पश्चिम में एक बहुत बड़ा नर्तक हुआ इस सदी के प्रारंभ में, उसका नाम था, निजिंस्की. मनुष्य जाति के इतिहास में थोड़े से लोग ऐसे नर्तक हुए हैं, जैसा निजिंस्की था.
निजिंस्की के साथ बड़ी मुश्किल थी. नाच शुरू तो वह करता था, लेकिन फिर उस पर कोई नियंत्रण नहीं रखा जा सकता था, कि थियेटर का मैनेजर कहे कि अब घंटी बजे तो बंद.
क्योंकि वह कहेगा, बंद करने वाला कौन? एक दफे शुरू हो गया, फिर जब होगा बंद, तब होगा.
तो कभी तीन घंटे नाचता, चार घंटे नाचता, कभी पंद्रह मिनट में पूरा हो जाता.
मैनेजर्स बहुत परेशान थे, व्यवस्था करने वाले थियेटर के, कि किस तरह लोगों को टिकट बेचे! क्योंकि कभी वह खड़ा ही रह जाता और नाचता ही नहीं, और कभी नाचता, तो पूरी रात नाचता.
और उस जैसा नाचने वाला नहीं हुआ है. वैज्ञानिक भी चकित थे उसके नाच से, क्योंकि नाचते-नाचते ऐसी घड़ी आती थी कि वैज्ञानिकों ने भी यह निर्णय दिया कि ग्रेविटेशन का असर उस पर खतम हो जाता है. ज़मीन में जो कशिश है, जिससे हम ज़मीन से बंधे हैं, पत्थर को फेंको, वह नीचे आ जाता है.
निजिंस्की नाचते-नाचते एक ऐसी घड़ी में पहुंच जाता था, जहां योगी पहुंचते हैं. उस घड़ी में वह इतनी ऊंची छलांगें भरने लगता था, जो कोई मनुष्य कभी भर ही नहीं सकता, क्योंकि ज़मीन में इतनी कशिश है. और वह ऐसा हलका हो जाता था, जैसे पंख लग गए.
अनेक अध्ययन किए गए हैं निजिंस्की के कि घटना क्या घटती थी! जिसको योग में लेविटेशन कहते हैं, कि कभी-कभी योगी ज़मीन से ऊपर उठ जाता है. तुमने ऐसी कहानियां सुनी होंगी. कभी-कभी यह घटता है.
अभी पश्चिम में एक महिला है चेकोस्लोवाकिया में, वह चार फीट ऊपर उठ जाती है ध्यान की अवस्था में. उसके बहुत अध्ययन किए गए हैं, चित्र लिए गए हैं, फिल्म ली गई है. नीचे से लकड़ियां निकाली गईं, नीचे से आदमी सरककर निकले कि पता नहीं कोई धोखा तो नहीं है!
लेकिन वह चार फीट ऊपर उठ जाती है. जैसे ही वह ध्यान करती है, पंद्रह मिनट के बाद चार फीट ऊपर उठ जाती है. अब यह एक वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक तथ्य है.
निजिंस्की के साथ भी यही होता था. कोई पंद्रह मिनट के बाद एक ट्रांसफामेंशन हो जाता था, एक रूपांतरण हो जाता.
निजिंस्की फिर था ही नहीं वहां, उसके चेहरे पर कोई आविर्भाव हो जाता था, वह एक ऊर्जा हो जाता, एक शक्ति मात्र, जो नाचती.
और नाचते—नाचते इतनी ऊंची छलागें लेने लगता और हवा में तिरने लगता कि जैसे थोड़ी देर को रुक गया है, न ऊपर जा रहा है, न नीचे गिर रहा है, इतना हलका हो जाता.
निजिंस्की से जब पूछा जाता कि तुम यह कैसे करते हो? तो वह कहता, करने वाला तो कोई होता ही नहीं. बस, यह होता है. कृत्य और कर्ता में फर्क नहीं रह जाता, तभी यह होता है.
इसलिए तो हिंदुओं ने परमात्मा को नटराज कहा. नटराज का अर्थ होता है, नाचने वाला. नाचने वाले की बड़ी खूबी है एक. वह खूबी यह है कि तुम नाचने वाले से नाच को अलग नहीं कर सकते.
