अरुण जेटली जी, नरेंद्र मोदी जी,
बजट लगभग तैयार हो ही चुका होगा, फिर भी कुछ फिनिशिंग टच देने की संभावना है तो करोड़ों मिडिल क्लास की आवाज़ इस लेख के माध्यम से अवश्य सुनें.
एक होता है HRA, जो कि तीन प्रकार से कैलकुलेट होता है, और उसमें न्यूनतम टैक्स के लिए गिना जाता है. लेकिन किराया तो एक ही होता है, और तनख्वाह भी एक ही होती है.
क्या HRA को ग्रॉस इनकम का एक तय परसेंटेज नहीं बनाया जा सकता?
तय परसेंटेज से कोई कम किराया देगा तो उसकी मजबूरी कम अच्छे घर में रहने की, कोई ज्यादा दे तो उसकी ऐश होती होगी.
तो HRA शहर अनुसार, एक CAP लगाकर ग्रॉस इनकम का तय प्रतिशत हो जाये तो एक और बहुत बड़ा झंझट निपट जाए.
झंझट है जी नकली रेंट स्लिप बनाने का.
इस देश के मेट्रो शहरों में 10 प्रतिशत मकान मालिक फॉरेन में रहते हैं, 20 प्रतिशत से अधिक दूसरे शहरों में और कुछ 20% दुःखी आत्माओं को ही मकान मालिक का निरंतर सान्निध्य प्राप्त है, लेकिन 100% लोग रेंट स्लिप बना डालते हैं… आखिर हम जनता को क्यों चोरी सिखाते हैं?
एक सवाल ये भी आता है कि जिसके पास घर है उसको HRA नहीं मिलता. ठीक बात है, लेकिन उसको कुछ तो मिलना चाहिये. HRA का 30% तो उसका भी स्टैण्डर्ड डिडक्शन होना चाइये. घर पालना कोई आसान काम तो रहा नहीं.
हां जो सरकार या कम्पनी द्वारा दिये गए घरों में रहते हैं, उन पर ये नियम नहीं लागू होते.
15 हज़ार रूपए तक का मेडिकल अलाउंस, इसके लिए काहे को साल भर व्यक्ति बिल जमा करता फिरे. माना हम सब चूहों से बहुत कुछ सीख सकते हैं, लेकिन बस बिल बनाना ही सीखें?
आप 15 हज़ार की जगह 60 हज़ार रुपयों का डायरेक्ट डिडक्शन दीजिये. शर्त यही कि व्यक्ति के पास मेडिकल इन्शुरन्स होना चाहिये. इस कदम के साथ आपकी सरकार स्वस्थ भारत का भी आगाज़ कर सकती है.
जो व्यक्ति स्वस्थ रहेगा वो स्वयं अपनी बचत करेगा. लोगों को अच्छा खाना खाने दीजिये, खुश रहने दीजिए, जिम और योग करने दीजिए. बस बिल मत मांगिये, क्योंकि बिल जितने का चाहिये उतने का मिलेगा, लेकिन वो चोर को और चोर बनाने की प्रक्रिया से अलग नहीं होगा.
यदि हो सके तो ये बिल का झंझट खत्म करिये क्योंकि टीडीएस काटने वाला एम्प्लायर एक अकाउंटेंट रखता है, उस अकाउंटेंट के अंदर भारत सरकार की आत्मा घुस जाती है.
साल भर वो अनाप शनाप टीडीएस काटता है, फिर CA के चक्कर लगवाता है, जो फिर बिल और पचासों कागज मांग देता है… और इसके बाद भी महीनों return खाते में जमा नहीं होता है.
थोड़ा हमारी जिंदगी सरल करें वित्तमंत्री जी. जनता को सकारात्मक काम करने दें. ये आफिस-आफिस और फाइलों में न दबाएं.
एक समाधान की अपेक्षा रखते हुए,
एक सामान्य नागरिक
डॉ अभिषेक सचान