एक मित्र से हो रहे वार्तालाप में बच्चों को विज्ञान की दिशा में प्रोत्साहित करने का विषय उठा. तभी से मेरे मन में बहुत से विचार उमड़ रहे थे, उन्हीं को सहेज कर यह लेख लिखा है. यदि आप लोग भी अपने बच्चों को वैज्ञानिक बनाना चाहते हैं तो मेरी तरफ से कुछ पॉइंट्स नोट कर लीजिए:
1. बच्चों के भविष्य के बारे में केवल आप और हम ही नहीं सोचते. बच्चे स्वयं भी अपने करियर की प्लानिंग करते हैं. यह सदैव ध्यान रखें कि बच्चों की शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण उनका मनोविज्ञान है.
दुनिया की चकाचौंध से प्रभावित होकर एक बच्चा भी सुखी, सम्पन्न जीवन की कल्पना करता है. पैसे का मोल हम बड़े लोग ही नहीं एक बच्चा भी समझता है. आप अपने ऑफिस में बॉस हो सकते हैं किंतु अपने बच्चों के लिए आप पिता ही रहेंगे.
कहने का तात्पर्य यह है कि सर्वप्रथम यह भांपना आवश्यक है कि आपके बच्चे के मन में प्रकृति, साहित्य और कला के प्रति प्रेम वास्तव में है अथवा नहीं. यदि आपके बच्चे के मन में प्रकृति, साहित्य और किसी भी ललित कला (चित्रकला, संगीत, नृत्य आदि) के प्रति प्रेम नहीं है तो वह किसी शोध संस्थान में ‘साइंटिस्ट-ए-बी-सी-डी’ का पद भले प्राप्त कर ले किन्तु देश और समाज को योगदान देने वाला वैज्ञानिक कभी नहीं बन सकता.
विज्ञान रचनात्मक विद्या है. रचनात्मक प्रवृत्ति का छात्र इसे सीखे तो उसका मन वैज्ञानिक शोध के रोमांच को सहज ग्रहण करता है. इसे व्यवसायिक मनोवृत्ति का बच्चा जो केवल फर्स्ट आने के लिए रटंत का अभ्यासी है वह न समझ सकता है न आत्मसात कर सकता है.
बच्चे के मन को पूर्व में ही भांप लेने से अपनी इच्छा थोपने का झंझट नहीं करना पड़ता. इससे परिवार और सन्तान के मध्य करियर को लेकर घर्षण की संभावना क्षीण हो जाती है.
2. अब यदि बच्चा प्रकृति और कला की समझ रखता है तो बचपन से ही उसे गणित विषय सीखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. वेदवाक्य स्मरण रहे- ‘वेदांग शास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्’.
आज के समय में थ्योरेटिकल कम्प्यूटर साइंस, फाइनेंस से लेकर बायोलॉजी तक प्रत्येक विषय में गणित का प्रयोग होता है. यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि ‘गणित’ और ‘अंकगणित के प्रश्न हल करने की क्षमता’ में अंतर होता है. सामान्य अंकगणित जोड़-घटाना-गुणा-भाग ही होती है. इसमें धीमा होने पर किसी छात्र को गणित में कमजोर नहीं माना जा सकता.
मरयम मिर्ज़ाखानी प्रथम महिला थी जिन्हें गणित में फील्ड्स मेडल प्राप्त हुआ था. वह बेचारी गत वर्ष मर गयीं. उनके अनुसार गणित का सौन्दर्य जल्दीबाजी में नहीं दीखता. गणित के सिद्धांत धैर्यवान मस्तिष्क को समझ में आते हैं.
एक वैज्ञानिक बनने के लिए बेसिक त्रिकोणमिती, कैलकुलस, सीरीज़, बायिनोमियल थ्योरम, सांख्यिकी, परमुटेशन कम्बीनेशन, प्रायिकता, थ्री-डी ज्यामिति इत्यादि कक्षा ग्यारह-बारह की गणित समझना बायोलॉजी ग्रुप के छात्र के लिए भी अत्यावश्यक है.
यह दिमाग से निकाल देना चाहिए कि बायोलॉजी में गणित प्रयुक्त नहीं होती. जब बैक्टीरिया तीव्र गति से अरबों की संख्या में बढ़ते हैं तो उनके व्यवहार को गणितीय सिद्धांतों से ही समझा जा सकता है. इस प्रकार Mathematical Biology नामक विषय प्रगति कर रहा है.