कोई चित्रकार है, तो चित्र अलग हो जाता है, बनाने वाला अलग हो जाता है. कोई मूर्तिकार है, मूर्ति अलग हो जाती है, मूर्तिकार अलग हो जाता है. मूर्तिकार मर जाए, तो भी मूर्ति बनी रहेगी हजारों साल तक. चित्रकार के चित्र को जला दो, तो चित्रकार न जलेगा.
इसलिए हिंदुओं ने परमात्मा को चित्रकार नहीं कहा, मूर्तिकार नहीं कहा. उन्होंने कहा, नटराज. नटराज का मतलब यह है कि तुम उसकी प्रकृति को और उसे अलग—अलग नहीं कर सकते, जैसे नर्तक के नृत्य को अलग नहीं कर सकते.
नर्तक मर गया, नृत्य मर गया. और अगर तुम नृत्य बंद कर दो, तो उस आदमी को नर्तक कहने का अब क्या अर्थ है! वह तो नर्तक तभी तक था, जब तक नाचता था.
सृष्टि और सृष्टा के बीच नाचने वाले और नाच का संबंध है. उन्हें तुम अलग नहीं कर सकते. इसलिए कोई परमात्मा चला रहा है, ऐसा नहीं. जब कोई नर्तक नाचता है -सिक्सडू की छोड़ दो, क्योंकि उसको तो नर्तक कहना ठीक नहीं – जब कोई कुशल नर्तक नाचता है, तो नाचने वाला और नाच दो नहीं होते.
यह पक्षियों के कंठ में उसी का गीत है, जो तुम सुन रहे हो. वृक्षों से निकलती हवाओं में वही निकलता है. और वृक्षों के फूलों में भी वही खिला है. झरनों में उसी का कल—कल नाद है.
मुझसे वही बोल रहा है, तुमसे वही सुन रहा है. वही कहीं चोर है, वही कहीं साधु है. वही कहीं बेईमान है, कहीं परम संत है. वही कहीं रावण है, कहीं राम है. सारी लीला एक की है. और वह एक जो भी कर रहा है, सब उसके भीतर है, बाहर नहीं है.
इसलिए आस्तिक का क्या अर्थ होगा? दो अर्थ होंगे. एक तो बच्चों को सिखाई जाने वाली आस्तिकता, जिसमें हम कहते हैं, परमात्मा ऊपर है. ऐसा लगता है, कोई बड़ा इंजीनियर है, जो सब चीजों को सम्हाल रहा है. या कोई बड़ा न्यायाधीश है और वहां से कानून चला रहा है. और लोगों को दंड दे रहा है; अच्छों को बचा रहा है, बुरों को मार रहा है.
या लगता है कि कोई तानाशाह है, कोई स्टैलिन, हिटलर की महाप्रतिमा, कि जो उसकी मौज में आ रहा है, कर रहा है. जब पत्तों को हिलाना है, हिला देता है. जब नहीं हिलाना, नहीं हिलाता. नियम उसके हाथ में है, चाहे बचाए, चाहे मारे. सब उसके हाथ में है. तुम स्तुति करो, इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है.
यह बच्चों का भगवान है. बच्चों को भी चाहिए. और यह मत सोचना कि सिर्फ छोटे—छोटे बच्चे ही बच्चे होते हैं. सौ में से नब्बे प्रतिशत लोग तो मरते समय तक बचकाने होते है, उनकी बुद्धि में कोई प्रौढ़ता नहीं आ पाती.
फिर एक प्रौढ़ आस्तिकता है. उस आस्तिकता का कोई संबंध ही इस तरह की धारणा से नहीं है. ध्यान रखना, बच्चों की आस्तिकता में भगवान है. भगवान एक व्यक्ति की तरह, एक पर्सनल व्यक्तिवाची शब्द है.
प्रौढ़ व्यक्तियों की भाषा में भगवान है ही नहीं, भगवत्ता है एक गुण, एक क्वालिटी, एक चैतन्य का विस्तार – कोई व्यक्ति नहीं है भगवान कि जिसे तुम मिलोगे. वह तुम्हारे ही होने की आत्यंतिक अवस्था है. अस्तित्व है भगवान.
इसलिए बुद्ध और महावीर जैसे परम आस्तिकों ने भगवान शब्द का उपयोग ही नहीं किया. बच्चों की आस्तिकता वाले लोगों ने उनको नास्तिक कहा है, कि ये नास्तिक हैं, क्योंकि ये भगवान को नहीं मानते हैं.
– ओशो, गीता दर्शन