मकर संक्रांति .. सुरुज (सूर्य) देवता का दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश..
समस्त कृषि भारत का परब!! … सही मायनों में पर्व/परब यही है जिसे भारतवर्ष का हर वर्ग समुदाय मनाता है, नामों में बस अंतर हो जाता है, लेकिन मूल है कृषि!
हम झारखंडियों में और विशेषतः कुड़मियों में इसका खास महत्व है. हमलोग के ‘बारह मासे तेरह परब’ में से सबसे अंतिम परब मने तेरहवाँ परब यही. याने मकर परब.
सभी परब कृषि चक्र और फसलों के छींटनी, बुवाई, कटाई, घर-ढुकाई तक में समर्पित!
बीते सोहराय परब में धान की कटाई मेसाई और अब मकर में सिझाई-कुटाई के बाद पहला उत्पादित अन्न से पुआ-पीठा से शुरुआत और नये बीजों को अग्रिम कृषि हेतु संवर्धन!
ये यही काल होता है जब सूर्य देव के उत्तरायण होते ही सभी सृष्टि में सृजन का आरंभ होता है. अन्न के बीज से लेकर मनुष्य के बीज तक में.
शादी-ब्याह की शुरुआत भी यहीं से. नवीन धान में अगले धान को सृजित करने की शक्ति का प्रवेश भी इसी के बाद आरंभ हो जाता है, जो कि अगली बारिश और मिट्टी का संपर्क पाते ही प्रस्फुटित हो जाती है और मानव कल्याण के साथ-साथ ही समस्त जीव कल्याण में अपना अमूल्य योगदान देती हैं.
एक टुसु गीत है …
“पानीइ हेला, पानीइ खेला, पानीइ तहराक कन आहन् ?”
“भालअ कोरी भाभि देखा, पानीइ ससूर घार आहन्!! ”
अर्थात – “पानी(बारिश) हुआ, पानी में खेला, पानी तुम्हारा कौन है?
अच्छे से विचार कर के देखो, पानी तुम्हारा ससुर घर है!”
माटी और पानी.. इन दोनों के संगम के बिना सृजन नहीं हो सकता.
बीज में सृजन की शक्ति अगर अभी(मकर में) समाहित होना शुरू होती है तो वह शक्ति बिना पानी और माटी के बेकार है. पुरूष अगर माटी है तो स्त्री पानी है. और दोनों के संगम से ही बीज की सृजन शक्ति को आयाम मिलता है. अर्थात बिना पानी और ससुराल के सृजन नहीं हो सकता!!
इस भाव को लिए टुसु परब/ मकर परब की महत्ता है. .. सृजन का आधार.
झारखंडियों का नव वर्ष कल के अखाइन जतरा से आरंभ.
नव सृजन का भाव लिए ही नवीन वर्ष का आरंभ होता अपना.
सभी झारखंडियों और भारतवासियों को टुसु/मकर/नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
सृजनकर्ताओं को हार्दिक अभिनंदन.