“लोग सोचते हैं कि ये बड़े उद्योग और कारपोरेट हाउस हैं जो ज़्यादा रोज़गारों का सृजन करते हैं, बल्कि सच्चाई ये हैं कि बड़े कारपोरेट घारनों ने केवल सवा करोड़ लोगों को रोज़गार दिया हुआ है जबकि मझोले, लघु और मध्यम (MSME) उद्योगों ने क़रीब 12 करोड़ लोगों को रोज़गार दिया हुआ है. इसीलिए हम पिरामिड के नीचे के लोगों की ज़रूरतें समझते हैं और उनके उत्थान का साधन उन्हें प्रदान करते हैं.”
ये वक्तव्य है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जब वो MUDRA (Micro Units Development and Refinance Agency Ltd.) योजना का उद्घाटन कर रहे थे.
अभी तक बैकों से लोन केवल बड़े बड़े लोगों को या कारपोरेट घरानों को मिलता था. रिक्शा वाले, टेम्पो वाले, ठेले खुमचे वाला, या किसी भी प्रकार का कुटीर उद्योग वाले जैसे कि हैंडलूम, पावरलूम या अन्य कोई भी वालों को बैंक लोन नहीं देती थी.
यदि कोई जनरल स्टोर या किसी भी चीज़ की दुकान भी खोलना चाहता हैं तो उसे बैंक लोन नहीं देते थे. इसीलिए वो व्यक्ति लोन के लिए दूसरे स्त्रोतों पे निर्भर था जिसकी ब्याज़ दर 20-25% यहाँ तक के 50% तक भी होती है वो भी कोई क़ीमती चीज़ गिरवी रखकर.
ऐसी स्थिति में प्रॉपर कैलकुलेशन के अभाव में आदमी लोन तो ले लेता है लेकिन कभी न ख़त्म होने वाले क़र्ज़ के जंजाल में फँस जाता है.
हैंडलूम चलाने वाले बहुत से बुनकर एक समय केवल इसीलिए आत्महत्या कर बैठे क्योंकि साहूकार के क़र्ज़ में फँस चुके थे, जितना क़र्ज़ लिया था, उसका डेढ़ गुना चुका दिया था लेकिन क़र्ज़ अभी भी चढ़ा हुआ था. नतीजतन गिरवी रखी चीज़ भी उससे छिन जाती है जैसे उसकी मशीन, घर, सामान वगैरह और वह तंग आकर आत्महत्या कर बैठता है.
अतः मुद्रा योजना का उद्देश्य था बिना कोई चीज़ गिरवी रखे, किसी भी प्रकार का रोज़गार शुरू करने के इच्छुक लोगों को बहुत ही कम ब्याज़ दर पर लोन देना.
जैसे यदि कोई रिक्शा या टेम्पो चलना चाहता है तो इस योजना के तहत लोन लेकर टेम्पो ख़रीदकर काम शुरू कर सकता है.
कोई जनरल स्टोर की दुकान खोलना चाहता है या कोई पकौड़ी की दुकान शुरू करना चाहता है तो इस योजना के तहत उसे लोन मिल जाएगा.
कोई हैंडलूम या पावर लूम या अन्य कोई भी मशीन लगाकर व्यापार शुरू करना चाहता है तो इस योजना के तहत लोन लेकर काम शुरू कर सकता है.
इस योजना के तहत 10 लाख रूपए तक का लोन दिया जा सकता है.
अभी तक सरकार ने लगभग 3 लाख करोड़ रुपये का लोन लोगों को बाँट दिया है. जी हाँ, 3 लाख करोड़ वो भी अति कम ब्याज़ दर पर, वो भी बिना कुछ गिरवी रखे. जिससे लगभग 3.5 करोड़ लोग लाभान्वित हुए हैं. माने 3.5 करोड़ परिवार.
3 लाख करोड़ तक का लोन दिया गया ऑटो रिक्शा, ठेले खोमचे वाले को, दुकानदारी शुरू करने वाले को, बुनकरों को और कई कुटीर या मझोले उद्योगों को.
ये कोई अदानी अम्बानी को नहीं दिया गया. माने ये योजना पूर्णरूप से आम आदमी के हितों को साधने के लिए हैं. एक बहुत ही सफल व विराट योजना है.
पकौड़ी बेचने को रोज़गार की संज्ञा भी इसी परिप्रेक्ष्य में दी गयी थी. और क्यों नहीं दी जानी चाहिए? यदि सरकार ने एक पकौड़ी बेचने वाले, ठेले खोमचे वाले, रिक्शा वाले का भी ख़्याल रखा है, उसके लिए योजना बनाई है तो उसे भी रोज़गार में गिना जाना चाहिए.
यही कहा… लेकिन इसपे हंगामा मच गया. लेकिन किसी मीडिया ने ये नहीं बताया कि मुद्रा योजना क्या है, इसने कितनी जिंदगियों को आसान किया है. कितने लोगों को जीने का साधन उपलब्ध कराया है.
ऊपर से इस वक्तव्य पर बिना विचारे उन फ़र्ज़ी डिग्रीधारी चिलग़ोज़रों ने बवाल काटा जो रोज़गार के लिए चपरासी से लेकर कलक्टर तक के फ़ार्म भरे घूमते हैं, लेकिन होता कहीं नहीं. जिनकी कोई दिशा नहीं होती और न ही इतनी लायकी होती हैं कि पकौड़ा ही बेच सकें.