धरती एक जोगन है
जो कई जन्मों से
खोज रही है
वो तेरहवां सूरज
जो 49 दिन तक
उसके माथे पर चमकता रहा
और सुनाता रहा
वर्जित बाग़ की गाथा…
मौनी अमावस्या की ढलती रात में
वो देख रही है
दो खिड़कियों से झांकती
प्रतीक्षा में थक चुकी चार आँखें
टिकी है काले आकाश में स्थित
उस रहस्य की मटकी पर
वो कौन सा क्षण होगा
जब पांच बरस लम्बी सड़क से
गुज़र कर कोई जोगी आएगा
और सुनाएगा अंतिम स्मरण गाथा
और माँ काली अपने अंतिम हस्ताक्षर के साथ
उपहार में दे जाएगी
शक्ति कणों की लीला
जिसे घनीभूत कर वो बना लेगी सातवीं किरण
और उछाल देगी उस मटकी पर
जिससे धूप का एक टुकड़ा निकलकर
टंक जाएगा धरती के माथे पर
और सूरज उसके माथे पर रख देगा गेरुआ चुनरी
और वह रातरानी से सूरजमुखी हो जाएगी
यह अंतिम गाथा है ‘जीवन’ की
जो सारी वर्जनाओं को तोड़कर
अर्पित कर रही अपनी मानस माँ के चरणों में
जिसकी दुनिया में आशिक और दरवेश
मन की एक ही अवस्था के दो नाम हैं
जिस पर जब इश्क़ नाज़िल होता है तो
मन मिर्ज़ा हो जाता है और तन साहिबां
– माँ जीवन शैफाली