किस्सा ए हिजरा : कॉमिकल पार्ट

1920 की बातें तो नई लग सकती हैं पर हिजरा की एक छोटी मोटी कोशिश 2014 में भी हुई थी.

हालांकि इस बार मामला ‘इस्लाम खतरे में है’, का नहीं बल्कि शिया-सुन्नी जंग का नतीजा था.

मामला कागज़ी रह गया लेकिन दावे तो दोनों ने ही अपने दस-दस लाख वालंटियर इराक भेजने के किए थे.

[किस्सा ए हिजरा]

मई 2014 में इराक के शहर मोसुल पर कब्जे और अबू बक्र अल बगदादी के खुद को खलीफा घोषित करने के बाद भारत में शियाओं और सुन्नियों के बीच हिजरा के एलान की होड़ लग गई.

24 जून, 2014 को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर एक शिया संगठन अंजुमन ए हैदरी की अगुआई में शियाओं ने प्रदर्शन किया.

प्रदर्शन के दौरान इस संगठन ने इराक में शियाओं के पवित्रतम धर्मस्थलों कर्बला और नजफ की सुरक्षा के लिए वहां एक लाख शियाओं का दस्ता भेजने का एलान किया और इसके लिए बाकायदा भर्ती अभियान भी शुरू कर दिया.

[किस्सा ए हिजरा : भाग 2]

हालांकि जब भर्ती अभियान चल रहा था तो संगठन के नेता मौलाना कल्बे जव्वाद ईरान की सैर कर रहे थे.

इधर, उनका संगठन दावा कर रहा था कि वह अब तक 25 हजार युवाओं की भर्ती कर चुका है. इनमें बैंकर, बिल्डर और टेलीकॉम क्षेत्र में बड़े ओहदों पर बैठे बेहद पढ़े लिखे युवा भी शामिल हैं.

संगठन ने दावा किया कि इराक जाने के इच्छुक एक लाख स्वयंसेवक उसके संपर्क में हैं. लेकिन फिलहाल वह सिर्फ उन्हीं लोगों की भर्ती कर रहा है जिनके पास वैध पासपोर्ट हैं.

इस प्रदर्शन और अंजुमन ए हैदरी के इन दावों की पूरी इस्लामी दुनिया में चर्चा हुई. बगदादी की वेबसाइटों ने इसे प्रमुखता से छापा. अल जजीरा ने भी खासी तवज्जो दी इस खबर को.

अंजुमन ए हैदरी ने इराक जाने के इच्छुक युवाओं की भर्ती के लिए बाकायदा रजिस्ट्रेशन फॉर्म बांटने शुरू कर दिए और दावा किया कि अब तक एक लाख से ज्यादा लोग उनसे इस बाबत संपर्क कर चुके हैं.

पर वह इतने से ही संतुष्ट नहीं था. उसने कहा कि उसका लक्ष्य दस लाख स्वयंसेवकों की भर्ती का है और देश में शियाओं की भारी आबादी को देखते हुए यह कोई मुश्किल काम नहीं है.

स्वयंसेवकों ने कहा कि कर्बला और नजफ की हिफाजत के लिए वे सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हैं. और अगर सरकार ने उन्हें वीजा नहीं दिया तो वे भारतीय संविधान के दायरे में रहकर बिना हथियार उठाए आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष करेंगे.

बगदादी यह सुन कर डर गया था कि गांधी के देश से ऐसे एक लाख लड़ाके आ रहे हैं जिनमें से अगर 100 को बम से उड़ा दो तो बाकी के सौ उनकी जगह खड़े हो जाएंगे और कहेंगे- तुम कितने शिया मारोगे, हर घर से शिया निकलेंगे.

सुन्नियों को यह भर्ती अभियान पसंद नहीं आ रहा था. लखनऊ में 16 जून को शिया भाई इराक में अमन के लिए कोई विशेष प्रार्थना कर रहे थे.

सुन्नियों को इस इबादत में कोई खोट तो जरूर नजर आई होगी जो उन्होंने उन पर धावा बोल दिया. दो आदमी मारे गए और कई घायल हो गए.

अखिलेश भाई की पुलिस ने कहा कि इस दंगे के पीछे एक शिया व सुन्नी बिल्डर की आपसी प्रतिद्वंद्विता जिम्मेदार है. पर ‘न्यू एज इस्लाम’ ने पोल खोल दी.

इस वेबसाइट ने एक संपादकीय में इस घटना के लिए सुन्नी चरमपंथियों को जिम्मेदार ठहराया. इसके मुताबिक लखनऊ में महीनों से यह चर्चा गर्म थी कि ‘इंडियन तालिबान’ नाम का एक संगठन शियाओं को उसी तरह सबक सिखाएगा जैसे पाकिस्तान में सिखाया गया.

वैसे अभी तक तो किसी ने इस संगठन का नाम नहीं सुना है पर संपादकीय में सीधे तौर पर सऊदी अरब समर्थित संगठनों पर सुन्नी युवाओं को भड़काने का आरोप लगाया गया.

लेकिन सुन्नी भी पीछे नहीं रहे. बगदादी के कदरदानों में से एक हैं लखनऊ के दारुल उलूम नदवातुल उलामा के मौलाना सलमान नदवी.

पहले बगदादी को बधाई देकर चर्चा में आए. लेकिन सिर्फ बधाई दे देने से भर मन नहीं माना तो उन्होंने सऊदी अरब के नाम एक खुली चिट्ठी लिखी और शियाओं से मुकाबले के लिए पांच लाख भारतीय सुन्नी मुसलमानों की फौज खड़ी करने के लिए मदद मांगी.

लेकिन सरकार जब सख्त हुई तो दोनों ने पलटी मार ली. कहा कि ये फौज अगर इराक गई तो भी हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देगी, अहिंसक तरीकों से लड़ेगी.

सूत्रों ने मुझे बताया कि तय ये था कि बगदाद में शिया-सुन्नी मुहल्लों को बांटने वाले एक पुल पर कल्बे जव्वाद और सलमान नदवी की फौजें आपस में गले मिलेंगी और इस मौके को यादगार बनाने के लिए अमन पर मुशायरे का भी कार्यक्रम रखा गया था.

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