3. एक हाई स्कूल के बच्चे के भीतर एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र से भी अधिक ऊर्जा होती है. इस ऊर्जा को दिशा देने की आवश्यकता है. अतः अपने बच्चे को यह बताइये कि मौलिक विज्ञान की पढ़ाई अब परम्परागत बीएससी-एमएससी जैसी नहीं रही. साइंटिफिक रिसर्च में भी अपार संभावनाएं हैं और इस फील्ड में भी पैसा है.
समाज में सामान्यतः यही धारणा है कि ‘रिसर्च में बहुत समय लगता है’ और ‘कमाई कुछ नहीं होती’. यह धारणा अब पुरानी हो चुकी है. भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc, Bengluru) में क्लास XII के बाद JEE (mains/advanced) उत्तीर्ण करने पर चार वर्षीय BS पाठ्यक्रम में प्रवेश मिलता है. इस डिग्री के उपरान्त छात्र चाहें तो सीधा पीएचडी में प्रवेश ले सकते हैं अथवा एक वर्ष और पढ़कर एमएससी करके संस्थान छोड़ सकते हैं.
यह कोर्स इस प्रकार बनाया गया है कि पूरी पढ़ाई करने के पश्चात एक विद्यार्थी मौलिक विज्ञान के किसी एक विषय में दक्ष होकर निकलेगा. डिग्री का पाठ्यक्रम विश्वस्तरीय शोधकार्य तथा इंडस्ट्री दोनों की डिमांड के अनुसार डिजाइन किया गया है.
भारतीय विज्ञान संस्थान में मेरिट के आधार पर KVPY परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को प्रतिमाह छात्रवृत्ति भी मिलती है. जिस प्रकार इंजीनियरिंग के लिए आइआइटी बनाये गये थे उसी प्रकार मौलिक विज्ञान में शोध के लिए बेसिक ट्रेनिंग देने हेतु सात IISER (Indian Institutes of Science Education and Research) बनाये गए हैं. यहाँ भी BS-MS डिग्री मिलती है एवं नियमों के अनुसार छात्रवृत्ति का प्रावधान है.
इन संस्थानों में टॉप क्वालिटी फैकल्टी रखी गई है, अर्थात् वे शिक्षक जिन्हें प्रोफेशनल तरीके से शोध करना और परिणाम देना आता है. यह पारम्परिक यूनिवर्सिटी सिस्टम से भिन्न है.
भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग ने मुम्बई विश्वविद्यालय के सहयोग से ‘मौलिक विज्ञान प्रकर्ष केंद्र’ (UM-DAE CEBS) और उड़ीसा में National Institute of Science Education and Research की स्थापना की है. यहाँ कक्षा बारह के उपरान्त NEST परीक्षा उत्तीर्ण करने पर पंचवर्षीय इंटिग्रेटेड एमएससी में प्रवेश मिलता है. यहाँ भी प्रतिमाह पांच हजार रूपये छात्रवृत्ति मिलती है.
इन दो संस्थानों से पढ़ने के पश्चात् जॉब मांगने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता. परमाणु ऊर्जा विभाग अधिकांश छात्रों को अपने शोध संस्थानों में अच्छे वेतन पर नौकरी प्रदान करता है.
यदि आपका बच्चा गणित में मेधावी है तो उसे भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) अथवा चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टिट्यूट में जाना चाहिए. सांख्यिकी सहित सभी गणितीय विधाओं और सैद्धांतिक कम्प्यूटर विज्ञान के अत्याधुनिक विषय, यथा डेटा माइनिंग, क्रिप्टोलोजी, मशीन लर्निंग आदि के लिए ISI और CMI से बेहतर कोई संस्थान नहीं.
यहाँ ध्यान देने की आवश्यकता है कि इंजीनियरिंग में कहीं भी बीटेक के छात्रों को छात्रवृत्ति नहीं मिलती जबकि मौलिक विज्ञान पढ़ने के लिए सरकार पैसा देती है.
4. अपने बच्चों को यह समझाइये कि पीएचडी करने के पश्चात शोध संस्थान और इंडस्ट्री दोनों के लिए शोधार्थी एक अमूल्य निधि बन जाता है. अभी हो रहे समस्त प्रयास भले ही छोटे दिख रहे हों किन्तु आने वाले समय में शोध एवं विकास में भारत को आगे बढ़ना ही होगा.
गवर्नेंस की भावी नीतियाँ वैज्ञानिक-तकनीकी शोध पर ही केन्द्रित होंगी. विश्व में आर्थिक रूप से अग्रणी होकर अपना स्थान सुरक्षित करने के लिए हमारे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं होगा.
वैज्ञानिक शोध में निवेश करना देश के लिए बाध्यकारी है इसीलिए देश में ऐसा प्रथम बार हुआ जब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस वर्ष के बजट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स जैसे विषयों का उल्लेख किया है.
