उसकी आँखों में
जब एक तारा चमचमाया
मुझे मेरे बचपन का
एक गीत याद हो आया
हाथ में डंडा लिए
बचपन की गलियों में चल पड़ी
जैसे ही हाथ जोर से घुमाया
गिल्ली हवा में उछल पड़ी
जब भी गूंथती हूँ
उसकी दो चोटी
याद आ जाती है
बुढ़िया वो मोटी
मटके में बैठकर
जिसने जंगल किया था पार
वो कविता न लिख पाने पर
मेरे नंबर कटे थे पूरे चार
उसके लिए जब
घेरवाली फ्रॉक बनाई
तो उस चूहे राजा की
याद आई
जिसने दरजी से थी
टोपी सिलवाई
और अपनी सात पूछों को
एक एक करके थी कटवाई
और भी बहुत सारी
बातें याद आती हैं
बचपन के वो प्यारे दिन
और नानी की कहानी
लौट आती है
जिस पेड़ के नीचे बैठकर
खेलते थे कौड़ी
वहां जाओ तो दिखाई देती है
अब सड़कें चौड़ी
बस किस्सों में रह गए हैं
बचपन के सारे खेल
वो एक पैर उठाकर
सहेलियों को छूना
वो एक दूसरे के पीछे खड़े होकर
जो बनाई थी लम्बी सी रेल
वो मोटे से लड़के को
इंजिन बनाना
वो दाम आ जाने पर
चीटिंग का बहाना
वो दीदी की किताब में गुड़िया बनाना
वो भैया का चोटी खींचकर
भाग जाना
वो गुड़ की मिठाई
वो छुट्टियों में नाना,
वो खाने में नखरे
वो नानी को सताना
वो देर से उठना
और जल्दी सो जाना
वो दादा की पीठ को
घोड़ा बनाना
लो गूंथ दी उसकी दो चोटी
और कंधे पर लाद दी किताबें मोटी
देश के भावी नागरिक बढ़ते जा रहे हैं
और कंधे बोझ से झुके जा रहे हैं
तरक्की ही होड़ में
सब दौड़ लगाएंगे
अब तो बच्चे माँ के पेट से
सब सीखकर आएँगे
वो पुराना समय था
कि अभिमन्यु फंस गया था
देखते हैं आज के अभिमन्यु
कितने चक्रव्यूह तोड़ पाएंगे?