आज कई वर्षों पश्चात भारत में महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाने का सुअवसर प्राप्त हुआ. जिस तरह भारत में बेल -पत्र, धतूरा, भांग ..गन्ना …मदार ..फल – फूल आदि मंदिर के बाहर आसानी से मिल जाता है; ऐसा विदेश में संभव नहीं है.
सभी मंदिरों में तो जलाभिषेक की व्यवस्था भी नहीं होती, दर्शन मात्र से ही संतुष्ट होना पड़ता है. जो कुछ उपलब्ध होता है, भक्त उसी से अपनी श्रद्धा अर्पित करने को विवश होते हैं.
आखिर अपनी भूमि छोड़ कर दूर बसने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. पहली पीढ़ी को उस कीमत का एहसास होता है; दूसरी पीढ़ी जो कुछ उपलब्ध है, उसे ही परम्परा मान लेती है. तो आज बहुत दिनों बाद महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक का पुण्य लाभ मिलना था.
कार्यालय का कैलेंडर देखा तो पता चला आज अवकाश नहीं है. अन्य संस्थानों के कुछ मित्रों को फोन लगाया तो पता चला कि वहाँ भी वही स्थिति है. हमने छुट्टी की ई-मेल भेजकर अपना कार्य प्रारंभ किया.
सोच रहा हूँ कि यदि मेरी तरह 20-25 % लोग भी महाशिवरात्रि पर कार्यालय से छुट्टी ले लें तो अगले वर्ष इस दिन स्वतः अवकाश घोषित हो जाय. पर अंग्रेजी नव – वर्ष पर सप्ताह – सप्ताह भर अवकाश के कुलांचे मारने वाली जनता अपने पावन पर्वों पर पेट दिखा कर रोटी आगे कर देती है.
सारी उत्सव धर्मिता तेल लेने चली जाती है. वैसे भारत वर्ष में कम से कम महाशिवरात्रि, राम नवमी, परशुराम जयंती, जन्माष्टमी, होली, दिवाली, दशहरा एवं हिन्दू नव वर्ष पर अवकाश तो होना ही चहिए. पर कहाँ से हो .. आखिर क्रिसमस, गुड फ्राइडे, ईद और बकरीद पर सबको सेकुलर बवासीर का इलाज भी तो कराना होता है न.
सोच रहा हूँ कभी अरब में मक्केश्वर महादेव पर भी भक्तों की कतार लगती रही होगी. मक्केश्वर की दीवारों पर चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शिलालेख लिखवाए थे ..जगह – जगह स्वर्ण, रजत और ताम्र पत्रों पर धर्म और इतिहास खुदा हुआ था.
आज सब पराया हो गया …महाशिवरात्रि पर वहां की दीवारें एक बार अवश्य कराही होंगी. जिनके पूर्वज वहां कभी जलाभिषेक करते रहे होंगे …आज वही पत्थर को चूम – चूम कर सजदे करते हैं ..
पेशावर में भी कभी शिवरात्रि बड़ी धूम – धाम से मनाई जाती थी. आज सन्नाटा है. लाहौर, करांची में बचा हिन्दू शायद ही पर्व मना पाता हो. संभव है चोरी – छिपे व्रत रखकर या नाम स्मरण करके अपनी श्रद्धा अर्पित करता हो.
कुछ साल बाद वहां भी शायद एक भी हिन्दू जीवित न बचे. मक्का वाला हाल हो जाय. वैसे भी पाकिस्तान में कई प्राचीन मंदिर जो तोड़े जाने से बच गए आज होटल और लाइब्रेरी बन चुके हैं. वो भी एक बार कराहते जरुर होंगे.
वाराणसी में ज्ञान – वापी की दीवारें भी आज कराही जरुर होंगी. पर सिर्फ भावना और कराह से सब कुछ कहाँ संभव होता है? इस रोटी की दौड़ और नौकरी के जाल में फंसकर हम अपने ही देश में पर्व कहाँ मना पा रहे हैं?
यह तथाकथित “विकास” जितना प्रौढ़ होता जाएगा, हम सब परम्परा से उतने कटते जाएंगे. अब उन्हें किसी मक्केश्वर पर कब्ज़ा नहीं करना है, न ही कोई सोमनाथ तोड़ना है; आप या आप की आने वाली संतति स्वतः ही इन स्थलों पर जाना छोड़ देगी. वैसे जनसँख्या जिहाद भी चालू है अगर आप के घर “विकास” आने से पहले गजवा – ऐ – हिन्द हो गया तो आप मक्केश्वर की तरह पत्थरों को चूमना अवश्य प्रारंभ कर देंगे और उसके लिए अवकाश भी मिलेगा.
हो सके तो इस दुधारी के वार से बचने का प्रयास कीजिए !! महाशिवरात्रि की शुभकामनाओं सहित ..हर हर महादेव ..जय महाकाल …जयति जय हिन्दू राष्ट्रम!