कल शाम को जबसे यह खबर लगी है कि वाराणसी के घनी आबादी वाले क्षेत्र में ज़मीन के अंदर एक भूमिगत मिनी शहर के निर्माण को पकड़ा गया है, तब से मैं यही सोच रहा हूँ कि 40 बिसवे जैसे विशाल क्षेत्र में बनाये जा रहे इस नगर बनाने की पीछे क्या असली मन्तव्य है और वो कौन लोग है?
वाराणसी के हिन्दू बहुल सधन क्षेत्र दालमंडी से शुरू होता हुआ यह भूमिगत निर्माण बेनियाबाग में जाकर खत्म होता है.
अंधेरी रात में लँगड़ा हाफिज मस्जिद के सामने एक कटरे के नीचे से आती हुई रोशनी ने, अंधेरे में हो रहे इस काम को, रोशनी तो जरूर दे दी है लेकिन सवाल उससे बड़ा यह है कि इतने बड़े क्षेत्र में हो रहा यह अवैध निर्माण किस किस की अवैधता को छुपाने के लिये किया जा रहा था?
इस समाचार आने के बाद से ही लोग पुलिस, नगर निगम व वाराणसी डेवलपमेंट अथॉरिटी के कर्मचारियों को गरियाना के उपक्रम में लगे है और उनके द्वारा भ्रष्टाचार किये जाने पर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे है.
यदि हम ठंडे दिमाग से इस पूरी घटना को देखें तो पता चलेगा कि लोग जिन सरकारी संस्थाओं और उनके कर्मचारियों को लेकर लोग रोना रो रहे है वह तो सामने ही दिख रहे हैं लेकिन इस अवैधता के असली वैध अपराधी वह है जिसने यह निर्माण करवाया है और इसको सुचारू रूप से बनने देने में सहयोग दिया है.
इतना बड़ा निर्माण रातों रात नहीं हो सकता है, इसको बनने में कम से कम दो वर्ष तो लगा ही होगा. इसको बनाने वाले भले ही कोई और है लेकिन इसको छुपाने वाले वो लोग हैं जो इस क्षेत्र में व्यापार कर रहे हैं या रह रहे हैं.
मेरा अपना अनुभव है कि अवैध भूमिगत निर्माण होना कोई बड़ी बात नहीं है. पिछले एक दशक से दुकानों और घरों में भूमिगत निर्माण कराना एक परिपाटी बन गयी है और यह निर्माण ज्यादातर अवैध रूप से ही होता है.
हकीकत तो यह है कि अवैध रूप से भूमिगत निर्माण करवाना व्यापार की जरूरत में शामिल कर लिया गया है. हर व्यापारी अपने क्षेत्रफल का ज्यादा से उपयोग करना चाहता है और वह व्यापार स्थल के पास गोडाउन होने की अहमियत को भी समझता है, जो इस अवैध निर्माणों की स्वीकार्यता को बढ़ाता है.
वाराणसी में जो यह संयोगवश भूमिगत नीचा नगर मिल गया है उसके इतने लंबे समय तक गुप्त रहने के पीछे भी व्यापारिक स्वार्थ ही है. सघन व्यापारिक क्षेत्रों में ऐसे भूमिगत निर्माण गोडाउन के रूप में उपयोग में लाने के लिये ही ज्यादातर किया जाता है.
कल जब जांच होगी तो यह बात निश्चित रूप से सामने आयेगी कि उस क्षेत्र के कई बन्धुओं ने इस अवैध निर्माण से लाभान्वित होने के लिये अग्रिम राशि दे रखी है और उन्होंने ही इस निर्माण के दौरान बड़े पैमाने में निकली मिट्टी मलबा व निर्माण सामग्री को जाने व लाने में सहयोग दिया है.
मेरे सबसे बड़ी चिंता यह है कि इतना विशाल भूमिगत अवैध निर्माण क्या सिर्फ विशुद्ध व्यापारिक हित के लिये किया गया है? मैं यह तो मान सकता हूँ लोगों ने इसके निर्माण में सहयोग लालच में कारण दिया होगा लेकिन मैं यह नही मान सकता हूँ कि इसका उपयोग सिर्फ और सिर्फ व्यापारिक है.
मुझे पूरा अंदेशा है कि जिन लोगों ने इसके निर्माण का बीड़ा उठाया है उनके पीछे कोई और शक्ति है जिसने धन मुहैया कराया है. यह भूमिगत निर्माण न सिर्फ अवैध धंधे व अवैध लोगों की शरणस्थली होने वाला था बल्कि आंतकवादी गतिविधियों और मुम्बई ब्लास्ट की तर्ज़ पर सघन हिन्दू क्षेत्र को उड़ाने की सबसे सुरक्षित जगह भी बनने वाली थी.
यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि आतंकवादी, भारत में 2014 के बाद से कोई बम ब्लास्ट जैसी घटना अंजाम देने में असफल रहे हैं और यह बराबर सूचना आती रही है कि आतंकवादी कोई बड़ी घटना करने के लिये छटपटा रहे हैं.
ऐसी स्थिति में इस्लामिक आतंकवादियों के लिये वाराणसी में, जहां से सांसद, भारत के प्रधानमंत्री है और जो हिंदुओं का सबसे पूजित शहर व भारतीय संस्कृति की राजधानी भी है, आतंकवाद की बड़ी घटना को अंजाम देने के लिये सबसे बड़ा लक्ष्य भी है.
आज लोग इस अवैध निर्माण को लेकर आश्चर्य चकित जरूर है लेकिन मुझे तो तब आश्चर्य होगा जब इस तरह के भूमिगत निर्माणस्थलों में बसे नीचा नगर, यदि अन्य नगरों में नहीं मिलते है.
मुझे तो पूरा विश्वास है कि लखनऊ, कानपुर, मेरठ इत्यादि शहरों में इस तरह के निर्माण मिलेंगे जो बारूद के गोदाम है, जहां से आने वाले समय मे विस्फोटों की श्रृंखला निकल सकती है.
इस तरह के अवैध निर्माणों में जहां सरकारी तंत्र जिम्मेदार है वही पर वह वर्ग भी अपनी सहभागिता से मुंह नहीं मोड़ सकता है जिसने भले ही अंजाने में ही सही, इन निर्माणों को अपने व्यापारिक हितों व लालच में बनने दिया है.