स्वरोजगार : मोदी सरकार की स्टार्ट अप योजना की उपलब्धि

बात सन दो हजार छह की है बेटे अद्वैत को बी टेक इलेक्ट्रॉनिक व कम्युनिकेशन में लखनऊ के एक तथाकथित भव्य बिल्डिंग वाले इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिला.

हम सब भी खुश हुये चलो बेटा एक काबिल इंजीनियर बन देश की प्रगति में योगदान देगा परंतु मात्र दो साल में ही उस भव्य बिल्डिंग व टीमटाम की कलई खुल गई. कॉलेज के सीनियर्स का कहीं प्लेसमेंट नहीं और वही सीनियर बी टेक दस दस हजार में उसी कॉलेज में पढ़ाने का रोजगार पाते थे.

सारी फैकल्टी कागजों पर.. मैनेजमेंट को बस मोटी फीस से मतलब. यानि कि इस कॉलेज से बी टेक की डिग्री ले भी ली तब भी भविष्य घोर अंधकार में.

बस वापस बुला लिया और कानपुर आगरा जैसी यूनिवर्सिटी छोड़ उसको दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी काम दूरस्थ शिक्षा से प्रवेश दिलवा दिया क्योंकि मुझे मालूम हो गया था कि हमारे आस पास की यूनिवर्सिटी का एम बी ए एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के बी काम कोर्स से भी बदतर है.

खैर बी काम करने के दौरान ही उसने दिल्ली में रहते हुये शादी डाट काम जैसी कंपनियों में कस्टमर केयर एक्जक्यूटिव की पांच छह हजार में रात्रि कालीन ड्यूटी करते हुये अपना खर्चा निकाला व आफिस वर्क कल्चर को समझते हुये डिग्री मिलते ही गुरुग्राम में एसेंसर जैसी प्रख्यात कंपनी में एक अच्छा पद पा लिया.

दो साल बाद उसका विवाह भी नेहा के साथ कर दिया जो एक प्रतिष्ठित स्कूल से एम बी ए व एक मेडिकल कॉलेज में एच आर मैनेजर का दायित्व संभाले हुये थी.

कथा कितनी सुंदर है ना दोनों काम से लगे हुये अच्छा पद अच्छी सेलरी एक युवा को और क्या चाहिये?

रुकिये अभी कहानी में ट्विस्ट है क्योंकि अब मोदी जी प्रधान सेवक बन चुके थे देश के जो मेक इन इंडिया व स्वरोजगार पर जोर दे रहे थे यानि आप कुछ ऐसा करें जो आप अपने साथ एक और को भी रोजगार दे सकें.

उन दोनों ने भी नौकरी छोड़ स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाने का निश्चय किया. अब भई हम ठहरे खैराती दवाखाना चलाने वाले जो शाम तक अपनी दाल रोटी का ही इंतजाम कर पाते थे हमारे पास कहां पंद्रह बीस लाख की पूंजी जो दे कर कहते चलो कर लो जो करना चाहते हो.

उन दोनों के पास भी बचत के दो तीन लाख ही थे. इधर उधर भाग दौड़ कर एक प्रख्यात फूड चेन के पिज्जा ( विदेशी पकौड़ा) की फीस भर कर फ्रेंचाइजी ले ली. अब रहा इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्चा उसके लिये लोकल मार्केट से सब कुछ क्रेडिट पर उठाया फर्नीचर, ए सी, एल सी डी और इतना सब कुछ सेट अप बना बैंकों से संपर्क किया. सारा प्रोजक्ट सर्वे करने के बाद एक बैंक तैयार हो गया लोन देने के लिये.

और आज दोनों एक पिज्जा आउटलेट को बखूबी चला रहे हैं, दसियों को रोजगार दिये हैं खुद भी इतना कमा रहे हैं कि इनको अपनी पूर्व सेलरी की याद भी नहीं आती, धीरे धीरे बाजार से उठाये उधार का भी पेमेंट करते जा रहे हैं. बैंक की किश्तें भी समय से दे रहे हैं, जी एस टी भी दे रहे हैं और इनकम टैक्स भी देंगे ( अभी मात्र सात माह हुये हैं).

नेहा रिशेप्शन पर खड़ी हो पिज्जा बर्गर का आर्डर भी लेती है, होम डिलेवरी के आर्डर भी फोन पर लेती है और कभी किसी कुक के एबसेंट होने पर पिज्जा बना उस पर टॉपिंग भी कर लेती है. उसे शायद भान भी ना होता कि वह एम बी ए डिग्री होल्डर है उसके लिये तो व्हाइट कालर जॉब होना चाहिये यहां तो ब्लू कालर करना पड़ रहा है.

एक वाकये के साथ अपने इस लेख को विराम दूंगा. बेटे ने नई नई कार चलाना शुरु किया था. एक दिन मैं एक संकरी भीड़भाड़ वाली सड़क पर उसके साथ जा रहा था. एक जगह कार फंस गई जैसा कि होता है आगे से रिक्शे बाले, पैदल हाथ से इशारा करने लगे निकालिये निकालिये निकल जायेगी आपकी गाड़ी, कोई बोल रहा था जरा सा अगला पहिया दायें घुमा आगे बढ़ जाइये पर बेटा निर्विकार भाव से स्टेयरिंग पर हाथ धरे बैठा रहा.

मैंने टोका जब इतने लोग कह रहे हैं गाड़ी निकल जायेगी तो निकालते क्यों नहीं इस पर वह बोला पापा गाड़ी मैं ड्राइव कर रहा हूं वह नहीं, जब तक मैं ना कंफर्म हो जाऊं कि आगे बिना खरोंच खाये टकराये निकाल सकता हूं तब तक नहीं निकालूंगा.

ऐसे ही मोदी जी ने इशारा कर दिया आ जाओ आ जाओ पकौड़े का रोजगार भी है कर सकते हो अब आपके ऊपर है कि अपनी गाड़ी उस दिशा में बढ़ा कर निकालने का माद्दा है कि नहीं अगर नहीं है तो चुपचाप बैठ अपनी बेरोजगारी का स्यापा करो, इतनी लंतरानी क्यों पेले पड़े हो. अरे कांफीडेंस पैदा करो कांफीडेंस. स्टेयरिंग पर बेटा भी हाथ धरे सोचता रहा फिर निकाली तो उसने अगला पहिया थोड़ा सा दांयी ओर घुमा कर ही.

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