भ्रष्टाचार से निकलना चाहते हैं, पर ‘पहले आप, पहले आप’ के चक्कर में फंसे हैं हम

एक मित्र ने लिखा है कि अभी तक सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कोई कठोर कानून नहीं बनाया है.

उनका पहला सुझाव है कि यदि सरकार को कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार की कोई सूचना दे, तो सरकार उसी विभाग में अपना एक anti corruption विभाग का एक व्यक्ति आम आदमी के भेष में भेजे, इस बात का पता लगाने के लिए कि जो उसे सूचना मिली है वो सही है कि नहीं.

यदि वो जानकारी सही पायी जाती है तो सरकार को तुरंत उस अधिकारी को नौकरी से निष्कासित कर देना चाहिए.

उनका दूसरा सुझाव है कि ग्रामीण क्षेत्रों के माध्यमिक विद्यालय व प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का प्रत्येक तीन माह के भीतर टेस्ट लेना चाहिए.

यदि उस विद्यालय के बच्चे टेस्ट में खरे साबित नहीं उतरें तो उस विद्यालय के शिक्षक की तीन माह की सेलरी से तीस प्रतिशत की कटौती कर दी जाए.

फिर वह लिखते है कि कठोर कानून ही एक मजबूत भारत का निर्माण करेंगे.

ऐसे विचार समय-समय पर कई मित्र प्रस्तुत करते रहते है. मैं पहले भी इस विषय पर लिख चुका हूँ, लेकिन ऐसा लगता है इन प्रश्नों पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है.

क्या भ्रष्टाचार कड़े कानून के अभाव या उस anti corruption विभाग के आदमी और औरत या लोकपाल की कमी के कारण हो रहा है?

क्या ऐसी खबरें नहीं आई है कि सर्वोच्च न्यायालय के माननीयों ने घूस ली? क्या गारंटी कि “anti corruption विभाग का आदमी और औरत” और लोकपाल भी भ्रष्ट ना निकल जाए.

अभी जहां 1000 रूपए की घूस का रेट है वहां लोकपाल का भी पैसा लग जाएगा और वह घूस बढ़कर 1500 रूपए हो जाएगी.

उन बच्चों का प्रत्येक तीन माह के भीतर टेस्ट कौन लेगा, कौन आंसर शीट जांचेगा, कौन उन परीक्षा केन्द्रो में नक़ल करने से रोकेगा, माता-पिता की टेंशन और बच्चों की नर्वसनेस का क्या होगा?

जिन देशों में भ्रष्टाचार के लिए सख्त सज़ा है, यहां तक कि मृत्युदंड भी, क्या वहां भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है? क्या चीन, सऊदी अरेबिया, ईरान इत्यादि देशों में कोई भ्रष्टाचार नहीं है?

पंजाब नेशनल बैंक से नीरव मोदी करोड़ों के वारे-न्यारे कैसे कर गया? उस बैंक को विजिलेंस में पुरस्कार मिला था, ऑडिट भी हुआ था. फिर क्यों नहीं यह घोटाला पकड़ में आया? कही ऐसा तो नहीं है कि ‘निगरानी’ रखने वालो ने अपना भी ‘हिस्सा’ ले लिया हो?

भ्रष्टाचार से निपटने का सार्थक उपाय है : अधिक पारदर्शिता, अधिकारियों के विवेकाधीन या discretionary पावर में कमी (यानि कि एक ही कानून की अवहेलना के लिए अलग-अलग दंड या छूट देने की पावर) और टेक्नोलॉजी का प्रयोग.

प्रधानमंत्री मोदी तभी भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए संस्थागत उपाय कर रहे हैं. कैशलेस इकॉनमी, GST, आधार कार्ड से बैंकिंग व्यवस्था और सब्सिडी को जोड़ना इसी प्रक्रिया का अंग है.

यह अच्छी तरह पता है कि गुमनामी का फायदा उठा कर के ही सरकारी कर्मचारी, राशन दुकानदार, पटवारी, उद्योगपति, सब के सब अनुचित फायदा उठा ले जाते हैं.

यह कैसे पता चलेगा कि नरेगा का पैसा रामलाल को ही मिला या सरकारी कर्मचारी हज़म कर गया? रजिस्टर में तो मजूरी रामलाल को ही मिली है.

आधार से यह व्यवस्था समाप्त हो गई है. अब रामलाल को पैसे उसी के बैंक अकाउंट में भेजे जा रहे है जो आधार से जुड़ा हुआ है.

अब कोई फर्जी ‘रामलाल’ मजूरी नहीं ले सकता. फर्जी कंपनियां ऐसी ही तकनीकी के द्वारा पकड़ी जा रही हैं.

इसके अलावा याद कीजिए कि पेंशन में होने वाले भ्रष्टाचार को प्रधानमंत्री मोदी ने कैसे समाप्त किया. पहले पेंशन के लिए आप दौड़ते रहते थे. अब पेंशन के पेपर तैयार हो जाएंगे. बाद में देखा जाएगा की कोई कमी रह गई है तो उसे कैसे वसूलना है.

इसी तरह चतुर्थ और तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए साक्षात्कार का ड्रामा बंद कर दिया गया है. मार्कशीट और सर्टिफिकेट के सत्यापन को बंद करना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है..

यह सत्य है कि भाजपा सरकारें भी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं है. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि प्रधानमंत्री हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं. वह भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नियम कानून को बदल रहे हैं.

कई सौ वर्षों की गुलामी से जो भ्रष्टाचार हमारे चरित्र में घुस गया था क्या वह रातों रात निकल जाएगा?

हम उस भ्रष्टाचार से निकलना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए यह कहते हैं कि पहले फलाना भ्रष्टाचार खत्म करें तो मैं भी खत्म कर दूंगा. पहले आप, पहले आप के चक्कर में सभी भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे हैं.

अगर आपके पास इससे बेहतर सुझाव है तो उसे जरूर लिखिए और प्रधानमंत्री जी को भी भेजिए.

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