ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी लक्ष्म्यै सकल सौभाग्यं मे देहि स्वाहा

यह मंत्र दोबारा मेरे सामने था –
पहली बार साहित्यकार गुरुदत्त की आत्मकथा “भाग्यचक्र” पढ़ते हुए, दूसरी बार गीता प्रेम गोरखपुर की कल्याण का ‘ज्योतिषतत्वांक’ पढ़ते हुए.

कहते हैं आपकी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान आपको जिन लोगों से मिलना होता है या जो पुस्तकें आपको पढ़नी होती है वो स्वत: ही आपके सम्मुख प्रस्तुत हो जाती है. या इसे यूं कहिये कि अस्तित्व खुद आपको उस तक या उसको आप तक पहुंचा देता है.

कल्याण का ‘ज्योतिषतत्वांक’ मैंने नहीं खरीदा लेकिन जैसे साल दो साल पहले मेरे लिए ही खरीदकर रख लिया गया. और समय आने पर स्वत: ही मेरा हाथ उस तक बढ़ा और उसमें लिखी बहुत ही उपयोगी और गूढ़ जानकारी के साथ उन लोगों का ज़िक्र जिनके बारे में की गयी भविष्यवाणियाँ बिलकुल सच निकली, जिसमें पहला नाम हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा ‘क्या भूलूँ क्या याद करूं’ से उनके नाना की मृत्यु की भविष्यवाणी का है.

दूसरा गुरुदत्त की आत्मकथा “भाग्यचक्र” से उस हिस्से का ज़िक्र है जब कोई अनजान पंडित गुरुदत्त के पास आकर शहर छोड़ने की चेतावाने देते हैं. गुरुदत्त को बाद में पता चलता है कि उस पंडित को स्वयं स्वप्न में आकर भगवती ने यह कार्य करने को कहा था, और साथ ही इस मंत्र का ज़िक्र भी उसी पुस्तक में पढ़ रही हूँ, जब सरस्वती की छिपी हुई शक्ति को प्रकट करने के लिए एक तांत्रिक द्वारा उन्हें यह मंत्र दिया जाता है.

ऐसे ही किस्से का ज़िक्र करते हुए आध्यात्मिक गुरू श्री एम ने अपनी पुस्तक ‘हिमालयी गुरु के साये में’ लिखा है कि कैसे किसी पुस्तक को खोजते हुए जब वो लाइब्रेरी की एक शेल्फ में नीचे झुकते हैं तो उनके सर पर तीन पुस्तकें अपने आप बिना किसी हलचल के गिर जाती हैं. वो अचंभित होते हैं ये किताबें अपने आप कैसे गिरीं, जबकि उन्होंने शेल्फ को अभी छुआ तक नहीं.

अध्यात्म, ज्योतिष और आयुर्वेद में मेरी बढ़ती रूचि और रूचि के अनुसार मिल रही पुस्तकें और उन मोटी सी पुस्तकों में से उचित सामग्री उचित समय पर मुझे दी जा रही है.

जब जब भौतिकता मनुष्य पर हावी होने लगती है, अध्यात्म या ब्रह्माण्ड की ऊर्जा अपना रास्ता बनाकर दोबारा अपना फैलाव कर ही लेती है. सुषुप्त पड़ी दैवीय शक्ति जागृत होती है तो धरती का हर कोना आभामय होने लगता है फिर चाहे वो वास्तविक दुनिया का हो या आभासी.

अगर मनुष्य मान ले कि वो मात्र एक उपकरण है ब्रह्माण्ड की प्रयोगशाला का तो वो स्वयं एक नया तत्व खोज सकता है. फिर ब्रह्माण्ड के ग्रह नक्षत्रों की स्थिति और उनके प्रभावों को जानना और घटित हो रही घटनाओं के साथ सामंजस्य बिठाना बहुत सरल हो जाता है.

इसलिए कहा जाता है कि बिना आध्यात्मिक ज्ञान के ज्योतिष भी फलित नहीं होता, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि आपका आध्यात्मिक भाव ज्योतिष गणना को भी मात दे सकता है. फिर आपको ज्योतिष ज्ञान नहीं भी है तब भी आपका सोचा हुआ फलित हो जाएगा.

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