जनवरी 2009 में कम्प्यूटर कम्पनी सत्यम के मालिक रामलिंगम राजू का वह घोटाला सामने आया था जिसमें दस्तावेज़ी हेराफेरी कर के उसने बैंकों के 8000 करोड़ रूपए लूट लिए थे.
लेकिन उसकी सम्पत्ति जब्त करने की कार्रवाई शुरू हुई थी अक्टूबर 2012 में. अर्थात रामलिंगम राजू का घोटाला पकड़े जाने के 3 वर्ष 10 महीने बाद उसकी सम्पत्ति जब्त करने की कार्रवाई प्रारम्भ हुई थी.
अपने खिलाफ कार्रवाई में हुई इस तीन वर्ष 10 महीने की देर का भरपूर लाभ रामलिंगम राजू ने इस तरह उठाया कि जब 2012 में उसकी सम्पत्ति को जब्त करने की कार्रवाई की गई तब तक वो अधिकांश सम्पत्ति सुरक्षित ठिकाने लगा चुका था और एजेंसियों के हाथ उसकी केवल 822 करोड़ की सम्पत्ति हाथ लगी थी.
घोटाला पकड़े जाने के तत्काल बाद के बजाय रामलिंगम राजू की सम्पत्ति को जब्त करने की कार्रवाई तीन वर्ष 10 महीने बाद क्यों की गयी? कांग्रेस ने इसका जवाब देश को आज तक नहीं दिया.
यही नहीं घोटाले के 6 साल बाद अप्रैल 2015 में जब रामलिंगम राजू को 7 वर्ष की कैद और 5 करोड़ जुर्माने की सज़ा हुई तब तक वो 32 महीनों की सज़ा काट चुका था.
अर्थात घोटाले के पकड़े जाने के बाद के 75 महीनों में से 43 महीने तक, यानी लगभग साढ़े तीन वर्षों तक वो जेल से बाहर ही रहा था.
इस तरह रामलिंगम राजू ने बैंकों के 8000 करोड़ रूपए लूटकर केवल 827 करोड़ रूपए देकर 7 वर्ष जेल में गुजारकर 7173 करोड़ रूपए हजम कर लिए थे.
अब याद दिला दूं कि 9000 करोड़ के बैंक घोटाले का अपराधी विजय माल्या मार्च 2016 में भारत से भागा और अक्टूबर 2016 में उसकी 8044 करोड़ की सम्पत्ति जब्त कर ली गयी.
नीरव मोदी का 11000 करोड़ का घोटाला 14 फरवरी को उजागर हुआ और 16 फरवरी तक उसकी 5600 करोड़ की सम्पत्ति जब्त कर ली गयी. जब्ती की कार्रवाई अभी भी जारी है.
अतः घोटालेबाज लुटेरों के साथ सरकार की मिलीभगत कैसे और क्या होती है, इसका जवाब उस घोटालेबाज लुटेरों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई देती है.
ऊपर दो उदाहरण आपके सामने हैं. अब फैसला आप करिये कि किस सरकार की किस घोटालेबाज लुटेरे के साथ कैसी सेटिंग थी…