तुम मेरी चार दिशाओं में उपस्थित महाकुंभ हो,
जो हर बारह जन्म के कुम्भ काल में आते हो
और मेरी प्रेम नदी इतनी पवित्र हो जाती है
कि लाखों लोग उसमें डुबकी लगाकर
अपने पाप को मुझमें विसर्जित कर
मेरे पुण्य आशीर्वाद को प्राप्त होते हैं
मैं तुम्हारी उज्जयिनी हूँ, मैं ही नासिक
मैं ही प्रयाग और तुम मेरे ‘हरिद्वार’
जब जब ये कुम्भ योग बनेगा
हमारे प्रेम अमृत की रक्षा के लिए
सूर्य, चंद्र और बृहस्पति मेरी राशि पर अवतरित होंगे
और बचा ले जाएंगे इसे अपात्रों के हाथ लगने से
मेरे प्रेम देवता, इस अमृत को तुम तक पहुँचाने के लिए
हर बार पीड़ा का विष मुझे ही पीना है
ताकि मैं रहूँ न रहूँ, ये प्रेम अमृत रूपी धरोहर
तुम धारण कर सको अपनी नाभि में
जब जब सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों के संघर्ष से
अमृत निकले, तुम मेरा मोहिनी रूप धरकर
इस रहस्य को बाँट आना
प्रेम-अमृत के लिए तरसते मानवीय देवी देवताओं में
तुम पूरे खाली होकर भी आओगे
तब भी मुझे हमेशा स्वीकार्य रहोगे
मैं भी तो लोगों के कुम्भ स्नान के बाद
पाप से भरी रहूँगी….
- माँ जीवन शैफाली