उत्तरप्रदेश में 1992 में कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की नकल विरोधी कार्य योजना से रिजल्ट भले ही सिंगल डिजिट में आ गया था लेकिन उसकी सफलता से ना केवल दूसरे राज्य बल्कि पाकिस्तान तक का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ था.
तब के अखबारों में खबर छपी थी कि पाकिस्तान के शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि मण्डल भारत आ कर इस नकल विरोधी प्रयासों का अध्ययन करेगा.
लेकिन बाबरी ढांचा ध्वंस होने पर यूपी सरकार बर्खास्त कर दी गयी. तब मुल्लायम और कांसीराम मिले तो उन्होंने नकल विरोधी अध्यादेश और उसको लेकर लगे केसों को वापस करने को अपना मुख्य वादा घोषित कर, यूपी की उस तरुण पीड़ी की जिंदगी में ‘पकौड़े के ठेले’ लिख दिए.
नि:सन्देह यूपी में 1993 वाली बीजेपी की उस हार में केवल पिछड़ा मुस्लिम और दलित गठबंधन जैसा चुनावी गणित ही नहीं बल्कि राजनाथ सिंह की नकल विरोधी मुहिम की कठोरता का भी अहम रोल था.
अंततः उस अध्यादेश में जो गिरफ्तारी और मुकदमे लगे उससे ना केवल शिक्षा माफिया बल्कि नासमझ अभिवावकों बहुत बड़ा वर्ग भयभीत और विद्रोही हो गया था, सो उस तबके ने मुल्लायम-कांसी गठबंधन का खुल के साथ दिया.
अब प्रदेश के उप मुख्यमंत्री के दायित्व के साथ शिक्षा मंत्री का दायित्व भी संभाल रहे दिनेश शर्मा की प्रभावी मुहिम में गिरफ्तारी और मुकदमों की ज़रूरत न होने के कारण कोई ख़ास चिंता की बात नहीं.
और ना ही ये सवा तीन सौ विधायकों वाली सरकार ही कहीं जा रही…. सो लगता है यूपी की शिक्षा व्यवस्था को इस्पाती बनाने के लिए 1992 में चालू की गयी मुहिम अब पूर्णतया सफल हो कर रहेगी.
और इस कठोरता से रिजल्ट कम होने से कोई चिंता करे तो उस समय के तमाम उदाहरण हैं कि नकल बन्द होने से ही तमाम छात्रों की उनकी असली मेधा उभर कर आ गयी थी.
स्वयं मेरे घर में ही इसका उदाहरण मौजूद है… मेरा एक भतीजा जिसके लिए हाई स्कूल इंटर में नकल के तमाम उपाय अपनाये लेकिन वो
बमुश्किल 45% की लिमिट पार कर सेकेण्ड डिवीज़न ला पाता था…
और जब नकल बन्द हुयी, उसने ध्यान से पढ़ना शुरू किया तो उसके M Com में 75% के आस पास नम्बर थे.
सो दिनेश शर्मा जी लगे रहिये… आपका यह काम योगी जी की सरकार की उपलब्धियों की किताब का नि:सन्देह सुनहला और सबसे सुन्दर पन्ना होगा.
जिसे ये कठोरता बुरी लगे सो लगे… उनके लिए भी मोदी जी ने पकौड़ा और अखबार बेचने की आत्मविश्वासपूर्ण राह खोल ही दी है…