ख़ुदा की क़िताब : मन मिर्ज़ा तब साहिबां

Osho Love Ma Jivan Shaifaly Swami Dhyan Vinay
Ma Jivan Shaifaly Swami Dhyan Vinay

एक परम चेतना आशीर्वाद बनकर दूसरे पर फलीभूत हुई तो दूजे को ख़ुद का दीदार हुआ और जिसे ख़ुद का दीदार हो जाता है उसमें ख़ुदा का वजूद भी समाहित हो जाता है. दोनों को जब ख़ुद में इश्क़ का दीदार हुआ तो एक दूजे ख़ुदा कहने लगे.

दुनियावी पैमाने से ऊपर उठने पर दुनिया की नज़रें ऊपर उठ गईं. दुनिया को देखने के लिए उन्हें नज़रें झुकाना पड़ीं. इस तहज़ीब को दुनिया समझे न समझे, वो ख़ुदा ज़रूर समझता है कि परम स्वतन्त्र चेतनाएं जब इश्क़ बनकर दीदार देती हैं तो कायनात भी नतमस्तक हो जाती है.

इस धरती पर जब जब ये चेतनाएं अपने जलाल पर आई हैं, तब तब धरती पर क्रान्ति घटित हुई है. इस क्रान्ति का असर फिज़ाओं को भी होने लगा और धरती को छूती हुई हवाओं को भी. और असर हो रहा है उन चेतनाओं पर भी जो स्वतन्त्र होने की क़गार पर हैं.

क्रान्ति घट चुकी है और उत्सव शुरू हो गया है जहाँ इश्क़ भी दीवानगी में झूम रहा है, ज़िंदगी भी झूम रही है अपने दोनों पैरों पर और ख़ुदा की कलम उठी है तकदीरों को नए तरीके से लिखने के लिए. … जहाँ मन मिर्ज़ा हो जाता है और तन साहिबां.

मानस माँ एमी अमृता प्रीतम की पुस्तक ‘मन मिर्ज़ा तन साहिबां’ पढ़ते हुए मेरे भाव को काया मिली….

और एमी के शब्दों में कहे तो…

प्रेम भी ईश्वर की तरह अज्ञात का नाम है
उसकी बात जितनी भर
किसी संकेत में उतरती है
वही संकेत इस पुस्तक के अक्षरों में है…

साहित्य को एक काया कहना चाहती हूँ
कि जब किसी के आने से
काया का अंग-अंग खिलने लगा
तो आने वाले का नाम कहानीकार हुआ.

जब किसी के आने से
उस काया की सांस बोराने लगे
तो आने वाले का नाम कवि हुआ.

जब किसी के आने से
उस काया के प्राण दीपक से जलने लगे
तो आने वाले का नाम ऋषि हुआ.

और जब इन सबसे तरंगित
उस काया की आँखों में
प्रेम और प्रार्थना का आंसू भर आया
तो उस आंसू का नाम रजनीश हुआ- ओशो हुआ…

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