एक कहानी कुछ यूँ है कि कर्ज से परेशान एक व्याध (शिकारी) जंगल में एक पेड़ पर शिकार के इन्तजार में मचान बना कर बैठता है. किस्मत से पेड़ बिल्व वृक्ष यानि बेल का पेड़ था और उसने जो मचान बनाने के लिए पत्ते तोड़े वो पेड़ के नीचे स्थित शिवलिंग पर गिरते रहे.
घात लगाए शिकारी के सामने से एक हिरणी गुजरी. शिकारी ने उसे मारने के लिए निशाना लगाया तो हिरणी ने परिवार से मिलने की मोहलत मांगी. शिकारी को पता नहीं क्या सूझा कि उसने हाथ आये शिकार को जाने दिया. हिरणी जब ये वादा कर के गई कि परिवार से मिलकर वापस आ जायेगी तो वहां से एक हिरण गुजरा.
हिरण भी अपने परिवार को ही ढूंढ रहा था और शिकारी को खुद पर निशाना लगाए पाया तो उसने भी परिवार से मिल आने की मोहलत मांगी. शिकारी उसे भी जाने देता है. एक एक करके पूरे हिरण परिवार को जाने दे रहा शिकारी भूखा-प्यासा ही मचान पर बैठा होता है.
उसका जो चमड़े का पानी भरा मश्क था उस से बूँद बूँद पानी भी नीचे शिवलिंग पर टपकता जाता था. उधर हिरण का परिवार एक दूसरे से मिला और सबने शिकारी को किये अपने वादे के बारे में एक दूसरे को बताया. अंतः पूरा हिरण परिवार ही शिकारी के सामने उपस्थित हुआ.
इतने में अगली सुबह हो गई थी और शिकारी अब सोच में पड़ गया था कि एक वादे के लिए प्राण देने आ गए हिरणों का क्या करे? इतने में शिव प्रकट होते हैं और वादे के पक्के हिरण परिवार को और अनजाने ही शिवलिंग पर जल-बेलपत्र चढ़ाते शिकारी, सभी को मोक्ष मिलता है.
ये कहानी लम्बी सी है, और काफी भाव के साथ कथावाचक इसे बांचते सुनाई दे जायेंगे. मोटे तौर पर ये शिवरात्रि से जुड़ी कहानी है जो भक्तों को भाव विभोर करने के लिए सुनाई जाती है. इसे सुनकर आस्था कितनी जागती है या लोग कितने भाव-विह्वल होते हैं ये हमारा मसला नहीं.
हम इस कहानी से बस इतना समझते हैं कि भगवान, भगवान होते हैं, कोई राक्षस नहीं होते. छोटी मोटी सी कोई पूजा में पाठ में गलती हो भी गई तो वो आपको खा जाने नहीं कूद पड़ेंगे. गलतियाँ अनदेखी करके आपके सिर्फ अच्छे काम जोड़े जायेंगे.
“परमहंस” के स्तर पर पहुंचे साधुओं तक भी बदबू जैसी चीज़ें नहीं पहुँचती, वो सिर्फ सुगंध महसूस कर पाते हैं तो भगवान तक कमियां कैसे पहुंचेंगी? पाठ की विधि से आपके पुण्य कम-ज्यादा हो सकते हैं, असर अलग अलग हो सकता है, पाप नहीं हो सकता. हिन्दुओं में अँधेरे का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता, रौशनी का ना होना अँधेरा है. आप रौशनी कर सकते हैं अँधेरा नहीं कर सकते.
धर्म का लोप होना अधर्म होता है, आप अलग से अधर्म नहीं कर सकते. परिग्रह बंद करने से अपने आप अपरिग्रह होता है, हिंसा बंद करने पर अपने आप अहिंसा होगी. पुण्य का ना होना पाप होता है, अलग से पाप नहीं किया जा सकता. किसी पुराण-धार्मिक ग्रन्थ के पाठ की पूरी विधि का पालन नहीं किया या जानकारी ही नहीं तो पुण्य थोड़ा सा कम हो सकता है, पाप नहीं हो सकता. पैदा होते ही पापी होने की या अलग से पाप कर लेने की इसाई मानसिकता को हिन्दुओं पर मत थोपिए.
सही विधि का आश्वासन खुद शंकराचार्य उतर आयें तो भी नहीं दे सकते, और ये सभी ग्रंथों में लिखा होता है कि पूर्ण विधि की जानकारी किसी को नहीं. विधि-विधान के पूरे ना होने पर पाप नहीं लगता, उठाइये और पढ़िए.