अगर कहीं थोड़ा सा पानी ठहर जाता है तो कुछ दिनों के बाद वहां घास उग जाती है, छोटे मोटे पौधे उगने लगते हैं. कीट पतंगे आ जाते हैं. चिड़ियाँ आने लगती हैं. जीवन लहर मारने लगता है.
अगर पानी का गड्ढा और बड़ा हो, तो और ज्यादा जीवन वहां दिखने लगता है. झील, नदियों, तालाब, समुद्र किनारे सभ्यताएं गांव शहर बसते आये हैं.
पानी अपने इर्द गिर्द एक पारिस्थिकी तंत्र का निर्माण कर देता है.
इसी तरह फैक्ट्री होती है, कम्पनियाँ होती हैं. किसी गाँव कस्बे में कोई बड़ी फैक्ट्री खुल जाये तो जीवन संवरने लगता है.
फैक्ट्री के साथ उसे कच्चा माल, इक्विपमेंट देने वाली छोटी एंसिलरी फैक्ट्रियां खुलती हैं. व्यापार जैसे दुकाने, फर्नीचर और ढेरो तरह के काम धंधे शुरू होते हैं. सर्विसेस जैसे ढाबा, ट्रांसपोर्ट शुरू हो जाती है.
जीवन आकार लेने लगता है. समृद्धि आने लगती है.
एक टाटा ने जमशेदपुर बसा दिया. ऐसे न जाने कितने उदाहरण होंगे.
आज भारत के सबसे विकसित राज्य महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्णाटक, गुजरात हैं. उनकी उन्नति का कारण वहां लगी फैक्ट्रियां, बड़ी कम्पनियाँ हैं.
दिल्ली, पुणे, बंगलौर, मुंबई, मद्रास, हैदराबाद, अहमदाबाद की पहचान रोजगार देने वाली फैक्ट्रियों, कम्पनियों से है. तमाम लोग वहां व्यापार, सर्विसेस देने भी जाते हैं, जैसे रिक्शा, ठेला, टैक्सी ऑटो चलाने.
योरोप के देश अपनी कंपनियों की वजह से समृद्ध हैं. उनके पास खेती, जंगल, खनिज की भरमार नहीं, प्राकृतिक संसाधन नहीं. वो अमीर हैं अपनी कंपनियों से.
जर्मनी प्रसिद्ध है अपनी इंजीनियरिंग के लिए और ऐसी कंपनियों के लिए. बॉश, सीमेंस, BMW, मर्सिडीज. फ़्रांस डसाल्ट, ST माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स, इटली वेस्पा, फिएट के लिए.
लगभग हर योरोपीय देश के पास अपनी विश्व स्तरीय कंपनियां हैं.
अमेरिका का कहना ही क्या. वो इस मामले में राजा देश है.
एशिया में जापान अपनी कंपनियों से जाना जाता है. चीन ने तभी तरक्की की जब वो विश्व का प्रोडक्शन हब बना.
भारत तभी तरक्की करेगा जब जनता स्वरोजगार को प्रेरित होगी. जब लोग ऐसी कंपनियों की आधार शिला रखेंगे.
कहने की आवश्यकता नहीं कि बिहार यूपी पिछड़े क्यों हैं. कश्मीर हिमाचल में आधी आबादी सरकारी नौकरी पर आश्रित है. और ये दोनों प्रदेश, नार्थ ईस्ट केंद्रीय सहायता पर आश्रित हैं.
नौकरी खोजने वाला देश, समाज, राज्य कभी तरक्की नहीं कर सकता. आत्मनिर्भर नहीं हो सकता. खासतौर पर सरकारी नौकरी खोजने वाला समाज.