सामग्री
अरवा चावल -1 किलो
गुड़ -1
तलने के लिए घी/रिफाइंड आयल
विधि
चावल को अच्छी तरह धो कर किसी बड़ी चलनी या सूप में तीन से चार घण्टों के लिए रख देंगे.
इस निथारे हुए चावल को बिना पानी मिक्सी में पीस लेंगे. हालांकि मईया इसे ऊखल-मूसल में हाथों से कूटा करती थीं.
एक कड़ाही में गुड़ को हल्के से पानी के साथ गर्म कर के घोल बना लेंगे. बिना ज्यादा खौलाये हुए ही धीरे-धीरे चावल का आटे को उस घोल में डालते हुए फुर्ती से उसे मिलाते रहेंगे ताकि आटे की गुठली न बनने पाये.
यह मिश्रण ऐसा बन जाना चाहिए कि इसकी लोइयाँ आसानी से बनाई जा सके. परन्तु यह सब बहुत ही सावधानी से और कम ही समय में करना होता है क्योंकि गुड़ यदि ज्यादा खौल जाए तो अरसा मुलायम न होकर चिमड़ा सा हो जाएगा.
इस मिश्रण के गर्म-गर्म रहते ही में कटहल के पत्ते पर मनचाही पूरियों का आकार दे दे कर छान लेना है. हालांकि मुझे कटहल के पत्ते के मिलने की कोई गुंजाइश नहीं थी सो मैंने मनीप्लांट का पत्ता ही इस्तेमाल कर लिया है. परन्तु इसमें यह असुविधा भी हुई कि पतला होने की वजह से पत्ता जल्दी ही झुलस जा रहा था.
थोड़ी मेहनत भरी विधि होने से लोग आजकल इसे बनाना भूलते जा रहे हैं. पर जिन्होंने जीवन में एक बार भी इसे खाया हो वह इसका स्वाद कभी नहीं भूल सकते.
मईया की इस थाती को विरासत में पा कर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती हूँ.
– कल्याणी मंगला गौरी