नीरव मोदी के फ्रॉड और उसके उजागर पर कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी का उछलना-कूदना… चोरी पकड़े जाने की चिल्लाहट कहिये.
13 सितंबर 2013 को आप… श्री राहुल गांधी… नीरव मोदी के एक कार्यक्रम में मिलते हैं और 14 सितंबर 2013 को पीएनबी शीर्ष बोर्ड के एक डायरेक्टर के डिसेंट नोट (प्रतिकूल प्रविष्टि) के बावजूद पीएनबी ने 1500 करोड़ का कर्ज मंजूर कर दिया.
आप कहते हैं कि बीजेपी ने 4 सालों तक क्या किया?
आप जिस समय… संसद में किसी भाषण नहीं… जो उसी संसद की संसदीय कार्यवाही के दस्तावेजों में दर्ज है, को कोट कर रहे… प्रधानमंत्री के कथन पर अट्टाहास करने में अपनी प्रतिभा दिखा रहे थे : ठीक उसी समय प्रधानमंत्री ने इन चार सालों की “चुप्पी” पर हाथों में तथ्यों का बंडल लेकर उसी संसद में आन रिकॉर्ड बोल चुके हैं.
“बैंकों का एनपीए 36 परसेंट नहीं है जी, वह 82 परसेंट है. जब हमें इस सच्चाई का पता चला तो हमने फैसला किया कि हम अभी इस घोटाले को जनता के सामने नहीं रखेंगे. क्योंकि यदि हमने ऐसा किया होता तो देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान होता.
हम आपके तानों को सहते रहे और बैंकों को मज़बूत करते रहे. अब हमने फैसला किया है कि आज देश को मालूम हो कि बैंकों का एनपीए 36 नहीं 82 प्रतिशत है. हम इस एनपीए को बढ़ाने और जिम्मेदारों के खिलाफ काम करेंगे, अब हम उस स्थिति में हैं.”
हाउस में जो कुछ भी कहा प्रधानमंत्री ने… ऊपर मैंने उन्हें कोट नहीं किया है… लेकिन महज लोकसभा की कार्रवाई को प्रसारित होते समय देखने भर से मुझ सामान्य को भी यह साफ-साफ याद है कि राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद चर्चा पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में यही कहा था. कुछ शब्दों के हेर-फेर हो सकते हैं.
लेकिन संसद के दोनों सदनों में बैठे आप और आपके सदस्यों के साथ ही गिरोह यह नहीं सुन पाये तो यह सरासर झूठ है.
नीरव के आर्थिक अपराध, उसकी पोलखोल, आधे फ्रॉड की रकम की रिकवरी से एनपीए की शानदार वसूली योजना के शुभारंभ पर कांग्रेस अध्यक्ष, कांग्रेस नेतृत्व और गिरोहों का यह आंदोलित होना… इस राष्ट्रीय वसूली योजना के विरोध के साथ ही एनपीए के इतिहास में गर्भ से अपने चोरकट मानसपुत्रों के पकड़ाने की अंतरराष्ट्रीय-राष्ट्रीय योजना पर चिल्लाहट भर है.
संसदीय गंभीरता को लगातार तार-तार करने की नीयत तक पहुंच चुके कांग्रेस अध्यक्ष, कांग्रेस पार्टी और राजनीतिक विपक्ष समेत नारेबाज़ों को अगर सच देख-सुन पाना कठिन लगता हो, उन्हें आज हो रही कार्यवाइयों की साफ-साफ मुखबिरी पर आन द रिकार्ड पढ़ने की आदत विकसित कर लेनी चाहिए.
क्योंकि… 36 और 82 के बीच के अंतर को लगातार पाटने का काम अब चलेगा और उन गड्ढों के जिम्मेदार यूं ही आते रहेंगे बाहर. आप तो बस उनके सरनेम गिनें..!
शायद नीरव मोदी ने ही हाउस में प्रधानमंत्री जी की कही बात को ज्यादा ठीक से समझ लिया और जैसा कि हर चोर करता है… भागने की तैयारी.
यहीं… इस नारे का भी जिक्र कर लेना उचित होगा कि वह भागा कैसे? यह समझना होगा कि आर्थिक अपराध… वह भी एनपीए, कर्जवसूली आदि में सबसे पहली प्राथमिकता होती है… रुपयों की वसूली. आर्थिक अपराध की अंतिम सज़ा उच्चतम सज़ा भी फांसी नहीं होती.
हमारे संविधान के तहत रेवेन्यू (राजस्व) के कर्जवसूली नियमों में ही तमाम ऐसे प्रावधान हैं जब ऐसे अपराधियों को व्यापारिक डील तक करने की अनुमति मिलती है. सहारा रिकवरी मामले में उसके मुखिया को यह सुविधा कोर्ट ने जेल में रहते दी.
इसी के साथ आर्थिक अपराधों के अपराधियों को कानूनी सज़ा के लिए आरोप से दस्तावेज़ी सबूतों तक ले जाना एक बारीक और मजबूती से किया जाने वाला काम होता है हमारे न्यायिक प्रक्रिया में.
इसलिए अपराधियों की भाग-दौड़ कोई नई बात नहीं. फाइलें मज़बूत होंगी तो सभी बंधे रस्सी खींचते ही वापसी और बरामदगी के लिए कानूनी लाठी द्वारा मजबूर होंगे.
और अंत में… इतने बड़े एनपीए गैप के खुलने और कार्यवाइयों से ऐसा नहीं है कि अर्थव्यवस्था असर से दूर रह पाएगी. हां… संबंधित बैंक ज़रूर दिक्कत में आते नज़र आएंगे. पीएनबी उदाहरण हैं इसी बात का.
लेकिन यह भी एक सच है कि नोटबंदी, बैंकखाताधारों की संख्या में बढोत्तरी के साथ ही डिजिटल लेनदेन के बढ़ने की वजह से आज बैंकिंग सेक्टर नगदी के लिए तंग नहीं बल्कि मालदार है. झटकों से उबरने की ताकत रखता है.
हां… अगर आपने बैंकिंग सेक्टर में निवेश किया है तो जरा फिक्रमंद रहिये और उनकी एनपीए फिगर चेक करते रहने के साथ ही… सकल विपक्ष को संसदीय कार्यवाइयों के भाषणों, तथ्यों, संकेतों.. मुखबिरियों को “ऑन रिकॉर्ड” पढ़ने की सलाह देने की ज़रूरत है.