राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद दो सरकारों के मध्य हुए समझौते से हुई है.
इसको स्पष्ट करने के लिए यह समझिए कि बोफोर्स तोपों की खरीददारी भारत सरकार ने स्वीडन की बोफोर्स कंपनी से की जो इन तोपों को बनाती थी.
23 सितंबर 2016 को भारत सरकार ने फ्रांस की सरकार से 36 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए समझौता किया.
यानि कि यह समझौता विमान बनाने वाली कंपनी Dassault – दास्सो – से नहीं किया.
प्रत्येक लड़ाकू विमान की कीमत लगभग 670 करोड़ रुपए है और इनकी डिलीवरी अप्रैल 2022 तक कर दी जाएगी.
वर्ष 2013 में कांग्रेसियों के समय में रक्षा मंत्रालय ने यह नियम बनाया कि अगर दो सरकारों के मध्य समझौते के तहत डिफेंस उपकरण खरीदे जाते हैं तो केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति से उस सौदे की क्लीयरेंस की आवश्यकता नहीं है.
क्या छुटभैया नेता यह आरोप लगाना चाहता हैं कि भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति ने मिलकर घूस का आदान प्रदान किया? या फिर कि फ्रांस की सरकार ने सरकारी तिजोरी से घूस दी? या फिर फ्रांस की सरकार ने दास्सो कंपनी से घूस मांगी और उसको भारत सरकार को पकड़ा दी?
बोफोर्स कंपनी से तो घूस ली जा सकती है लेकिन क्या वह घूस आपको स्वीडन की सरकार से मिल जाती?
आप अपना आरोप खुलकर क्यों नहीं लगाते?
फिर दास्सो कंपनी ने रिलायंस के साथ वर्ष 2012 में ही समझौता करके रिलायंस को अपना पार्टनर बना लिया.
ऐसा दास्सो ने इसलिए किया कि उसे यह आशा हो गयी थी कि उस समय की भारत सरकार उसी से ही विमान खरीदने का समझौता करेगी और उस समझौते के तहत कुछ पार्ट्स भारत में असेंबल करने होंगे.
मुझे अब कई बार शक होने लगा है कि उस नेता को जो लोग सलाह दे रहे हैं, क्या उन्होंने नकल करके हाईस्कूल पास किया है कि एक आरोप तो ढंग का लगाते?
अधिक जानकारी के लिए आज के इंडियन एक्सप्रेस में डिफेंस मिनिस्ट्री के पूर्व वित्तीय सलाहकार अमित कौशिक का आर्टिकल पढ़ ले.
डॉक्यूमेंट के लिए Abhijit Iyer-Mitra – इंस्टिट्यूट ऑफ पीस एंड कनफ्लिक्ट स्टडीज में सीनियर रिसर्च फेलो हैं – के ट्वीट पढ़ ले. उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट में सारे डाक्यूमेंट्स को अपलोड किया हुआ है.