आपातकाल, 1977 के लोकसभा चुनाव, इंदिरा गांधी और भारतीय बुद्धिजीविता
भारतीय पत्रकारिता की जानी मानी हस्ती सागरिका घोष ने हाल ही में इंदिरा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष में उनपर एक पुस्तक लिखी है जो बहुत चर्चित हुई है :
Indira – India’s most powerful prime minister
पुस्तक के विमोचन में अरुण शौरी जैसे बुद्धिजीवी उपस्थित थे.
मैं उस पुस्तक के बारे में उनका साक्षात्कार देख रहा था. बहुत सी दिलचस्प बातों के बीच उन्होंने ज़ोर दे कर कई बार कहा कि इंदिरा ने आपातकाल हटा कर चुनाव कराने के बारे में संजय से राय नहीं ली थी.
मैं इन मोहतरमा को बताना चाहूँगा कि चुनाव आपातकाल हटा कर नहीं, आपातकाल के दौरान आपातकाल के रहते हुए ही हुए थे.
आपातकाल चुनाव के नतीजे आने और इंदिरा के धराशायी होने के बाद हटाया गया.
जानकारी के लिए यह भी बताता चलूँ कि मैं और मेरे जैसे हजारों राजनैतिक क़ैदी चुनाव समाप्त होने और मोरार जी देसाई के प्रधानमंत्री बनने के बाद कारागार से रिहा किए गए थे.
इसका अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि यदि इंदिरा गांधी वह चुनाव जीत गई होतीं तो आपातकाल सम्भवत: आगे भी चलता रहता और खुदा जाने मेरे जैसे लोग पता नहीं कब तक कारागार में मीसा के तहत बंद रहते.
*चुनावों की घोषणा = 23 जनवरी
*मतदान = 18 और 19 मार्च
*मतगणना = 20 मार्च
*आपातकाल का हटना = 21 मार्च
*मोरारजी देसाई का प्रधानमंत्री बनना = 24 मार्च
*मेरी रिहाई = 25 मार्च
यह है भारतीय पत्रकारिता का स्तर.
यदि इतनी सीधी, स्पष्ट और महत्वपूर्ण बात पर भी इस तरह की गलती हो सकती है, अनजाने (अक्षमतावश) या जानबूझ कर (बेईमानी वश), तो इनकी बाकी बातों का विश्वास क्यों कर किया जाए?