अग्नि के सात फेरों की बात किसी जन्म में नहीं की थी मैंने
लेकिन हर जन्म में इन्द्रधनुष के सात रंगों की चुनरिया में
सप्तऋषि को सात गांठों में बांधकर
पूरे आसमान के सात चक्कर लगाती हूँ
क्या अब भी यही कहोगे
इश्क-ए-हकीकी और इश्क-ए-मजाज़ी में ज़मीन आसमान का फर्क है….
तेरे नाम का सिन्दूर किसी जन्म में मांग में नहीं भरा
लेकिन हर सिंदूरी शाम को
माथे पर उठाकर रात के हवाले करके आती हूँ
ताकि उसकी कोख से नए दिन का सूरज जन्म ले सके….
क्या अब भी यही कहोगे
इश्क-ए-हकीकी और इश्क-ए-मजाज़ी में ज़मीन आसमान का फर्क है….
कभी पिता बनकर, कभी पुत्र बनकर, कभी पिया बनकर
हर जन्म में तुम मुझे मिले
तुम हर जन्म में मुझे भूल गए
और मैंने हर जन्म में तुम्हें पहचान लिया
क्या अब भी यही कहोगे
इश्क-ए-हकीकी और इश्क-ए-मजाज़ी में ज़मीन आसमान का फर्क है….
गर है तो आज मैंने इस ज़मीन और आसमान को एक कर दिया है..
आभासी क्षितिज पर नहीं
दुनियावी और कायनाती इश्क़ के मिलन स्थल पर
जहां देह और आत्मा का मिलन यूं होता है
जैसे फूल के बदन में खुशबू की रूह
जैसे चाँद के आँगन में चांदनी का खेल
जैसे सूरज की आग में जीवन का उद्गम
और जैसे मैं और तू… राजेन्द्र समैया