मेरे पास थीं
सपनों से भरी जेबें,
तुम्हारी चाहतों से भरी मुट्ठियाँ
बिना दीवारों के घर
खुला आसमान
दो जोडी पंख
एक तुम्हारे, एक मेरे,
रतजगे
गहरा समुन्दर
कागज की कश्ती
पर
जेबकतरे वक्त ने काट ली
मेरी बेशकीमती दौलत…
तुम निकले
बेहद कमजोर….
तुमने चुना
मजबूत मकान
काठ की नाव
चैन की नींद
चांदी की जंजीरें
सोने के निवाले
उथला कुआँ
पक्का घड़ा
और भी न जाने क्या क्या
तुम रुक गए
और मैं
उड़ता रहा
दूर दूर तक…
– सुधा सिंह
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