दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई… तूने काहे को चाय बनाई

मैं तो इस खुशफहमी में थी कि फेसबुक पर चाय पर चर्चा करने लगी हूँ तो डर के मारे पतिदेव ने चाय पर चिकचिक करना छोड़ दी है… लेकिन हाय रे मेरी किस्मत…. मोदी जी की चाय की चर्चा सूट की चर्चा में बदल गई लेकिन मेरी किस्मत में तो वही चाय ही है…

तो हुआ यूं कि कल एक, दो नहीं तीनों ननदों ने बच्चों समेत धावा बोल दिया… अपन भी खिलाने पिलाने के इतने शौक़ीन कि बच्चों के आते ही उनके लिए तरह तरह के व्यंजन बनाने में जुट गए.

ऊपर से भारत पाकिस्तान का क्रिकेट मैच यानी बॉर्डर पर दोनों टीम बन्दूक लिए खड़ी है और इधर से टीवी सेट के सामने देश के दर्शक गोला बारूद टीवी के ज़रिये उनके बैट बल्लों में भरते रहते हैं…
. और हम….. इन बच्चों के पेट में खाना भरते रहते हैं…

भारत के मैच जीत जाने की खुशी ने लिविंग रूम सच में लिविंग कर दिया …. इन सब के बीच प्लेट में तरह तरह के व्यंजन कैसे प्रकट हो जाते हैं किसी को उससे कोई लेना देना नहीं.. हाँ बीच बीच में आवाजें आती रहती है… मामी पानी……… भाभी मीठा खाने का बहुत मन है… थोड़ा सा कुछ मीठा हो जाए…. उधर से पतिदेव की दहाड़ अब ये चाय के टाइम पर तुम हलवा ले आई तो चाय कब मिलेगी…

शाम पांच बजे सबको चाय पेश की गई…. लेकिन एक चाय से उनका जी कब भरा है.. सात बजे एक और चाय की डिमांड….. रात के खाने की तैयारी करते हुए उनके हाथ में चाय का प्याला पकड़ा आई….

उधर से फिर एक मीठी सी पुकार …. जब तुम सच्चे मन से चाय बनाती हो तो जैसे अमृत हो जाती है… ज़रा तुम भी तो ले लो इस अमृत का स्वाद…. मैंने डरते डरते कप हाथ में लिया कि ज़रूर कुछ गड़बड़ हुई है चाय में वरना इतने प्यार से अपने हिस्से की चाय वो मुझे कभी ना दे…

एक घूँट मारते ही समझ आ गया था कि चाय उनके हिसाब की नहीं बनी है… और उनका हिसाब मैं बता दूं कि वो चाय नहीं काढ़ा पीते हैं… जल्दबाजी में चाय थोड़ी कम उबली थी…
तो भई अब ये चाय कैंसिल और तीसरी चाय का फरमान जारी… सारे काम छोड़ कर सबसे पहले जनाब के लिए काढ़ा तैयार हुआ…

डिनर बना कर फुर्सत भी नहीं हो पाई थी कि ननदों का अल्टीमेटम जारी…. भई अब हम लोग निकल रहे हैं भाभी…
मैंने कहा- और खाना????

भाभी कसम से इतना अच्छा हलवा बना था कि जी भर के खाया और जितनी मिथांड (मीठा खाने का मन) भरी थी सब ख़तम हो गयी… अब तो पेट में इतनी भी जगह नहीं है कि चाय ही पी लूं..

जीज्जी आप चाय का नाम मत लो बस आपके पसंद की दाल ढोकली बनी है वो खा लो…
इधर ननदों ने मेरा दिल रखने की लिए थोड़ा बहुत खाया उधर बच्चों के लिए आलू मटर की सब्जी बनाई थी उसको पूड़ी में रोल करके सबके मुंह में ठूस कर आई … बिना खाना खाए कोई नहीं जाएगा… वर्ना घर जाकर सब अपनी मम्मियों को आधी रात को खाना बनाए के लिए परेशान करोगे…

जैसे तैसे जिसका जितना मन था सबने खाया और टाटा बाय बाय करके पलटे ही थे कि छोटा बेटा पीछे से रोता हुआ आया मैंने तो बुआ को बाय किया ही नहीं… उसकी आवाज़ इतनी बुलंद कि इधर से उसने जितनी जोर से आवाज़ लगाई बाय और उधर से फूफाजी ने उतनी जोर से कार का ब्रेक लगाया… जब जी भर कर टाटा बाय बाय हो गया फिर फाइनली सबको विदा करके घर में आए…

घर का हाल देखा तो लगा भारत पाकिस्तान का युद्ध क्रिकेट के मैदान में नहीं हमारे घर में ही हुआ था… ड्राइंग रूम में पानी के ग्लास को उलटकर सुबह के अखबार की लुगदी बना दी गई थी… पूड़ी तलने के बाद बचे तेल की कढ़ाई साइड में रख दी थी तो छुटकू ने उसमें खिलौने तल दिए थे… और जो इतना खाना बच गया था सो अलग…

तो जनाब आज सुबह रात की आलू मटर की सब्जी को ब्रेड में भरकर पतिदेव को सैंडविच बनाकर खिलाया.. और उनको खिलाकर फुर्सत होने के बाद लगा पहले मुझे कुछ खा लेना चाहिए.. कल रात को भी थकान इतनी हो गयी थी कि ठीक से खाना नहीं खा पाई थी तो भूख लग आई थी….

अपने लिए सैंडविच बनाने में लग गयी तो इनकी चाय चढ़ाने में लेट हो गई…. पहला कौर मुंह में डाला ही थी कि… शेर दहाड़ता हुआ सीधा किचन में…. यार आधे घंटे से चाय का इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारी चाय अभी तक बन नहीं पाई…

चढ़ा दी है भई चाय … वो देखो..

नहीं अब नहीं चाहिए मुझे…

तो मत लो …

बिलकुल देने मत आना…

यार इतनी भी देर नहीं हुई है और रोज़ तो दे ही देती हूँ ना टाइम पर कभी सभी लेट हो जाता है इसमें इतना चिढ़ने की क्या बात है..

एक चाय तुम इतना टुंगा टुंगा के देती हो कि चाय पीने का मन ही नहीं रहता… कह दिया ना नहीं चाहिए तुम्हारी चाय

हाँ तो मैं दे भी नहीं रही..

चाय छानकर उनके टेबल पर रख कर आ गई…. थोड़ी देर बाद झांककर देखा तो चाय ज्यों की त्यों पडी थी…

आज एक बार फिर राज कपूर की तीसरी कसम याद आई और तीसरी बार कसम खाई आज के बाद तुम्हारे लिए मैं चाय बिलकुल नहीं बनाने वाली… हुंह!!!

कसम खाके पलटी ही थी कि उधर से आवाज़ आई… झांसी की रानी झाँक कर चली जा रही हो… अब इसी को गरम कर लाओ…

अपन भी एक नंबर के अकड़ू… चाय उठाई और खुद ही गटक गयी… पतिदेव की फिर त्यौरियां चढ़ गई…

अब क्या घंटे भर पहले बनी चाय पिलाऊंगी क्या… रुको लाती हूँ दूसरी बनाकर… सारे कसमें वादे तोड़ने के लिए ही तो किये जाते हैं…

– बहू रानी

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