और प्रबल शत्रु मंगल के धनिष्ठा नक्षत्र में बैठ कर लग्न को देख कर पीड़ित कर रहा है.

लग्न पर जो गुरु की दृष्टि है वह गुरु भी षष्ठेश है और द्वादशेश बुध के रेवती नक्षत्र में बैठा है. यही नहीं लग्न, सूर्य और शुक्र भी द्वादशेश बुध के अश्लेषा नक्षत्र में बैठे हैं.

ये सारी स्थितियाँ लम्बी आयु के लिए अनुकूल नहीं हैं. कर्क लग्न के लिए शुक्र एकादशेश होकर बाधक है जो लग्न में अस्त होकर द्वादशेश बुध के नक्षत्र में बैठकर आयु को कम करने में अपना पूर्ण सहयोग दे रहा है.

कर्क लग्न के लिए शनि तो प्रबल मारकेश होता ही है, उसमें शनि की ही अन्तर्दशा और चन्द्रमा की प्रत्यान्तर दशा, ऐसे समय में चल रही थी जब गोचर का शनि उनके चन्द्रमा से अष्टम भाव में गोचर कर रहा है.

ये शनि का ढैय्या बहुत खतरनाक इसलिए भी है कि ये जन्म के केतु के ऊपर से गोचर कर रहा है जोकि लग्न कुण्डली के षष्ठ भाव और चन्द्रमा से अष्टम भाव में स्थित है.

ऐसी स्थिति परिवार में किसी न किसी के निधन का कारण अवश्य बनती है. अभी वर्तमान में इनके कर्क लग्न के ऊपर राहु गोचर कर रहा है और सप्तम भाव में जन्म के मारक शनि के ऊपर से केतु गोचर कर रहा है. ऐसी विपरीत स्थितियाँ इनके लिए प्राणघातक साबित हुईं.

इनका अभी वर्तमान में चौवन वर्ष पूर्ण होकर पचपनवाँ वर्ष चल रहा था. ऋषि पद्धति में इस वर्ष इनका सप्तम भाव जागृत था जहाँ एक प्रबल मारक और अनिष्ट ग्रह शनि बैठा है. उसे सूर्य और शुक्र देख रहे हैं जो किसी उत्सव की ओर इशारा कर रहे हैं.

सप्तम भाव पर, उससे त्रिकोण में स्थित तीसरे भाव से क्रूर मंगल की दृष्टि आ रही है और एकादश भाव से चन्द्रमा की दृष्टि पड़ रही है. चन्द्रमा किसी यात्रा की ओर इशारा कर रहा है और मंगल इस वर्ष भयंकर प्राणघातक प्रहार करने के लिए बेचैन है. इस कारण यात्रा और समारोह के साथ मृत्यु का संबंध जुड़ा हुआ है.

जीव कारक गुरु जन्म कुण्डली में मीन राशि में है. वर्तमान समय में गुरु तुला राशि में गोचर कर रहा है जोकि जन्म के मीन राशि के गुरु से अष्टम भाव में स्थित है. इस पर मारकेश शनि की दशम दृष्टि है और उसके त्रिकोण में मिथुन राशि में राहु स्थित है जोकि जन्म कुण्डली के द्वादश भाव में स्थित है.

इस राहु की दृष्टि आयु के लिए अच्छी नहीं है. दुर्भाग्यवश इस अष्टम भाव में गोचर कर रहे जीव कारक गुरु को कहीं से भी, किसी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं मिल रही है. इन स्थितियों ने उनके प्राणों का अंत कर दिया.

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