एक प्रयास : आइये इस संक्रांति पर दान करें Sanitary Napkins

कुछ समय पूर्व असली फुनसुक वांगड़ू आये थे केबीसी के एक एपिसोड में, श्री सोनम वांगचुक जी! उन्होंने अपने कृत्रिम ग्लेशियरों के बारे में अमिताभ बच्चन जी को बताया कि कैसे सर्दियों में ऊपर से बहकर आते ग्लेशियर जल को एक ढ़ेर की तरह जमाकर कृत्रिम ग्लेशियर बनायें जाते हैं, जो वसंत ऋतु में पिघलकर जल की आपूर्ति सुनिश्चित कर देते हैं जबकि पहले इस समय पानी की जबरदस्त किल्लत हो जाती थी.

अमिताभ जी के पूछने पर सोनम ने बताया कि इस कृत्रिम ग्लेशियरों को उन्होंने “हिम स्तूप ” नाम दिया है. उन्होंने बताया कि “स्तूप” बौद्ध धर्म का पवित्र शब्द है जिसका अर्थ होता है “बुद्ध से संबंधित अवशेष/ज्ञान प्रदान करने वाली वस्तुओं/लेखों का ढेर”, इसलिए इस नाम का सदुपयोग करके हम इस अभियान को धर्म से जोड़कर जनता को जागरूक करते हैं और आश्चर्यजनक रूप से जनभागीदारी अनअपेक्षित रूप से व्यापक हो जाती है.

बच्चन साहब सहित सभी ने उनके इस जनकल्याणकारी धार्मिक प्रयास के विषय मे जानकर सादर तालिया बजाई.

(ये बात और है कि यदि ऐसा कुछ कोई हिन्दू कह देता तो देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को पक्षाघात हो जाता और बाहर निकली हुई जीभ लड़खड़ाते हुए बस यही रटती रहती कि “लोकतंत्र खतरे में है, लोकतंत्र खतरे में है.)

कल मकर संक्रांति है. दान एवं त्याग का वार्षिक महापर्व. छ मास के दक्षिणायन बंधन से मुक्त होकर पृथ्वी मोक्षगामी उत्तरायण की ओर बढ़ती है और इसी शुभलक्षण के प्रतीक को सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है.

ग्रीष्म मे छतरी, विजणी (हाथ के पंखे ), चप्पल, वर्षा में छाता, शीत में ऊनी वस्त्रों/कंबलों के दान को सनातन धर्म मे प्रत्येक समर्थ व्यक्ति के धार्मिक पुरुषार्थ का आवश्यक अनुष्ठान बताकर निर्देशित किया गया है. यही सनातन का अपना स्वतः स्फूर्त स्वैच्छिक समाजवाद था.

भगवान कृष्ण भी भगवद्गीता के उपसंहार मे स्पष्ट आदेश देकर गए कि,
“यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।”

यज्ञ, दान तथा तपस्या के कर्मों का कभी परित्याग नहीं करना चाहिए, उन्हें अवश्य सम्पन्न करना चाहिए. निस्सन्देह यज्ञ, दान तथा तपस्या महात्माओं को भी शुद्ध बनाते हैं.

ब्राह्मणों ने इन्ही जनकल्याणकारी भावो को व्यवस्थाओं के रूप में आगे जन जन तक प्रचारित किया.

कुछ समय पूर्व फेसबुक पर कुछ संवेदनशील एवं जागरूक महिलाओं ने एक अत्यंत गंभीर विषय पर एक अभियान चलाया था “गरीब कन्याओं /महिलाओं के ऋतुकाल में उपयुक्त कपड़े एवं सेनिटरी नेपकिन की अनुपलब्धता के चलते उनको होने वाले नारकीय अनुभव पर.”

मैंने भी तब पढ़ा और अत्यंत दुख का अनुभव हुआ कि आज करोड़ों ऐसी महिलाएं हैं जिनके पास ऋतुकाल मे उपयुक्त साधन उपलब्ध नहीं होता क्योंकि वे उसे खरीदने मे असमर्थ होती हैं, ऐसे में उनके द्वारा मिट्टी, राख़, प्लास्टिक जैसे असुविधाजनक विकल्प से वह कठिन समय व्यतीत करने की विवशता होती है.

मैं एक पुरोहित के रूप में आज आप सभी से यह निवेदन करता हूँ कि इस मकर संक्रांति पर आप अपने परंपरागत धार्मिक दान के प्रकल्पों यथा तिल, गुड़ एवं तेल के दान के उपरान्त न्यूनतम एक पैकिट सेनिटरी नैपकिन्स का भी दान करें और उसे किसी उपरोक्त असमर्थ महिला को दान करें जिससे वह अपने कठिन समय में इस सुविधा का उपयोग करने में सक्षम हो पाये जिससे आपको पुण्यलाभ भी हो.

पुरुष अपनी पत्नी और महिलाएं अपने सभी स्त्री संबंधियों को इस विषय में बताएं और संक्रांति के साथ ही हर महिला अपने ऋतुस्नान के पश्चात प्रतिमाह यह दान करें.

इस प्रकार आप चाहें तो शीघ्र ही सम्पूर्ण भारत में प्रत्येक स्त्री तक इस आवश्यक प्रदार्थ की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकती हैं.

Stay free कंपनी के एक बड़े पैकिट का दाम लगभग 50 रुपये हैं, 12 महीने के हुए 600 रुपये. इस 600 रुपये में आप लगभग 4 महिलाओं के लिए वर्षपर्यन्त व्यवस्था का पुण्य प्राप्त कर सकती हैं.

जिस प्रकार से सोनम वांगचुक जी ने धर्म से जोड़कर एक जनकल्याणकारी कार्य को जो अत्यंत दुष्कर था उसे सुगमता से सिद्ध कर दिया उसी प्रकार से मुझे भी यह आशा है कि सनातन धर्म के जागरूक अवलंबी भी अपने निर्धन असमर्थ लोगों तक दान की इस महान परंपरा के सहारे दैनंदिक आवश्यक वस्तुएं पहुंचाकर सर्वे भवन्तु सुखिनः को साकार करेंगे.

आप सभी को दान एवं त्याग के इस महापर्व मकर संक्रांति की हार्दिक मंगलकामनायें!
भुवन भास्कर भगवान सूर्यदेव आप सभी के पुरुषार्थ को स्वर्णिम प्रखरता प्रदान करें.

जय हिंद ,जय सनातन ।।

दान करें सूती कपड़े, ताकि माहवारी में ये उपयोग न करें प्लास्टिक और राख

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