यह उभरता हुआ क्षेत्र है जो भविष्य में हमारी सभ्यता को पूर्ण रूप से परिवर्तित करने की क्षमता रखता है. एक छोटा सा उदाहरण देखें तो फ्लिप्कार्ट पर ‘मीको’ रोबोट बिकने लगा है जिसे आइआइटी बॉम्बे से निकले छात्रों ने अपनी स्टार्टअप कम्पनी में बनाया है.
5. अपने बच्चों को यह भी बताइए कि विज्ञान प्रगतिशील विधा है, यहाँ पिछड़ने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है. 25 मई 1961 को अमरीकी कांग्रेस में जॉन केनेडी ने राष्ट्र को वचन दिया था कि एक दशक के भीतर हम चन्द्रमा पर पहुँचेंगे और 20 जुलाई 1969 को अपोलो यान चन्द्रमा की सतह पर उतरा था. विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा का यह उत्कृष्ट उदाहरण है.
कम्प्यूटर विज्ञान के जनकों में से एक एलन ट्युरिंग ने अपनी मशीन युद्धकाल में ही बनाई थी. एटम बम का अविष्कार जर्मनी से प्रतिस्पर्धा करने के कारण ही हो पाया. भारत अब दशकों में पूर्ण होने वाली योजनाओं का भार नहीं उठा सकता. हमें समयबद्ध होकर वैज्ञानिक शोध करना होगा.
6. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि विज्ञान के किसी विषय में निष्णात होने के पश्चात कुछ लोगों का मन शोधकर्ता के रूप में करियर बनाने का नहीं होता. अतः बच्चों को विज्ञान के क्षेत्र में ही अन्य आयामों की जानकारी देना आवश्यक हो जाता है.
बच्चों को यह बताएं कि वैज्ञानिक तीन प्रकार के होते हैं: Practicing Scientist, Teaching Scientist and Preaching Scientist. कुछ वैज्ञानिक जीवन भर प्रयोगशालाओं में ही रहते हैं. बाहरी दुनिया से उनका सरोकार नहीं होता. वे प्रैक्टिसिंग साइंटिस्ट होते हैं.
कुछ वैज्ञानिक अधिक मात्रा में शोधपत्र प्रकाशित नहीं करते किन्तु उनके भीतर ज्ञान के प्रतिपादन की क्षमता अद्भुत होती है. ऐसे ‘टीचर-साइंटिस्ट’ विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं और ऐसी टेक्स्टबुक लिख जाते हैं जो दशकों तक पढ़ी जाती हैं. विद्यार्थियों के लिए उनकी लिखी पुस्तकें गीता के समान होती हैं.
ऐसे वैज्ञानिक जो टीचर बनना चाहते हैं अथवा साइंस एजुकेशन/कम्युनिकेशन के क्षेत्र में नाम कमाना चाहते हैं वे टाटा इंस्टिट्यूट (टीआईएफआर) के होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एजुकेशन से फेलोशिप के साथ ‘साइंस एजुकेशन’ में पीएचडी कर सकते हैं. यह अपनी तरह का विशिष्ट कोर्स है.
तीसरे प्रकार के वैज्ञानिक वह होते हैं जो विज्ञान को आमजन तक पहुंचाते हैं. ऐसे पत्रकार व लेखक लोकप्रिय विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करते हैं. ये लोग पुस्तकें, आलेख, वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री) इत्यादि लिखते बनाते हैं. एक शोधार्थी भी यह कार्य कर सकता है.
मुझे कुछ दिनों पूर्व सिस्टम्स बायोलॉजी पर “Systematic” नामक एक पुस्तक मिली. यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इसके लेखक जेम्स वाल्कोर्ट पुस्तक प्रकाशित होने तक हार्वर्ड में पीएचडी छात्र थे. विदेशों में ऐसे बहुत से पत्रकार हैं जिन्होंने ख्यातिप्राप्त संस्थानों से विज्ञान की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् विज्ञान के विषयों पर लेखन प्रारंभ किया.
सच तो यह है कि भारत लोकप्रिय विज्ञान (Popular Science) का एक बहुत बड़ा पोटेंशियल मार्केट है क्योंकि यहाँ विज्ञान पर विमर्श अभी तक चाय की दूकान पर नहीं आया है. सोशल मीडिया तथा ढेरों पत्रिकाओं में दिन-रात कूड़ा-करकट छपता रहता है. ऐसे में यदि मौलिक विज्ञान के विषयों में प्रवीण लोग इस क्षेत्र में आयेंगे तो निश्चित रूप से युवा वर्ग इन्हें खुलेमन से स्वीकार करेगा.