मेरा यह मानना है कि अर्थशास्त्र के बारे में अगर जानकारी ना हो, तो ना लिखा जाए.
जानकार लोग तो अर्थशास्त्र ठीक से समझ नहीं पाते, ऊपर से जो एक एजेंडे के तहत लिखते है, वे मोदी सरकार को नीचे दिखने के प्रयास में स्वतः अपने आकाओं की करतूतें दिखा जाते हैं.
अब एक मित्र ने मेरे साँड़ वाले लेख पर किसी ‘पत्रकार’ की सरकार के आर्थिक प्रबंधन की आलोचना वाली पोस्ट डाल दी.
कई बार लिखना कुछ चाहता हूँ, एजेंडे की चाशनी में लिपटी ऎसी बातों में उलझकर कुछ और लिखने में समय और प्रयास बर्बाद करना पड़ जाता है.
सर्वप्रथम उस पत्रकार ने जो मुद्दे उठाए हैं वह बिजनेस स्टैंडर्ड से उठाये गए हैं.
उस समाचार पत्र में लेख बाइलाइन के साथ छपे हैं, यानी कि उन पत्रकारों ने लेख को लिखने में ओरिजिनल मेहनत की. लेकिन इस फर्जी पत्रकार ने ना तो समाचार पत्र का, ना ही उन पत्रकारों का आभार प्रकट किया.
अब आते हैं मुद्दे पर.
फर्जी पत्रकार लिखता है कि सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है और कहता है कि वित्तीय घाटा 3.4 प्रतिशत हो गया है.
लेकिन क्या यह आंकड़ा सही पिक्चर प्रस्तुत करता है? सोनिया सरकार के समय में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह और हार्वर्ड में शिक्षित चिदंबरम के समय के आंकड़े क्या थे? क्या उस से तुलना नहीं करनी चाहिए?
सोनिया के समय में वित्तीय घाटा लगभग 6% के ऊपर रहा. क्या मोदी सरकार को इस बात का श्रेय नहीं मिलना चाहिए की उन्होंने वित्तीय घाटा कम किया?
दूसरी बात रेलवे की है. कई बार सरकार किसी मद में कटौती करती है किसी में बढ़ोतरी.
अगर वह बिज़नेस स्टैण्डर्ड की पूरी रिपोर्ट को पढ़ते तो उसमें साफ साफ लिखा है कि रेलवे को कहा गया है कि आपकी जो संपत्ति (भूमि, स्टेशन, ट्रैन इत्यादि) है उससे पैसा बनाइये.
पिछले वर्ष भी ठीक इसी समय वित्त मंत्रालय ने भारतीय रेल को 50000 करोड़ रुपए की जगह सिर्फ 28000 करोड़ रुपए कर दिए थे क्योंकि उन्होंने रेल को कहा कि पहले आप दिया हुआ बजट तो खर्च करो.
किसी भी पैरामीटर को आप ले लीजिए. रेलवे में विद्युतीकरण हो, स्टेशन की साफ-सफाई, आधुनिकीकरण, हर मामले पर कांग्रेस सरकार के समय से ज्यादा निवेश हो रहा है.
उदाहरण के लिए कांग्रेसियों के समय में प्रति वर्ष 1300 किलोमीटर रेल लाइन का विद्युतीकरण होता था. जबकि इस समय प्रति वर्ष 2000 किलोमीटर रेल लाइन का विद्युतीकरण हो रहा है. 2013 में 4.3 किमी रेलवे ट्रैक प्रति दिन बिछाये जाते थे. अब यह दर 7.8 किमी है. इसके लिए पैसा कहां से आ रहा है?
फिर वे लिखते है कि तीसरी तिमाही में कॉरपोरेट का लाभ बढ़ा है.
तो क्या कांग्रेसियों के समय कॉरपोरेटो को घाटा हो रहा था?
अंत में, उन्हें शिकायत है कि ONGC हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन का अधिग्रहण कर्ज, नकद और आय से करेगा (वह आय और नकद “खा” गए; केवल कर्ज लिखा).
यह भी लिखना भूल गए कि इस सौदे के बाद ONGC इंडियन ऑयल और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा रिफाइनर होगा.
आपसे आग्रह है कि उन पत्रकार महोदय का कार्यक्रम मनोरंजन के लिए देखिए, सूचना के लिए नहीं. वह पूरी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित है.