1995 में राजधानी में एक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) तैनात हुआ था.
कुछ ही दिनों में उसका ऐसा सिक्का जम गया था कि राजधानी के आम नागरिकों के मध्य यह फिल्मी डायलॉग बहुत लोकप्रिय हो गया था कि… ‘गुण्डों बदमाशों ने सूर्यास्त के बाद घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है.’
यह डायलॉग यूं ही लोकप्रिय नहीं हुआ था. इसके पीछे ठोस कारण था. उस कारण को आप इस उदाहरण से समझ जाएंगे…
उन दिनों प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था. किसी मुख्यमंत्री के बजाय गवर्नर का शासन चल रहा था.
उसी दौरान इन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कहर से बचने के लिए एक कुख्यात माफिया ने गवर्नर पर दबाव डालने में पूर्णतया सक्षम एक बहुत उच्च स्तरीय राजनीतिक सिफारिश का जुगाड़ कर लिया था.
परिणामस्वरूप उन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय को गवर्नर हाऊस तलब कर लिया गया था.
जब उनके सामने सिफारिश की बात रखी गयी थी तो उस माफिया का आपराधिक इतिहास गवर्नर को बताकर उस माफिया को किंचित मात्र भी राहत नहीं देने का टका सा जवाब गवर्नर को देकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय लौट आये थे.
कुछ ही दिनों में उस माफिया को गिरफ्तार कर उस पर रासुका लगा के उन्होंने उसको लम्बे समय तक के लिए सींखचों के पीछे पहुंचा दिया था.
यह स्तर था उनकी सख्ती और ईमानदारी का. उन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का नाम था सूर्यकुमार शुक्ल.
आज उन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सूर्यकुमार शुक्ल, जो अब DG होमगार्ड बन चुके हैं का जिक्र इसलिए क्योंकि उनके खिलाफ आज न्यूज़ चैनलों पर इस बात के लिए मोहर्रम मनते हुए देखी कि… उन्होंने राम मंदिर निर्माण का खुलकर समर्थन किया और उसके निर्माण की शपथ सार्वजनिक रूप से ली.
मेरी समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा कर के उन्होंने कौन सा अपराध कर दिया है.
वैसे यह भी बता दूं कि जब वो राजधानी लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे उस समय भी उनकी टेबिल पर श्री रामचरित मानस या फिर गीता नियमित रूप से रखी रहती थी.