इसके बावजूद कि न्यायपालिका आकण्ठ भ्रष्टाचार के गहरे दलदल में धँसी हुई है, न्याय की संभावना नगण्य ही है, थाने/पुलिस की तरफ मुड़ना मतलब आफत मोल लेना है… फिर भी किसी भी विवाद की स्थिति में लोग थाने कचहरी की तरफ ही रुख़ करते हैं.
न्याय और सुरक्षा की आस उन्हें यहीं से है. लोगों को विश्वास है कि यदि थानेदार साहब, जज साहब सही निकल गए तो उन्हें उनके कष्ट से मुक्ति अवश्य मिल जायेगी.
काँगी राजवंश में यूँ तो तमाम व्यवस्थाएँ ही भ्रष्टता की पराकाष्ठा को प्राप्त हुईं, फिर भी अपने कतिपय फैसलों से सर्वोच्च न्यायालय अपनी साख को धूल धूसरित होने से बचाये रखने में लगभग सफल ही रही.
न्यायसर्वोच्च जाति धर्म देखकर फैसले दिया करेंगे, दलीय एजेंडे पर चला करेंगे, इसका विश्वास न के बराबर लोगों में था.
लेकिन कार्यपालिका में प्रधान सेवक रूप में एक घनघोर चरणदास कठपुतली से लेकर पूरे न्यायतंत्र की बड़ी कुर्सियों पर उक्त राजवंश ने प्यादे बैठाये ताकि उनकी सत्ताच्युतता की स्थिति में भी तन्त्र उनके हाथ ही रहे.
वही आज प्रकट और उद्दात्त रूप में हमें दिख रहा है. अपने मालिकों पर आए संकट को देखकर मी-लॉर्डगण समवेत लोकतंत्र के समाप्ति और तानाशाही के आप्तता की उद्घोषणा प्रेस कॉन्फ्रेंस करते कर रहे हैं.
देश के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की बात और क्या होगी कि आज जैसे ही कोई केस किसी बेंच को जाता है या किसी बेंच से कोई फैसला आता है, लोग न्यायपतियों के उपनाम पूछते हैं. हर फैसले के साथ लोगों का यह विश्वास दृढ़ से दृढ़तर होता जा रहा है कि न्यायतन्त्र हिन्दू विरोधी था, है और रहेगा ही.
कुछ महीनों के लिए प्रवक्ता पद से हटा कर अपने वरिष्ठ मन्त्री अभिषेक मनु सिंघवी के जज मेकिंग फॉर्मेट को यह राजवंश भूल सकती है लेकिन आमजन नहीं भूल सकता कि उक्त राजवंश की कार्यशैली क्या थी.
चूंकि अवॉर्ड वापसी अभियान वाली जली और चुकी हुई हाँडी, फिर से उसी रूप में दुबारा तो ये सेकुलरी गैंग चूल्हे पर चढ़ा नहीं सकते… तो उसी माल को अब दूसरे बर्तन में (जजों के द्वारा) डाल गर्म होने चढ़ा दिया है.
मोदी काम नहीं करने दे रहे, असहिष्णुता की सुनामी आ गयी है, सेकुलरिता मिटने वाली है, लोकतंत्र खतरे में आ चुका है, दलितों का उत्पीड़न चरम पर है, जैसे चिल्लारोहट बस अब कान न फाड़ दे तो कहिएगा.
बंधुओं, अगला सवा साल घनघोर विध्वंस काल होगा, साफ साफ दिख रहा यह.
जातीय विद्वेष की आग में देश को झोंकने की तैयारी पूरी हो चुकी है.
वामी मीडिया, वे तमाम शक्तियाँ जिनके लिए भ्रष्टाचार ही आचार तथा सुव्यवस्थित कार्यशैली थी, भारत की बर्बादी के जरिये अपने व्यक्तिगत घर की आबादी ही जिनका धर्म था, कुछ भी कर गुजरने को वे तैयार हो चुके हैं.
उन्हें पता है कि यदि यह अगला टर्म मोदी निकाल ले गए तो उनके हाथ से छींका इतनी दूर हो जाएगा, जो कि तब तक इनके हाथ नहीं आएगा, जब तक मोदी बुरी तरह फेल और फ्लॉप नहीं हो जाते…
और यह होने में लम्बा समय लगेगा क्योंकि तब तक देश को उस पेड़ के मीठे फल मिलने लगेंगे जो कि पत्थर और बंजर जमीन पर मोदी ने चारों ओर से पत्थर खाते हुए लगाए थे.
और एक बार जब आमजन को उस फल (सुव्यवस्था) की आदत पड़ जाएगी तो वे अपने नेता/नायक रूप में वैसा व्यक्तित्व चाहेंगे जो मोदी से दुगुना-तिगुना नहीं भी तो डेढ़ गुणा प्रभावशाली, चमत्कारी और क्षमतावान तो जरूर ही हो.
त्यागमयी मैया की समस्या यह है कि कितनी भी पीआर एजेंसी लगा ले, वह अपने लाल को प्रधानसेवक के पासंग भी खड़ा नहीं कर सकती, दंगे फसाद अव्यवस्था चाहे देशभर में लाख फैला ले.
अपने जीते जी यदि अपने लाल को वह राजगद्दी पर सेट नहीं कर पायी तो उनके बाद उनके इस पिलपिले लाल और राजवंश का क्या होगा, वे अच्छी तरह जानती हैं. इसलिए करो या मरो मोड में आ चुकी हैं.
अब इन कुचक्रों से हम कैसे बचेंगे, हमें गम्भीरता से सोचना होगा. हमारे लिए भी यही करो या मरो वाली स्थिति है. आज न सोचा और सम्हले तो केवल दुर्गति भोगना अपने हाथ में रहेगा.